साम्राज्यवादी लुटेरों की वर्चस्व की जंग में पिसते मजदूर-मेहनतकश

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ट्रम्प का टैरिफ युद्ध

अमेरिकी सरगना डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अपने पूर्व घोषित टैरिफ (तटकर) युद्ध को छेड़ दिया गया है। सभी देशों पर 34 प्रतिशत तटकर थोपने के बाद जहां ट्रम्प तीसरी दुनिया के 50 से अधिक देशों को झुकने पर मजबूर करने में सफल रहे वहीं यूरोपीय संघ व चीन के साम्राज्यवादी ईंट का जवाब पत्थर से देने पर अड़ गये। चीन ने जब प्रत्युत्तर में अमेरिकी मालों के आयात पर तटकर बढ़ाया तो अमेरिका ने और तटकर बढ़ा दिया। प्रत्युत्तर में चीन ने भी और तटकर बढ़ा दिया। नतीजा यह हुआ कि दोनों देश एक-दूसरे पर 124 प्रतिशत तक तटकर थोप चुके हैं। ट्रम्प ने 50 देशों को 90 दिन की राहत देने का ऐलान किया है। 
    
ट्रम्प द्वारा छेड़़े गये इस टैरिफ युद्ध का परिणाम यह निकला कि दुनिया भर के शेयर व प्रतिभूति बाजार भारी गिरावट के शिकार हुए। भारत का सेंसेक्स एक दिन में 4000 अंकों तक गिर गया। यही हाल बाकी बाजारों का भी रहा। यह गिरावट रुक-रुक कर जारी रहने की संभावना है। 
    
बीते दशकों में चीन मालों के निर्यात में अमेरिका को क्रमशः पीछे छोड़ते हुए पहले स्थान पर पहुंच गया था। अमेरिका मालों के व्यापार में भारी व्यापार घाटे की स्थिति में आ गया था। इसी के साथ वैश्वीकरण के चलते उसकी तमाम विनिर्माण कंपनियां चीन व तीसरी दुनिया के गरीब देशों की ओर सस्ते श्रम-सस्ते कच्चे माल की चाहत में स्थानांतरित होती गयीं। इसने अमेरिकी व्यापार घाटे को और बढ़ाया क्योंकि अब अमेरिकी कंपनियों का माल भी बाहर बन कर अमेरिका में आयात होने लगा। इसी के साथ अलग-अलग पुर्जे अलग-अलग देशों में बनने व किसी देश में असेम्बल होने से वैश्विक मूल्य श्रंखलायें पैदा हुईं। इन मूल्य श्रंखलाओं का सर्वाधिक लाभ साम्राज्यवादी कम्पनियों ने उठाया। जबकि खामियाजा दुनिया भर के मजदूरों-मेहनतकशों ने झेला। वैश्वीकरण के चलते पीछे हटते मजदूर वर्ग की पूंजी के सापेक्ष हैसियत और कमजोर हुई। पूंजी ने इसका लाभ उठा नये-नये हमले मजदूर वर्ग पर बोले। पूरी दुनिया के स्तर पर मजदूर वर्ग पर यह हमला बोला गया। 
    
अमेरिका जहां मालों के व्यापार में घाटे का शिकार है वहीं सेवाओं के व्यापार में वह भारी फायदा उठाता है। इसीलिए ट्रम्प ने मौजूदा तटकर मालों के आयात पर थोपकर इन मूल्य श्रंखलाओं को अस्त-व्यस्त कर अमेरिकी कम्पनियों को वापस अमेरिका में उत्पादन करने, अमेरिका में माल निर्यातक कम्पनियों को अमेरिका में निवेश करने की ओर ढकेलने का लक्ष्य बनाया है। हालांकि यह लक्ष्य पूरा होने में कई रुकावटें हैं। इस सबके जरिये अमेरिकी साम्राज्यवादी चीन को पीछे धकेल उसे वर्चस्व की जंग में हराना भी चाहते हैं। 
    
पर चीनी साम्राज्यवादी तीसरी दुनिया के मरियल शासकों की तरह कमजोर नहीं हैं। वे भी जैसे को तैसा का जवाब देने पर अड़े हुए हैं। पर साम्राज्यवादियों की इस जंग का असर दोनों अर्थव्यवस्थाओं और उनसे जुड़ी गरीब देशों की अर्थव्यवस्थाओं को गिरती के रूप में झेलना पड़ेगा। 
    
