लंपट बाबा की शरण में कांग्रेसी

खबर है कि कांग्रेस पार्टी के नेता कमलनाथ नये-नये चमके या चमकाये गये लंपट बाबा के दरबार में हाजिरी लगा आये हैं। कमलनाथ मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं और चुनाव में जीत की सूरत में वे फिर मुख्यमंत्री बन सकते हैं। 
    
कमलनाथ का लंपट बाबा की शरण में जाना यूं ही नहीं है। इसके देश के आज के संकटपूर्ण समय में निश्चित मायने हैं। 
    
जिस लंपट बाबा की शरण में वे गये थे वह हिन्दू फासीवादियों द्वारा प्रायोजित बाबा है। उसे संघ परिवार का पूर्ण समर्थन और सहयोग है। यह बाबा भी खुलेआम ‘हिन्दू राष्ट्र’ की बात करता है। यह स्पष्ट नहीं है कि यह बाबा स्वयं पैदा हुआ है या इसे सिखा-पढ़ा कर तैयारी के साथ आध्यात्म के लम्बे-चौड़े बाजार में उतारा गया है, पर इतना स्पष्ट है कि इसके इतनी जल्दी चमक उठने के पीछे संघियों का हाथ है। आध्यात्म की दुनिया में यह लंपट बाबा राजनीति में लंपट संघियों का ही प्रतिरूप है। 
    
ऐसे में सवाल उठता है कि ‘धर्मनिरपेक्ष’  कांग्रेसी कमलनाथ इस लंपट बाबा के दरबार में क्यों गये? इसका उत्तर व्यक्तिगत राजनीति और पार्टी राजनीति दोनों है। 
    
बहुत कम लोगों को यह याद है कि कमलनाथ आपातकाल के दिनों में संजय गांधी की लंपट मण्डली के सदस्य थे। वे दून स्कूल के दिनों में संजय गांधी के सहपाठी रह चुके थे। इतना ही नहीं 1984 के सिख विरोधी दंगों में जिन कांग्रेसी नेताओं का नाम प्रमुखता से उछला था उसमें कमलनाथ भी थे। इस पुराने रिकार्ड को देखते हुए कमलनाथ का लंपट बाबा के दरबार में हाजिरी लगाना उतना आश्चर्यजनक नहीं है। 
    
पार्टी के तौर पर देखें तो यदि शरीफ सज्जन राहुल गांधी स्वयं को जनेऊधारी शिवभक्त हिन्दू कह सकते हैं तथा मंदिर-मंदिर की दौड़ लगा सकते हैं तो कमलनाथ के अतीत वाला नेता लंपट बाबा के दरबार में क्यों नहीं जा सकता? वैसे भी कांग्रेस पार्टी ने मध्य प्रदेश में भाजपा के कठोर हिन्दुत्व के मुकाबले में नरम हिन्दुत्व की नीति अपना रखी है। मध्य प्रदेश में कांग्रेसी भी जोर-शोर से गौ-रक्षा और गौ-सेवा में लगे हैं। बल्कि वे इस मामले में भाजपाईयों पर लापरवाही का भी आरोप लगाते हैं। धार्मिक स्थलों की परिक्रमा वहां कांग्रेसी भाजपाईयों से कम नहीं करते। 
    
अब चूंकि कांग्रेसियों को लग रहा है कि वे मध्य प्रदेश विधानसभा का चुनाव जीत सकते हैं तो वे कोई कोर-कसर न रह जाये इसके लिए हर संभव जतन कर रहे हैं। ऐसे में यदि ‘हिन्दू राष्ट्र’ की बात करने वाले लंपट बाबा के दरबार में हाजिरी लगाकर कुछ वोट हासिल हो जायें तो इसमें नुकसान क्या है? 
    
वाकई इसमें नुकसान कुछ भी नहीं है। पूंजीवादी राजनीति में वोट ही सब कुछ हैं। और यदि कुछ दंद-फंद करके वोट मिल जायें तो अच्छा ही है। इससे भाजपा को सत्ता से बाहर करने में मदद ही मिलेगी। ढेर सारे भलेमानस ऐसा ही सोचते हैं। वे ‘नरम हिन्दुत्व’ के समर्थक नहीं हैं, पर भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए वे इस रणकौशल को बुरा नहीं मानते। 
    
पर इस तरह के रणकौशल की दिक्कत यह है कि आपकी रणनीति बिना लड़े ही ध्वस्त हो जाती है। आप कोई लड़ाई जीतने के चक्कर में पूरी जंग हार जाते हैं। कठोर हिन्दुत्व का मुकाबला नरम हिन्दुत्व से नहीं किया जा सकता। इसका मुकाबला उस सच्ची धर्म निरपेक्षता से ही किया जा सकता है जो दृढ़तापूर्वक घोषित करे कि धर्म व्यक्ति का निजी मामला है और उसे प्रत्यक्ष या परोक्ष तरीके से राजनीति में दखल देने की इजाजत नहीं दी जा सकती। 
    
पर इस तरह की घोषणा की उम्मीद कांग्रेस जैसी पार्टी से नहीं की जा सकती जिसके तमाम पापों का ही आज परिणाम है हिन्दू फासीवादियों का उभार। 

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता