जम्मू कश्मीर : सेना द्वारा तीन निर्दोष नागरिकों की हत्या

जम्मू कश्मीर के पुंछ जिले में बफलिया इलाके के टोपा पीर गांव में सेना के जवानों ने तीन निर्दोष नागरिकों की हत्या कर दी। ये नागरिक बकरवाल समुदाय (गुज्जर) से थे। इन नागरिकों की हत्या के बाद क्षेत्र में तनाव फैल गया। पुलिस ने तीन अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा कायम किया है और सेना ने कोर्ट आफ इन्क्वायरी शुरू कर दी है। 
    
ज्ञात हो कि 21 दिसंबर को पुंछ सेक्टर में सेना के एक गश्ती दल पर हमला किया गया था। इस हमले में 4 जवान मारे गये थे। इसके बाद सेना ने उस इलाके से 8 लोगों को पूछताछ के लिए उठाया था। बाद में उनमें से तीन लोगों के शव सेना ने उनके परिजनों को सौंपे। इसी दौरान एक वीडियो जारी हुआ जिसमें सेना की वर्दी में लोग उन नागरिकों को यातना देते हुए दिखाई दिये। ये जवान नागरिकों को बुरी तरह पीट रहे थे और उनके घावों पर लाल मिर्च जैसा पाउडर डाल रहे थे जिससे ये नागरिक चीख रहे थे। उनकी चीखों की पुष्टि वहां से गुजर रही कुछ महिलाओं ने भी की। साथ ही बचे लोग जो घायल अवस्था में अस्पताल में भर्ती कराये गये थे, ने भी बताया कि उन्हें बुरी तरह टार्चर किया गया था और उनके सामने ही उन तीनों की मौत हुई थी। 
    
मृतक नागरिकों में से एक के पिता ने बताया कि ‘‘जब उन्हें अपने बेटे का शव मिला तो उस पर करंट देने और बुरी तरह से मारे-पीटे जाने के निशान थे। मेरे बेटे का शव इस कदर क्षतिग्रस्त था कि मैं उसे अपनी बांहों में भी नहीं भर सका। इसी तरह एक मृतक नागरिक सफीर के भाई नूर महमूद ने बताया कि उसने 32 वर्षों तक बी एस एफ में रहकर पूरे भारत में सेना की नौकरी की है लेकिन अंत में उसे अपनी नौकरी का ये सिला मिला है। उसका भाई अपने पीछे 4 बच्चे छोड़ गया है। उनका लालन-पालन कौन करेगा। ज्ञात हो कि मृतक दो नागरिकों की पत्नियां अभी गर्भवती हैं। 
    
मारे गये तीनों नागरिक खानाबदोश गुज्जर समुदाय से हैं जो भेड़-बकरियां पाल कर अपना गुजारा करता है। यह समुदाय बहुत गरीबी में अपना जीवन व्यतीत करता है। इस समुदाय के लोग सेना के साथ मिलकर काम करते हैं और किसी संदिग्ध की इलाके में आने-जाने पर सेना को सूचना देते हैं। कारगिल युद्ध के समय भी इन्हीं लोगों ने इलाके में घुसपैठियों की सूचना दी थी। अब जब इसी समुदाय के लोगों को सेना ने यातना देकर मार डाला तो यह समुदाय अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहा है। इस घटना के बाद सेना से इनका भरोसा कमजोर हो गया है। 
    
सेना के अधिकारियों ने इन परिवारों के घर जाकर मुलाक़ात की है, मुआवजे की घोषणा की है और साथ ही परिवार के सदस्यों को नौकरी का आश्वासन दिया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी परिवारजनों से मुलाकात की। पर सेना ने न तो अब तक इस घटना के लिए माफी मांगी है और जिस तरह एफ आई आर में अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज़ किया गया है उससे इनको न्याय पाने की आशा धूमिल होती नज़र आ रही है। 
    
इन तीनों नागरिकों की हत्या ने 2020 में हुए शोपिया की फर्जी मुठभेड़ की याद दिला दी है। लोगों में काफी आक्रोश है। क्षेत्र में फैले तनाव को देखते हुए पुंछ और राजोरी सेक्टर में इंटरनेट पूरी तरह बंद कर दिया गया है।
    
21 दिसंबर की घटना दिखाती है कि धारा 370 हटाए जाने के 4 साल बाद भी जम्मू-कश्मीर से आतंकवाद खत्म नहीं हुआ है बल्कि ऐसी आतंकवादी घटनाएं निरंतर जारी हैं। मोदी सरकार द्वारा धारा 370 खत्म कर शांति कायम करने का दावा झूठा है। इसी के साथ आतंकवाद को ख़त्म करने के नाम पर सेना द्वारा निर्दोष नागरिकों का उत्पीड़न और कत्लेआम बदस्तूर जारी है। जम्मू-कश्मीर के नागरिकों द्वारा अपने दमन और उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष भी जारी है।

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