काकोरी के शहीदों को याद करें,
उनकी बलिदानी राहों को समझें।
आज भी उनकी कहानी जिंदा है,
उनके बलिदान की नहीं कहीं निंदा है।
स्वतंत्रता के लिए वे लड़े थे,
अपनी जानों की कसमें खाए थे।
आज भी उनकी यादें हमें सताती हैं,
उनके साहस और बलिदान की गाथा
हमको आज भी प्रेरणा दे जाती है।
उनकी चाहत थी सिर्फ देश की सेवा,
उनकी महानता हमें हमेशा
गर्व महसूस कराती है।
काकोरी के शहीदों को हम सलाम करें,
उनकी बलिदानी राहों को हम समझें।
जिसने दी अपनी जान देश के लिए,
उनके नाम हमें हमेशा स्मरण रहे।
उनके बलिदान व्यर्थ ना जाने दें
वह शहादत वाले दिन
17 और 19 दिसंबर हमें हमेशा याद रहें
कि जालिम शासकों ने किस तरह हमारे पुरखों को
फांसी पर लटकाया
किस तरह हमें आजादी के लिए
और तड़पाया गया
अशफाक उल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी जब साथ में लड़े
हिंदू-मुसलमान, जात-पात का ना भेद रहा,
आजादी के लिए अंग्रेजों से
अपना पैसा वापस लिया।
काकोरी कांड की वह बातें
हमें आज भी अपने हक के लिए
लड़ना सिखाती हैं,
बिस्मिल जी की वह पंक्ति
हमें आज भी आजादी के लिए
प्रेरणा दे जाती है।
कि,
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है
-गर्वित तिवारी, बीएससी प्रथम वर्ष,
डठच्ळ कालेज हल्द्वानी, (उत्तराखंड)