रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के दो वर्ष से ज्यादा का समय बीत गया है। यह युद्ध लम्बा खिंचता जा रहा है। इस युद्ध के साथ ही दुनिया में और भी युद्ध क्षेत्र बनते जा रहे हैं। इजरायली यहूदी नस्लवादी सत्ता द्वारा गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार जारी है। इस नरसंहार के विरुद्ध फिलिस्तीनियों का प्रतिरोध युद्ध भी तेज से तेजतर होता जा रहा है। इसी प्रकार, एशिया प्रशांत क्षेत्र में टकराव बढ़ने की संभावनायें बढ़ती जा रही है। इन सभी में एक बात समान है। इन सभी टकरावों व युद्धों में एक तरफ अमरीकी साम्राज्यवादी और उसके सहयोगी हैं और दूसरी तरफ रूसी चीनी साम्राज्यवादी व उनके सहयोगी हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी अपनी प्रभुत्वकारी स्थिति को बचाये रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि रूसी और चीनी साम्राज्यवादी अपने प्रभाव विस्तार के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ये दोनों साम्राज्यवादी धड़े अपने-अपने पक्ष में दुनिया के शासकों को खड़ा कर रहे हैं।
रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण 24 फरवरी, 2022 को किया था। उसने इसे विशेष सैन्य अभियान की संज्ञा दी थी। उसने अपने सैन्य अभियान का उद्देश्य यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनने से रोकना, यूक्रेन में रूसी भाषा भाषी बहुल क्षेत्रों को यूक्रेन से मुक्त कराना (विशेष तौर पर डोनेस्क और लुहांस्क क्षेत्र को) और यूक्रेन का गैर-नाजीकरण करना बताया था। पिछले दो वर्षों में रूस ने डोनेस्क और लुहांस्क के साथ-साथ दक्षिणी यूक्रेन के दो इलाकों को भी रूस का हिस्सा बना लिया है। इसके पहले उसने क्रीमिया को पहले ही रूस का हिस्सा बना लिया था।
अमरीकी साम्राज्यवादी सोवियत संघ के विघटन के बाद से लगातार नाटो का विस्तार पूरब की तरफ करते रहे हैं। ऐसा करके उन्होंने रूस के साथ वादा खिलाफी की थी। उन्होंने जर्मनी की दीवार गिराये जाने के समय रूस के साथ वायदा किया था कि इसके बाद वे पूरब की तरफ एक इंच भी नाटो का विस्तार नहीं करेंगे। लेकिन उन्होंने यूगोस्लाविया के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। यह सब ‘मानवीय हस्तक्षेप’ के नाम पर किया गया। वे सोवियत संघ के प्रभाव क्षेत्र के देशों को एक-एक कर नाटो के अंतर्गत लाते गये। रूस असहाय होकर देखता रहा विरोध दर्ज कराता रहा। लेकिन इस नाटो विस्तार को रोकने में वह असमर्थ था। इस दौरान रूस अपने को आर्थिक तौर पर मजबूत करता रहा। वह पहले जार्जिया में नाटो विस्तार के विरोध में खड़ा हो गया। इसके बाद 2014 में यूक्रेन में रूसी समर्थक चुने हुए राष्ट्रपति का अमरीकी साम्राज्यवादियों ने तख्तापलट करा दिया। इस तख्तापलट के विरोध में क्रीमिया का क्षेत्र यूक्रेन से अलग हो गया। इसी तख्तापटल के विरोध में डोनेस्क और लुहांस्क के इलाके के लोगों ने अलग होने की घोषणा की। लेकिन उनको बेरहमी से यूक्रेनी सत्ता ने कुचला। इन दोनों पक्षों के बीच मिंस्क समझौते हुए। लेकिन मिंस्क समझौते का यूक्रेनी सत्ता ने पालन नहीं किया और इन क्षेत्रों में रूसी भाषा भाषी लोगों की प्रताड़ना जारी रखी और उनके प्रतिरोध को बलपूर्वक यूक्रेनी सत्ता कुचलती रही। इस दौरान यूक्रेनी सत्ता और फौज के अंदर नाजीवादी शक्तियों का प्रभाव बढ़ता गया और ये रूसी लोगों को अपना दुश्मन घोषित करती रहीं।