अमेरिका को निर्यात करने वाली कंपनियां बढ़े तटकर से हुई मूल्य वृद्धि को कम करने के लिए मजदूर वर्ग पर बोझ बढ़ायेंगी। अमेरिकी उपभोक्ता भारी मूल्य पर सामान खरीदने को मजबूर होंगे। चीन में अमेरिकी माल भी महंगे हो जायेंगे। इस सबका परिणाम महंगाई बढ़़ने व मजदूरी गिरने दोनों रूपों में मजदूर वर्ग को झेलना पड़ेगा। दुनिया भर के मजदूर-मेहनतकश इसे झेलने को मजबूर होंगे। 
    
हालांकि ट्रम्प कुछ देशों को 90 दिन की मोहलत दे व कम्प्यूटर-स्मार्ट फोन के मामले में चीन पर तटकर कम रखने के जरिये एक कदम पीछे खींच चुके हैं। चीन भी दुर्लभ धातुओं को अमेरिका को निर्यात रोकने की घोषणा कर इस युद्ध की आग में घी डाल रहा है। 
    
कुल मिलाकर साम्राज्यवादी अमेरिका व साम्राज्यवादी चीन वर्चस्व की आर्थिक जंग में उतर चुके हैं। यूरोपीय साम्राज्यवादी इस जंग में अपने हितों को तौल कर फूंक-फूंक कर कदम उठा रहे हैं। 
    
भारत सरीखे देशों का पूंजीवदी मीडिया इस गफलत में है कि हाथियें की इस जंग में उनकी सरीखी ताकत फायदा उठा ले जायेगी। वास्तविकता यही है कि हाथियों की जंग में घास ही कुचली जाती है। टैरिफ की इस जंग में दुनिया भर के मजदूर-मेहनतकश ही कुचले जा रहे हैं। 
    
वैश्वीकरण का आगमन भी दुनिया भर की जनता के लिए कंगाली-बर्बादी का सबब बना था और अब संरक्षणवादी कदमों के जरिये वर्चस्व की जंग का बोझ भी उसी के सिर पर मढ़ा जायेगा। साम्राज्यवादी विश्व व्यवस्था में शासकों के हर कदम उन्हें तबाही की ओर ही ले जाते हैं। इस तबाही से निजात इस साम्राज्यवादी-पूंजीवादी व्यवस्था के अंत से ही हासिल होगी। 

आलेख

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ट्रम्प के सामने चीनी साम्राज्यवादियों से मिलने वाली चुनौती से निपटना प्रमुख समस्या है। चीनी साम्राज्यवादियों और रूसी साम्राज्यवादियों का गठजोड़ अमरीकी साम्राज्यवाद के विश्व व्यापी प्रभुत्व को कमजोर करता है और चुनौती दे रहा है। इसलिए, हेनरी किसिंजर के प्रयोग का इस्तेमाल करने का प्रयास करते हुए ट्रम्प, रूस और चीन के बीच बने गठजोड़ को तोड़ना चाहते हैं। हेनरी किसिंजर ने 1971-72 में चीन के साथ सम्बन्धों को बहाल करके और चीन को सोवियत संघ के विरुद्ध खड़ा करने में भूमिका निभायी थी। 

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भारत आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा देश है और उसकी अर्थव्यवस्था भी खासी बड़ी है। इसीलिए दुनिया के सारे छोटे-बड़े देश उसके साथ कोई न कोई संबंध रखना चाहेंगे। इसमें कोई गर्व की बात नहीं है। गर्व की बात तब होती जब उसकी कोई स्वतंत्र आवाज होती और दुनिया के समीकरणों को किसी हद तक प्रभावित कर रहा होता। सच्चाई यही है कि दुनिया भर में आज भारत की वह भी हैसियत नहीं है जो कभी गुट निरपेक्ष आंदोलन के जमाने में हुआ करती थी। 

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भारत में वस्त्र एवं परिधान उद्योग में महिला एवं पुरुष मजदूर दोनों ही शामिल हैं लेकिन इस क्षेत्र में एक बड़ा हिस्सा महिला मजदूरों का बन जाता है। भारत में इस क्षेत्र में लगभग 70 प्रतिशत श्रम शक्ति महिला मजदूरों की है। इतनी बड़ी मात्रा में महिला मजदूरों के लगे होने के चलते इस उद्योग को महिला प्रधान उद्योग के बतौर भी चिन्हित किया जाता है। कई बार पूंजीवादी बुद्धिजीवी व भारत सरकार महिलाओं की बड़ी संख्या में इस क्षेत्र में कार्यरत होने के चलते इसे महिला सशक्तिकरण के बतौर भी प्रचारित करती है व अपनी पीठ खुद थपथपाती है।

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भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

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आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।