एवरेडी कम्पनी में ड्यूटी के दौरान गार्ड की मौत

हरिद्वार/ 18 दिसंबर की सुबह सिडकुल हरिद्वार, एवरेडी कम्पनी में एक गार्ड की मौत हो गई। बताया जा रहा है कि उसे 12 घंटों से ज्यादा ड्यूटी पर रोका गया था। 
    
एवरेडी इण्डस्ट्रीज कम्पनी के सुरक्षा गार्ड की मौत होने पर कम्पनी द्वारा मुआवजा नहीं दिया गया। विरोध में दूसरे दिन पोस्टमार्टम करने के बाद सुरक्षा गार्ड कुन्दन सिंह नेगी का पार्थिव शरीर सिडकुल हरिद्वार में एवरेडी कम्पनी गेट पर रख दिया गया। 8 घंटे के करीब डेड बाडी कम्पनी गेट पर रखी रही।
    
आक्रोशित लोग कम्पनी के खिलाफ काफी नारेबाजी कर रहे थे, इस दौरान सिडकुल थाना के पुलिस से नोंक-झोंक भी हुई। पुलिस द्वारा लगातार दबाव बनाने का प्रयास किया गया। पुलिस ने तीन जिप्सी व एक पुलिस बल की बस मंगा ली। 
    
कम्पनी प्रबंधन द्वारा बार-बार अपनी बातों में कहा जा रहा था कि हमारी जिम्मेदारी नहीं है, यह गार्ड ठेके का है। लेकिन कानून के अनुसार कोई कर्मचारी चाहे किसी ठेके का है या केजुअल, पूरी जिम्मेदारी नियोक्ता (कम्पनी प्रबंधन) की होती है।
    
लोगों के आक्रोश के सामने कम्पनी प्रबंधन को मुआवजा देने के लिए बाध्य होना पड़ा। सेवायोजक/संविदाकार पक्ष द्वारा 3 लाख का मुआवजा, एक सदस्य को स्थाई तौर पर नौकरी और जब तक विधिक देय पूरे न हों तब तक पूरी सैलरी दी जायेगी; आदि बातों पर समझौता हुआ।
    
पीड़ित पक्ष के साथ संयुक्त संघर्षशील ट्रेड यूनियन मोर्चा, इंकलाबी मजदूर केंद्र, फूड्स श्रमिक यूनियन (आई टी सी), कर्मचारी संघ सत्यम आटो, राजा बिस्किट मजदूर संगठन, एवरेडी मजदूर यूनियन तथा बी एम एस आदि यूनियनों/संगठनों के पदाधिकारी रहे।
    
समझौते के दौरान एएलसी हरिद्वार, नायब तहसीलदार हरिद्वार, सीओ सदर और कम्पनी के मुख्य अधिकारी उपस्थित रहे।
    
इस तरह की घटनाएं आज सिडकुल की कम्पनियों में आये दिन हो रही हैं। मजदूरों के हाथ-पैर कटना और मजदूरों की मौतें आम हो चुकी हैं। कम्पनी मालिकों द्वारा सुरक्षा मानकों की अनदेखी की जाती है। श्रम विभाग व अधिकारी सुरक्षा मानकों के बगैर काम कर रही फैक्टरियों पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं कर रहे हैं। एक तरह से कानून का पालन न करने की खुली छूट मालिकों को मिली हुई है। इस पर भी जब कोई मजदूर दुर्घटनाग्रस्त हो घायल या मौत का शिकार हो जाता है तो सारा प्रशासनिक महकमा मजदूर को न्याय दिलाने के बजाय उसके खिलाफ खड़ा हो मालिक की रक्षा में जुट जाता है। मजदूर लड़ कर ही कुछ हासिल कर पाते हैं। 
        -हरिद्वार संवाददाता

आलेख

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

/kumbh-dhaarmikataa-aur-saampradayikataa

असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

/trump-putin-samajhauta-vartaa-jelensiki-aur-europe-adhar-mein

इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

/kendriy-budget-kaa-raajnitik-arthashaashtra-1

आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।