जब विदूषक जेलेंस्की सत्ता में आया तो वह इसी प्रक्रिया को और आगे बढ़ाने की ओर तेजी से बढ़ गया। अब वह नाटो का सदस्य बनने और यूक्रेनी सत्ता का नाजीकरण करने की रूस विरोधी मुहिम को तेज करते हुए यूक्रेन को आणविक शक्ति बनाने की योजना बनाने लगा। इन सारे कदमों के पीछे अमरीकी साम्राज्यवादियों की शह थी। अमरीकी साम्राज्यवादी रूस की चारों ओर से घेरेबंदी करके उसे अपने मनमुताबिक ढालना चाहते थे या तख्तापलट कराना चाहते थे।
इसी पृष्ठभूमि में रूस के विशेष सैन्य अभियान की शुरूवात हुई थी। यदि इस पृष्ठभूमि को न देखा जाए तो लगेगा कि रूस ने यूक्रेन पर हमला करके उसकी सम्प्रभुता को तोड़कर गलती की थी। लेकिन यदि समग्रता में देखा जाए तो यह रूसी हमला मुख्यतः अमरीकी साम्राज्यवादियों और उसके नाटो सहयोगियों द्वारा की जा रही साजिशों और उकसावे की कार्रवाइयों का जवाब था। इस हमले का शिकार यूक्रेनी अवाम हुआ।
अब जब दो साल से ज्यादा का समय बीत गया है तब यह आसानी से समझा जा सकता है। कि यह युद्ध अमरीकी और यूरोपीय साम्राज्यवादियों के विरुद्ध रूसी साम्राज्यवादियों के प्रभाव क्षेत्र के लिए युद्ध है और जेलेन्स्की अमरीकी साम्राज्यवादियों की कठपुतली बना हुआ है।
रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरूवात में अमरीकी साम्राज्यवादियों का प्रचार मीडिया रूसी हार के बारे में लगातार भविष्यवाणियों को प्रचारित करता रहा था। लेकिन जैसे-जैसे युद्ध बढ़ता गया और रूस पर लगाये गये प्रतिबंधों और नाकाबंदियों का प्रभाव उतना नहीं पड़ा जैसा कि अमरीकी साम्राज्यवादी उम्मीद कर रहे थे तब वैसे-वैसे रूसी हार और रूस में पुतिन के विरोध के बारे में झूठे प्रचार की कलई खुल गयी। अमरीकी और यूरोपीय साम्राज्यवादियों द्वारा यूक्रेन को अरबों-लाखों डालर के आधुनिक हथियार, विशेषज्ञों के नाम पर सैनिक तथा भाड़े के सैनिकों की मदद के बावजूद लड़ाई के मैदान में यूक्रेनी सैनिकों के बड़े पैमाने पर हताहतों की संख्या बढ़ती गयी और अग्रिम मोर्चे में यूक्रेनी फौज ने नये रंगरूटों की भरती शुरू कर दी। ये नये रंगरूट जल्दी ही मारे जाने लगे। यूक्रेनी सेना में भर्ती से बचने के लिए लोग बचने की राह तलाशने लगे। जब यूक्रेनी प्रत्याक्रमण बुरी तौर पर विफल हो गया तब यूक्रेनी राष्ट्रपति ने सेना की अनिवार्य भर्ती का फरमान जारी कर दिया। अब इस समय किशोरों तक की भर्ती की जा रही है। ये नये रंगरूट कुछ ही समय के प्रशिक्षण के बाद अग्रिम मोर्चे पर लड़ने के लिए भेजे जा रहे हैं। फौज में हताशा-निराशा व्याप्त हो गयी है। फिर भी यूक्रेनी शासक उन्हें मांस गलाने की भट्टी में झोंक रहे हैं।
पहले अमरीकी व ब्रिटिश साम्राज्यवादी यूक्रेन को आखिरी दम तक लड़ने को उकसा रहे थे। वे किसी भी तरह के समझौता करने से यूक्रेनी शासकों को रोक रहे थे। वे युद्ध के मैदान में रूसी सेना को पराजित देखना चाहते थे। जेलेन्स्की भी पुतिन के राष्ट्रपति रहते कोई समझौता नहीं करने की बात कर रहे थे। लेकिन तमाम आधुनिक हथियारों की आपूर्ति के बावजूद जब बड़े पैमाने पर यूक्रेनी सैनिक हताहत होते गए और लड़ने वाले सैनिकों की संख्या कम होने लगी। अमरीका और नाटो देशों से हथियारों और गोलाबारूद की यूक्रेनी शासकों की मांग बढ़ने लगी, जिसको पूरा करने में अमरीकी व यूरोपीय देश असमर्थ होने लगे। ऐसी स्थिति में, एक तरफ तो फ्रांस जैसे देश सीधे नाटो के युद्ध में शामिल होने की बात करने लगे। दूसरी तरफ, यह भी यूरोपीय संघ और नाटो को लगने लगा कि युद्ध के मैदान में यूक्रेन हार रहा है। इस हार को देखते हुए वे यूक्रेन से मांग करने लगे कि वह रूस के साथ समझौता करने के लिए तैयार हो जाये।
