महान समाजवादी अक्टूबर क्रांति के नेता लेनिन की मृत्यु 21 जनवरी 1924 को हुई थी। उनकी मृत्यु को 100 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। बीते 100 वर्षों के इतिहास पर महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति की छाप स्पष्ट तौर पर दिखलाई पड़ती है।
यह महान समाजवादी अक्टूबर क्रांति ही थी जिसने दुनिया के एक बड़े हिस्से से पूंजीपतियों का शासन उखाड़ फेंका था और मजदूरों का राज कायम किया था। इस क्रांति की अनुगूंज दुनिया के हर कोने में सुनाई दी थी। दुनिया भर के लुटेरे पूंजीपति जहां इस क्रांति से थर्रा गये थे वहीं दुनिया भर की मजदूर-मेहनतकश जनता ने दिल खोलकर इस क्रांति का स्वागत किया था। इस क्रांति के प्रभाव में ही दुनिया भर में क्रांतिकारियों की नई पीढ़ी पैदा हो गयी थी। भारत, चीन से लेकर लैटिन अमेरिका तक कोई देश इस क्रांति की अनुगूंज से अछूता नहीं था।
इस क्रांति के बाद कायम सोवियत समाजवादी समाज ने पहली दफा दुनिया को दिखा दिया था कि मजदूर न केवल कल-कारखाने चला सकते हैं बल्कि पूंजीवादी लूट का खात्मा कर समानता वाले समाज का भी निर्माण कर सकते हैं। सोवियत मजदूरों ने दिखा दिया कि कैसे जिन तमाम बुराईयों को पूंजीवादी समाज कभी खत्म न कर सका, उसे मजदूर राज ने एक झटके में खत्म कर डाला। बेकारी, वेश्यावृत्ति, महिलाओं की गुलामी, राष्ट्रों की पराधीनता सरीखी बीमारियों को सोवियत समाज ने खत्म कर डाला। यह समाजवादी सोवियत संघ ही था जिसने हिटलर के फासीवाद को निर्णायक शिकस्त दी। ऐसे मजदूर राज को लाने वाली अक्टूबर क्रांति के नेता थे लेनिन।
लेनिन और रूसी क्रांति का असर भारत के स्वाधीनता संग्राम पर भी पड़ा। भारतीय आजादी की क्रांतिकारी धारा ने इस क्रांति के प्रभाव में ही अपने संगठन के नाम में ‘समाजवादी’ शब्द जोड़ा और पूर्ण बराबरी वाले समाज की स्थापना अपना लक्ष्य घोषित किया। हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का नाम बदलकर हिन्दुस्तान समाजवादी रिपब्लिकन एसोसिएशन भगत सिंह के प्रस्ताव पर किया गया था। कहा जाता है कि अपनी फांसी के वक्त भगत सिंह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। अपने मुकदमे की सुनवाई के वक्त भी इन क्रांतिकारियों ने 21 जनवरी 1930 को तीसरे इण्टरनेशनल को तार भेज लेनिन के आदर्शों पर चलने की बात की थी।
जहां दुनिया भर के मजदूर-मेहनतकश लेनिन के दिखाये रास्ते पर आगे बढ़ रहे थे वहीं दुनिया भर का पूंजीवादी मीडिया-शासक वर्ग लेनिन व समाजवादी क्रांति पर हमले बोल रहा था। लेनिन समूचे शासक वर्ग को प्रथम शत्रु नजर आ रहे थे।
21 जनवरी 1924 को जब लेनिन की मृत्यु हुई तो दुनिया भर के मजदूरों-मेहनतकशों में शोक की लहर फैल गयी। मजदूर वर्ग ने अपना महान नेता खो दिया था। कहा जाता है कि लेनिन के आखिरी दर्शन के लिए उनके मकबरे पर मजदूरों का हुजूम सालों तक जाता रहा।
