राम की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही मोदी सरकार ने रामराज्य की व्यवहार में घोषणा कर दी। वैसे तो देश को हजार साल की कथित गुलामी से कथित मुक्ति मोदी जी ने 2014 में दिला दी थी। फिर 500 साल से ‘‘घर वापसी’’ की बाट जोह रहे राम की प्राण प्रतिष्ठा कर रामराज की साध भी पूरी कर ली। संघियों का यह रामराज ‘आदर्श’ सामाजिक राजनीतिक व्यवस्था है। लोकतंत्र का तो यह ‘आदर्श’ नमूना है। इस ‘आदर्श’ व्यवस्था के हिसाब से ही समाज को ढालने के ‘महान काम’ में मोदी और संघी लगे हुए हैं। यही इनका सुशासन और सुराज है।
संघियों के इस राम राज में मोदी ही राम हैं। इनका अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा सरपट अपने विरोधियों को अपने आगे झुकने को विवश करता जा रहा है। आखिरकार चक्रवर्ती सम्राट बनना तो मकसद है ही। इसलिए विपक्षी पार्टियों के सफाये का अभियान पूरे जोर-शोर से चल रहा है। अलग-अलग प्रांतों के अलग-अलग क्षत्रपों पर कभी ई डी, कभी आयकर विभाग तो कभी सी बी आई तो कभी कोर्ट या राज्यपाल के जरिए नकेल डाली जा रही है और इन्हें निगलने का काम बड़ी मुस्तैदी से चल रहा है।
निर्विघ्न और निष्कंटक रामराज तो इसी तरह कायम हो सकता है। कांग्रेस, सपा, टी एम सी, राजद, डी एम के आदि सभी इसके निशाने पर हैं। रामराज में इन और इतनी पार्टियों का क्या काम! ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ तो तभी सफल हो सकता है जब ‘एक देश-एक पार्टी-एक नेता’ का नारा सफल हो जाए।
भले ही आधुनिक राम और इनके रामराज को आगे बढ़ने के लिए और सत्ता हासिल करने के लिए आधुनिक लोकतंत्र की जरूरत थी। पूंजीवादी लोकतंत्र की चुनावी प्रक्रिया के जरिए सत्ता तक पहुंचने की मजबूरी थी। मगर अब सत्ता हासिल होने के बाद तो इसे कमजोर और खोखला करते हुए खत्म करके रामराज कायम करना इनका मकसद है। यही रामराज इनका हिन्दू राष्ट्र भी है।
इसकी स्थापना के लिए जरूरी है कि बाकी पार्टियों को भी हाशिये में धकेल दिया जाए या स्वयं में विलीन करा दिया जाए। इसलिए मोदी जी ही सर्वत्र छाए हुए हैं। मोदी स्तुति में हर रोज टी वी स्टूडियो सजे हुए हैं। टी वी एंकर इस आधुनिक राम की उपासना में, भक्ति में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। यही हाल अखबारों का है। इनका पहला पेज तो ‘राम’ को समर्पित है। इनकी तस्वीर ‘सर्वत्र’, ‘सर्वव्यापी’ है।
इस तरह ‘फकीर मोदी’ के ‘लोकनायक’ की छवि गढ़ी जा रही है। बस पत्नी को बिना तलाक के त्याग कर बेचारे संघी ‘राम’ पत्नी के बिना ही सारी ‘लीला’ करने को विवश हैं। यह भी ‘लोकतान्त्रिक’ होने का पक्का सबूत है। साबित होता है कि लोकतंत्र ‘राम’ के डी एन ए में है।
अस्पतालों, शहर भर में लगे होर्डिंगों, शौचालयों, बस ट्रेनों, सेल्फी प्वाइंट आदि हर जगह बस मोदी ही मोदी हैं। शायद ही कोई जगह बची हो। विपक्ष तो छोड़िए! भाजपा, संघ और अधिकांश नेता मोदी भक्ति में लीन हैं। हालत यह है कि ‘प्रजा’ के बीच जाकर भाजपाई प्रत्याशी कह रहे हैं वोट हमें नहीं ‘राम जी’ को करना है। अधिकांश भाजपाई प्रत्याशियों का अपना कोई वजूद अब लगभग नहीं बचा है। विपक्ष को तो हाशिये पर धकेल ही दिया गया है। जाहिर है चुनाव के लिए पार्टी रूपी विकल्प की स्थिति हाशिए पर है। इस तरह संघी अपने ‘राम’ की अगुवाई में अपने आदर्श समाज बनाने के काफी करीब पहुंच गए हैं।
रामराज में सही सूचनाओं, तथ्यों, आंकड़ों का क्या काम! इनको जारी करने वाली संस्थाओं का क्या काम! जो भी खबर हो, सूचना हो, तथ्य हो या रिपोर्ट हो वह भक्ति रस से सराबोर होनी चाहिए। ‘राम नाम’ की महिमा होनी चाहिए। इसलिए संस्थाओं का शुद्धिकरण किया जा चुका है। वहां स्तुतिगान करने वाले बिठाए जा चुके हैं जबकि ‘अप्रिय-दुष्ट जनों’ को हटा दिया गया। इस तरह ‘लोकतंत्र’ मजबूत होता है।