एक तरफ वे रूस के साथ समझौता करने के लिए जेलेन्स्की पर दबाव डाल रहे हैं वहीं दूसरी तरफ वे यूक्रेन को 1 खरब यूरो की सहायता देने का वायदा भी कर रहे हैं।
इसी के साथ नाटो और अमरीकी साम्राज्यवादी रूस के चारों ओर नाटो सैनिकों की तैनाती को बढ़ा रहे हैं। वे माल्दोवा में, ट्रांसनिस्ट्रिया इलाके पर, जहां रूसी हथियारों का जखीरा है और वहां रूस समर्थक अलगाववादी सत्ता है, हमला करके उसे रूसी प्रभाव से मुक्त करने की तैयारी में लगे है। इसी प्रकार, बाल्टिक सागर के पास रूसी अलग थलग इलाके कालीलिनग्राद को घेर कर वहां नियंत्रण करना चाहते हैं। अगर यह प्रक्रिया आगे बढ़ती है तो यह बड़े पैमाने के युद्ध या फिर परमाणु युद्ध की ओर ले जा सकती है। अगर यह परमाणु युद्ध तक युद्ध पहुंचा तो यह दोनों साम्राज्यवादी पक्षों के लिए तथा दुनिया के लिए विनाशकारी स्थिति होगी। स्वाभाविक है कि यह दोनों पक्ष नहीं चाहेंगे। यह दोनों पक्षों के लिए आत्मघाती कदम होगा। लेकिन यह चाहने या न चाहने की बात नहीं रह जायेगी। अगर स्थितियां आगे बढ़ जाती हैं तो यह बड़े युद्ध या फिर परमाणु युद्ध तक जा सकती है।
इसी स्थिति से अमरीकी साम्राज्यवादी और उसके प्रमुख नाटो समर्थक घबराये हुए हैं। इसलिए फ्रांस द्वारा यूक्रेन में नाटो सैनिकों की तैनाती की बात का अन्य साम्राज्यवादियों ने समर्थन नहीं किया है। रूसी शासक पहले से ही कहते रहे हैं कि या तो रूस जीतेगा नहीं तो दुनिया का विनाश होगा।
ऐसी स्थिति में, पश्चिमी साम्राज्यवादियों के सामने यही रास्ता सबसे बेहतर है कि वे यूक्रेन को रूस के साथ समझौते के लिए तैयार करें। स्वाभाविक है कि इस समय यूक्रेन को रूसी शर्तों को मुख्यतया मानने की विवशता होगी। इसके साथ ही, पश्चिमी ताकतें यूक्रेन को हथियारबंद करते हुए उसे भविष्य के युद्ध के लिए तैयारी करने को राजी करेंगी।
अभी ऐसा लगता है कि अमरीकी साम्राज्यवादी और नाटो के प्रमुख देश इसी संभावना पर विचार कर रहे हैं। क्योंकि पश्चिम एशिया में रूस, चीन की ईरान, सीरिया हौथी-हिजबुल्ला-फिलिस्तीन आदि की प्रतिरोध की धुरी के साथ यदि संयुक्त कार्रवाई हो जाती है तो इजरायल और अंततोगत्वा अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए और ज्यादा बड़ा संकट बन सकता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने राष्ट्रपति के चुनाव वर्ष में इन दोनों जगहों पर रूस और चीन की एकता नहीं चाहते। विशेष तौर पर पश्चिम एशिया में इन दोनों की प्रतिरोध की धुरी के साथ एकता अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए ज्यादा परेशानी का सबब बन सकती है। इजरायल के लिए तो यह स्थिति अस्तित्व का संकट भी पैदा कर सकती है।
इसलिए अमरीकी साम्राज्यवादी और उसके नाटो के प्रमुख सहयोगी रूस-यूक्रेन युद्ध में किसी न किसी तरह के समझौते के जरिए इधर शांति की प्रक्रिया में भागीदारी की ओर जाने के लिए विवश हैं।
लेकिन वे रूस को घेरने के अपने अभियान को जारी रखे रहेंगे। इसमें वे कितना सफल होते हैं यह रूस, चीन, उत्तरी कोरिया और ईरान के साथ-साथ ब्रिक्स और शंघाई सहकार संगठन के इर्दगिर्द इनकी गोलबंदी की ताकत पर निर्भर करेगा।
रूस-यूक्रेन युद्ध के दो वर्ष से ज्यादा समय बीतने के बाद अब युद्ध क्षेत्र में रूसी फौजों की पराजय का पश्चिमी देशों का सपना पूरा होता नहीं दीखता। इस जमीनी सच्चाई से वाकिफ हो वे आगे की योजना बना रहे हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध : दो वर्ष बाद
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को