आज भले ही दुनिया में कोई समाजवादी देश नहीं है। पूंजीपति वर्ग बीते 100 वर्षों में मजदूर राज की पहली श्रंखला को डुबोने में सफल रहा है। पर यह भी सच है कि आज दुनिया का कोई कोना नहीं है जहां मजदूर-मेहनतकश-युवा समाजवादी क्रांति के लिए संघर्ष न कर रहे हों। अक्टूबर समाजवादी क्रांति और उसके नेता लेनिन इन संघर्ष करने वालों के लिए आज भी प्रेरणा का काम कर रहे हैं। निश्चय ही पूंजीवादी लूट-जुल्म-अत्याचार से मानवता एक दिन मुक्त होगी और समाजवादी सवेरा हर तरफ नजर आयेगा। इस समाजवादी सवेरा लाने की जंग में लगे योद्धाओं के लिए लेनिन हमेशा अमर रहेंगे। वे लेनिन के जीवन और उनके क्रांतिकारी सिद्धान्तों से हमेशा प्रेरणा लेते रहेंगे।
लेनिन मृत्यु वार्षिकी पर तार -भगत सिंह (1930)
21 जनवरी, 1930 को लाहौर षड़यंत्र केस के सभी अभियुक्त अदालत में लाल रूमाल बांध कर उपस्थित हुए। जैसे ही मजिस्ट्रेट ने अपना आसन ग्रहण किया उन्होंने ‘‘समाजवादी क्रान्ति जिन्दाबाद’’, ‘‘कम्युनिस्ट इंटरनेशनल जिन्दाबाद’’, ‘‘जनता जिन्दाबाद’’, ‘‘लेनिन का नाम अमर रहेगा’’ और ‘‘साम्राज्यवाद का नाश हो’’ के नारे लगाये। इसके बाद भगत सिंह ने अदालत में तार का मजमून पढ़ा और मजिस्ट्रेट से इसे तीसरे इंटरनेशनल को भिजवाने का आग्रह किया।
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लेनिन दिवस के अवसर पर हम उन सभी को हार्दिक अभिनन्दन भेजते हैं जो महान लेनिन के आदर्शों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ भी कर रहे हैं। हम रूस द्वारा किये जा रहे महान प्रयोग की सफलता की कामना करते हैं। सर्वहारा विजयी होगा। पूंजीवाद पराजित होगा। साम्राज्यवाद की मौत हो।
लेनिन -गणेश शंकर विद्यार्थी
वह सोता है, : वह विकराल नाशक!
अपने दाएं और बाएं, आगे और पीछे सब तरफ आग सुलगा कर, और उसकी लपट से प्राचीन संस्थाओं के अस्थिपंजर को भस्मी भूत करके लेनिन प्रगाढ़ नींद में सो रहा है। रूस के किसानों, मजदूरों, नीचे पड़े हुओं, बालकों और असहाय स्त्रियों का परम सहायक, साम्यवाद का प्रबल प्रचारक, विप्लव संगीत का गायक, निष्ठुरता की मूर्ति, दयानिधि लेनिन की आत्मा आज रूस पर मंडरा रही है। रूसवासियों ने उसका शरीर दफनाया नहीं। उन्होंने उस पर वैज्ञानिक रीति से मसाला लगा कर रूस के मास्को नगर में उसके पूर्ववत भौतिक रूप में स्थित रखा है।
श्रीमती फेनी हर्स्ट नामक एक अमेरिकन महिला ने इस शव के दर्शन किए हैं। वे कहती हैं कि आज भी लेनिन की इस शव-प्रदर्शनी ने रूस के किसानों में लेनिन के नवीन संदेश के प्रति जो सजगता उत्पन्न कर रखी है, उसे देख कर उस महापुरुष की महानता का कुछ-कुछ पता लगता है। जीवन काल में लोकप्रियता पा लेना या मरण के पश्चात् दसों वर्षों के पश्चात् लोकपूजित होना भी जीवन की महत्ता और सत्यपरता का द्योतक अवश्य है, परंतु इस प्रकार जीवन काल में और मरणोपरांत भक्ति भाव को अपनी ओर खींचे रहना जिस पुरुष के व्यक्तित्व का एक सहज गुण हो, उसकी उच्चता में किसी को संदेह हो ही नहीं सकता। लेनिन की उच्चता उसके प्रतिपक्षियों तक ने मान ली है। शायद ही कोई एक आदमी अपने समय में इतना निंदा-भजन, घृणास्पद और भयावह समझा गया हो जितना कि लेनिन! साथ ही, शायद ही किसी महापुरुष के हाथों उसके देशवासियों ने अपना सर्वस्व इस तरह निश्चिंततापूर्वक छोड़ दिया हो जितना कि रूसवासियों ने लेनिन के हाथों।