रामराज में सवाल नहीं भक्ति प्रिय है। आलोचना नहीं स्तुति, चाटुकारिता या तारीफ़ें पसंद हैं। आंदोलन, विरोध प्रदर्शन तो शासकों और शासितों, अमीर और गरीब, मालिक और मजदूर की जो व्यवस्था है ‘नियम’ है; उसमें खलल डालते हैं तथा असंतोष को स्वर देते हैं संगठित करते हैं। यह व्यवस्था और नियम को भंग करते हैं। जाति व्यवस्था के नियम को भंग करने पर राम ने शंबूक की हत्या की थी। वही आज के रामराज के आलोचकों के साथ भी अलग-अलग रूप में किया जाना, संघियों के ‘राम’ के लिए जरूरी बन जाता है।
इसलिए कोई यू ए पी ए में बंद है तो कोई अन्य संगीन मुकदमों में। कई तो सालों साल से बिना किसी सुनवाई के जेलों में बंद हैं। आगे भी कब बाहर आएंगे, नहीं मालूम। आंदोलन होने पर तो बैरिकेड, आंसू बम, पेलेट गन, कीलें, लाठियां और गोलियां सब कुछ ‘शांति व्यवस्था’ और ‘नियम’ बनाए रखने को तैनात हो जाती हैं। इस तरह ‘लोकतंत्र’ का अभ्यास भी हो जाता है। जिन्हें जेलों में डाला जाता है कोशिश होती है कि वो सबक सीखें, ‘महिमा’ को स्वीकारें और ‘भक्ति’ में डूबें। आखिर ‘भय बिनु होई न प्रीति’ तो राम राज में आदर्श नीति है।
रामराज में जो होगा वह ‘राम’ का ही उपासक होगा, भक्त होगा बाकियों का वहां क्या काम! इसलिए सबको इसके हिसाब से ढाला जा रहा है। गुजरात के बाद मणिपुर में प्रयोग दोहराया गया है। बाकी अन्य उत्तर भारत के राज्यों में यह प्रयोग अलग-अलग रूप में चल ही रहा है। इस तरह रामराज को और ज्यादा करीब लाने के प्रयास जोरों पर हैं।
मुस्लिम, ईसाई मुख्य रूप में इसके निशाने पर हैं। कहा जा रहा है कि इनका डी एन ए तो हिंदुओं का ही है। रामराज में विषम या विविध धर्मी कैसे हो सकते हैं? यह कहकर कि इनके पुरखे हिन्दू ही थे, उन्हें भी इसी हिसाब से ढालने की कोशिशें भांति-भांति के तरीके से जारी हैं। इनके खान-पान, रहन-सहन, रस्मों रिवाज को निशाने पर लिया जाता है। ‘लोकतंत्र’ में विविधता का क्या काम! ‘एक देश- एक भेष-एक भाषा’ यही रामराज की चाहत है।
रामराज को संविधान में दर्ज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से क्या लेना देना; संगठित होने व विरोध प्रदर्शन कर सकने के अधिकार से क्या लेना देना। रामराज में तो ‘राम’ ही विधि है ‘राम’ ही विधान है। इसी के हिसाब से ‘प्रजा’ को चलना है।
ये बड़ा फर्क जरूर है कि आधुनिक राम यानी फकीर मोदी सेवक हैं। एक प्रकार से कहा जाए तो शायद इन्हें ‘हनुमान’ कहना बेहतर होगा। उनका 56 इंच का सीना अपने आकाओं के लिए धड़कता रहता है।
इन्हें अडाणी, अंबानी जैसे आका सर्वाधिक प्रिय हैं। मगर इस लिस्ट में और भी बहुत हैं जो इन्हें प्रिय हैं। इनकी ही दौलत और संसाधनों की महिमा है कि मोदी जी सत्ता के शिखर पर हैं। इन्हीं की बदौलत मोदी जी फकीर व प्रधान सेवक बने हैं। रामराज के सारे जतन इन्हीं के लिए हैं रामराज इन्हीं के लिए है।
इन्हीं की बदौलत रामराज का अश्वमेघ यज्ञ आगे बढ़ता जा रहा है। इसी की महिमा है कि प्रजा का एक हिस्सा भी इनकी दौलत बढ़ने में ही अपनी मुक्ति देखता है भले ही वह बर्बाद हो रहा हो। इनकी दौलत और अपनी बर्बादी को वह भक्ति भाव से देखता है।
इस रामराज में बराबरी के सोच और मूल्य को तथा अधिकार बोध की चेतना और साथ ही सत्ता में प्रजा के लगातार हस्तक्षेप की चेतना को कुंद और खत्म करने की चौतरफा कोशिश जारी है। रामराज की तमाम कोशिशों के बावजूद ये मूल्य और ये चेतना बनी हुई है। तात्कालिक तौर पर भले ही यह कमजोर हो जाए मगर भविष्य इसी का है।
रामराज्य बनाम् लोकतंत्र
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को