
भारतीय समाज में आज भी मजदूर-मेहनतकश महिलाओं की स्थिति दोयम दर्जे की बनी हुई है। महिलाओं के संघर्ष के चलते महिलाओं के अधिकारों और सशक्तिकरण के लिए कई कानून बनाने को शासक वर्ग मजबूर हुआ है। इसमें महिलाओं को समानता, स्वतंत्रता और सुरक्षा देने वाले कई प्रावधानों की घोषणा की गयी है। पर जैसा कि हम जानते हैं कि पूंजीवादी व्यवस्था में समानता-स्वतंत्रता सरीखे प्रावधानों की औपचारिक कानूनी घोषणा ही संभव है। वर्गों में बंटे इस समाज में इन्हें व्यवहार में हासिल करना टेढ़ी खीर है। केवल संघर्ष कर ही महिलायें इन्हें व्यवहार में हासिल कर पाती हैं।
भारतीय संविधान में हासिल अधिकार महिलाओं को किसी ने सौगात में नहीं दिए हैं। इसके लिए महिलाओं ने बहुत संघर्ष और बहुत सी कुर्बानियां दी हैं। देश में आजादी के आंदोलन की शुरुआत से लेकर आजादी मिलने के बाद आज तक महिलाओं ने बहुत से संघर्ष किये हैं। तेलंगाना व तेभागा आंदोलन में भी महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भारतीय समाज में महिलाओं की शिक्षा के लिए सावित्रीबाई फुले, ज्योतिबा फुले और फातिमा शेख के संघर्षों को कौन भूल सकता है। इन संघर्षों के दम पर ही शासक वर्ग को मजबूरी में भारतीय संविधान में महिलाओं से संबंधित अधिकार दर्ज करने पड़े।
आइए विस्तार से समझते हैं कि भारतीय संविधान में महिलाओं के अधिकारों से जुड़े क्या-क्या प्रावधान हैं।
संविधान में समानता और गैर-भेदभाव
भारतीय संविधान में समानता के अधिकार का उल्लेख अनुच्छेद 14, 15 और 16 में किया गया है। ये प्रावधान महिलाओं को समाज में समान दर्जा और अवसर प्रदान करने की बात करते हैं।
1. अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार)- अनुच्छेद 14 सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण का अधिकार देता है। यह महिलाओं को किसी भी तरह के भेदभाव से बचाने का प्रावधान है।
2. अनुच्छेद 15 (भेदभाव के खिलाफ अधिकार) - यह अनुच्छेद धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान या किसी अन्य आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है। अनुच्छेद 15(3) विशेष रूप से राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बनाने की अनुमति देता है, जिससे महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने की दिशा में कदम उठाए जा सकें।
3. अनुच्छेद 16 (समान अवसर का अधिकार)- यह अनुच्छेद सार्वजनिक रोजगार के मामलों में समान अवसर की गारंटी देता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि महिलाओं को नौकरी के अवसरों में भेदभाव का सामना न करना पड़े।
स्वतंत्रता और गरिमा का अधिकार
भारतीय संविधान महिलाओं को स्वतंत्रता और गरिमा से जीने का अधिकार प्रदान करता है। अनुच्छेद 19, 21 और 21A महिलाओं को स्वतंत्रता, शिक्षा और जीवन का अधिकार प्रदान करते हैं।
1. अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता का अधिकार)- इस अनुच्छेद के तहत महिलाओं को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, आवागमन की स्वतंत्रता और व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। यह महिलाओं को अपनी राय रखने और आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनने में मदद करता है।
2. अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार)- यह अनुच्छेद गरिमा के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है। यह महिलाओं को यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और अन्य प्रकार के शोषण से बचाने का आधार बनता है।
3. अनुच्छेद 21A (शिक्षा का अधिकार)- यह प्रावधान 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देता है।
संरक्षण और विशेष प्रावधान
संविधान में महिलाओं के संरक्षण और विशेषाधिकारों के लिए कई अनुच्छेद हैं।
1. अनुच्छेद 39 (राज्य के नीति निदेशक तत्व) -अनुच्छेद 39 (a) महिलाओं और पुरुषों को समान वेतन की गारंटी देता है।
अनुच्छेद 39(d) यह सुनिश्चित करता है कि पुरुष और महिला दोनों को समान काम के लिए समान वेतन मिले।
2. अनुच्छेद 42 (मातृत्व राहत) - राज्य महिलाओं के लिए उचित और मानवीय कार्य स्थितियों और मातृत्व राहत प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।