लेनिन चलता-फिरता विप्लव था। भोले बाबा के डमरू का नाशक रव उसके कंठ में था। उसके पद संचार से धरा कांपती थी। उसके एक इटेलियन मित्र ने लिखा था कि ब्वउतंकमए लवन ूपससमक ंदक उंकम ं तमअवसनजपवद (भाई! तुमने इच्छा की और विप्लव करा दिया!) ऐसे महान व्यक्ति को रूस ने कैसे अपनाया है, इसका कुछ विवरण हम यहां श्रीमती फेनी हर्स्ट के लेख के अनुसार देना चाहते हैं। रूस की राजधानी मास्को में रेड स्क्वायर नामक एक मोहल्ला है। उसी मोहल्ले में लेनिन का मकबरा है। अभी तक तो मकबरों में शव दफना कर रखे जाते थे। पर इस जगह पर लेनिन का शव मसालों में लपेट कर रखा गया है। पाठक राजा दशरथ के शव को भरत जी के लौट आने तक तेल की नाव में रखे जाने की बात रामायण में पढ़ चुके हैं। मास्को में लेनिन का शव वैज्ञानिक रीति से रक्षित किया जाकर प्रतिष्ठित किया गया है। ‘लेनिन का मकबरा’, ये शब्द सुनते ही पाठक शायद यह समझ बैठें कि कोई बढ़िया संगमरमर का बना हुआ शाही मकबरा होगा। पर लेनिन का मकबरा बहुत साधारण-सा स्थान है। उसमें बाहरी तड़क-भड़क जरा भी नहीं है। अभी फिलहाल एक कामचलाऊ मकबरा तैयार कर लिया गया है। यह लकड़ी का बना हुआ है। वह शान और शौकत, वह गुरुतासूचक बाह्य आडम्बर, वह बनावटी पवित्रता सूचक पाखंड, जो अक्सर श्मशान-स्थान और मकबरों में दिखाई देता है, यहां इस समानतावाद के आचार्य के मकबरे में नहीं पाया जाता। बिल्कुल सीधा-सीधा-सा काम है।
यही सीधा-सा स्थान रूस का तीर्थ है। जिस समय दालानों से हो कर मकबरे के दर्शन के लिए लोग जाते हैं तो ऐसा अनुभव होता है, मानो कई मानव-हृदय की गलियों को पार कर उस स्थान पर पहुंचे। लेनिन को यह दुनिया छोड़े एक बरस से अधिक का अरसा हुआ, परंतु उन दालानों से हो कर अगर आप मकबरे में पहुंचें तो आपको साक्षात् लेनिन के दर्शन होंगे। वही लेनिन! वही हाड़-चाम की मूर्ति! ऐसा मालूम होता है, मानो वह अपने किसी महाकोष को अधलिखा छोड़ कर, एक झपकी ले रहा है। मुख पर थकावट के चिह्न दिखलाई देते हैं। एक कांच पर वह लेटा हुआ है। ऊपर एक शीशा मढ़ा हुआ है। उसके मुख पर चिर शांति के चिह्न दृष्टिगोचर नहीं होते! जिसका जीवन असीम क्रियाशीलता और सतत युद्ध में बीता, जिसका प्रतिक्षण प्रतिपक्षियों की काट से सतर्क रहने में कटा, उसके शव के मुखमण्डल पर शांति कैसी? इसीलिए उसका मुख थकावट का परिचय देता है। वह सो गया है : ऐसा प्रतीत होता है। साथ ही यह भी अनुभव होता है कि यदि हम उसे जगा दें तो वह अपना अधूरा ग्रंथ- विश्वव्यापी विप्लव के कठोर गायन की एक अधूरी कड़ी- फिर लिखने लगेगा।
लेनिन के अधूरे ग्रंथ के पन्ने रूस ही में नहीं, सर्वत्र लिखे जा रहे हैं। दुनिया का दुःखी अंग उसका स्मरण करता है। रूस का वह अंग जो सदियों से कुचला जा रहा था, आज अपना मस्तक ऊंचा करके दुनिया को रहने लायक स्थान समझने लगा है। विप्लव होंगे। परिवर्तन की घटाएं घुमड़ेंगी। पुराने आततायीपने पर गाज भी गिरेगी। लेनिन से बढ़ कर महापुरुष भी पैदा होंगे और मनुष्यता को अपने संदेश सुनाएंगे। पर, उन सब अवस्थाओं में लेनिन का नाम आदर और गौरव के साथ लिया जाएगा। रूस का त्राता लेनिन संसार के त्राताओं की तालिका में खास स्थान प्राप्त कर चुका है। वह अपने स्थान से नहीं हटाया जा सकता। उसके हाथ खून से रंगे थे। पर, उनके हाथ, जो उसे और उसके काम को मटियामेट कर देना चाहते थे, निरपराधों की भावना की हत्या के अपराधी थे। लेनिन खड्ग-हस्त था। पर, उसकी तलवार रक्षा के लिए चमकी, आततायीपन के लिए नहीं।