3. अनुच्छेद 51A (मौलिक कर्तव्य) - इस अनुच्छेद के तहत प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह महिलाओं के सम्मान और गरिमा की रक्षा करे।
महिला आरक्षण और प्रतिनिधित्व
महिलाओं को निर्णय लेने वाली प्रक्रियाओं में भागीदारी देने के लिए संविधान में विशेष प्रावधान किए गए हैं।
1. पंचायती राज संस्थान (73वां और 74वां संशोधन)- इन संशोधनों ने महिलाओं को ग्राम पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों में 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया। यह कदम जमीनी स्तर पर महिलाओं के नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए लिया गया था।
2. महिला आरक्षण विधेयक - भारतीय संसद में महिलाओं के लिए 3 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाला कानून भविष्य में लागू होना है। यह महिलाओं को राष्ट्रीय और राज्य स्तर की राजनीति में अधिक प्रतिनिधित्व देने की दिशा में प्रयास है।
महिलाओं के खिलाफ अपराध और सुरक्षा
संविधान और अन्य कानूनी प्रावधान महिलाओं को हिंसा और शोषण से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
1. अनुच्छेद 23 (बलात श्रम का निषेध) - यह अनुच्छेद मानव तस्करी और जबरन श्रम पर रोक लगाता है। यह महिलाओं को बंधुआ मजदूरी और यौन शोषण से बचाने की बात करता है।
2. अनुच्छेद 51A(e) - यह प्रावधान नागरिकों से महिलाओं की गरिमा को बनाए रखने और उनके खिलाफ हिंसा और अन्य कृत्यों की निंदा करने का आह्वान करता है।
संविधान के तहत विशेष कानून
संविधान के तहत बनाए गए कई कानून महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करते हैंः
1. दहेज निषेध अधिनियम, 1961 -यह कानून दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए बनाया गया है।
2. मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 -यह महिलाओं को मातृत्व के दौरान वेतन और नौकरी की सुरक्षा प्रदान करता है।
3. घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 -यह अधिनियम महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करता है और उन्हें राहत उपाय प्रदान करता है।
4. यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2013 -यह कानून कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाया गया है।
महिलाओं के लिए विशेष योजनाएं
मोदी सरकार ने महिलाओं के सशक्तिकरण के नाम पर कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसेः
1. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना -यह योजना बालिकाओं की सुरक्षा और शिक्षा के लिए शुरू की गई है।
2. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना -गर्भवती महिलाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए यह योजना चलाई जाती है।
3. उज्ज्वला योजना -महिलाओं को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन प्रदान करने के लिए यह योजना लागू की गई है।
इस पूंजीवादी व्यवस्था की नियति ही ऐसी है कि यहां इन प्रावधानों का प्रभावी कार्यान्वयन नहीं हो सकता है। आज जिसके पास जितनी पूंजी है उसके पास उतने ही अधिकार हासिल हैं। हां, कहने के लिए सब बराबर हैं। पूंजीपति वर्ग की महिलाओं को तो सारे अधिकार हासिल ही हैं और वे इनका पूरा लाभ उठा भी रही हैं। मध्यम वर्ग में भी महिलाओं का एक हिस्सा इन कानूनों का एक हद तक लाभ उठा लेता है। लेकिन मजदूर-मेहनतकश महिलाओं को व्यवहार में इनका लाभ नहीं मिलता है।
पूंजीवाद में सारी चीजों का इस्तेमाल केवल मुनाफा कमाने के लिए किया जाता है। इसलिए शासक वर्ग और पूंजीपति नहीं चाहते कि महिलाओं को इनके बारे में जानकारी हो और महिलाओं को उनके संवैधानिक अधिकारों का पूरा लाभ मिल सके। हम इतिहास से जानते हैं कि जब रूस में मजदूरों का राज समाजवाद था तब सभी महिलाओं को हर वो अधिकार हासिल था जो एक सभ्य समाज में एक नागरिक को होने चाहिए लेकिन जब रूस में फिर से पूंजीवाद की पुनर्स्थापना हो गई तब से वहां फिर से महिलाओं की स्थिति खराब हो गई है।
आज के समय जब लोकतंत्र पर खतरा मंडरा रहा है, ऐसे में सभी प्रगतिशील नागरिकों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वो जुझारू संगठन बनाएं और इस व्यवस्था का भंड़ाफोड़ कर व्यवस्था परिवर्तन के लिए जुट जाएं।
-पूनम, सहारनपुर