बीते दिनों इजरायल ने ईरान के सैन्य ठिकानों पर हमला बोल दिया। मिसाइलों के जरिये लगभग दिन भर किये गये इस हमले में ईरान के 4 सैनिकों के मरने व सैन्य सामग्री के भारी नुकसान की खबरें हैं। इजरायल ने इन हमलों को ईरान द्वारा इजरायल पर किये गये हमलों के प्रत्युत्तर के बतौर जायज ठहराया है। वास्तव में अमेरिकी साम्राज्यवाद की शह पर इजरायली शासक पगलाये कुत्ते की तरह फिलिस्तीन, लेबनान, ईरान सब पर हमला बोल रहे हैं। पश्चिम एशिया में बढ़ते जा रहे तनाव के मुख्य दोषी इजरायली-अमेरिकी शासक हैं।
इस हमले के जरिये इजरायल इस युद्ध को पूरे पश्चिम एशिया में विस्तारित करना चाहता है। लेबनान, ईरान को उकसा कर वह एक हद तक इस मकसद में कामयाब भी होता जा रहा है। युद्ध को विस्तारित कर वह फिलिस्तीन में ढाये जा रहे कहर व नरसंहार की जिम्मेदारी से खुद को बरी करना चाहता है। पर चूंकि अमेरिकी साम्राज्यवादी अभी राष्ट्रपति चुनाव के चलते निर्दोष लोगों के बेवजह कत्लेआम को और बढ़ाते हुए नहीं दिखना चाहते, इसलिए वे इजरायल को युद्ध विस्तार से रोके हुए हैं। उनके दबाव में ही इजरायल ने ईरान के परमाणु क्षेत्र पर हमले की बातें करने के बाद अपना इरादा बदल दिया। हां, अमेरिकी शासक इजरायल को हथियारों की आपूर्ति व अन्य सैन्य मदद लगातार करते रहे हैं।
इजरायली प्रधानमंत्री एक साल से अधिक समय से फिलिस्तीन में नरसंहार कर अपनी डांवाडोल होती रही कुर्सी को टिकाये रखना चाहते हैं। देश में अंधराष्ट्रवाद की लहर पैदा कर वे कुछ हद तक जनता का ध्यान भटकाने में सफल हुए हैं। हालांकि जब तब इजरायली लोग उनकी युद्ध नीति का बहादुरी से विरोध करते रहते हैं।
अब तक लगभग समूचा फिलिस्तीन रौंद डालने के बाद इजरायल न तो हमास को ही खत्म कर पाया है और न ही बंधकों को छुड़ा पाया है। इस तरह इजरायल को अपना अभियान सफलता की ओर बढ़ता नहीं दिख रहा है। हिजबुल्ला के कई नेताओं को मार डालने के बाद भी हिजबुल्ला के इजरायल पर हमले कम नहीं हो रहे हैं। एक मिसाइल तो इजरायल की सुरक्षा प्रणाली भेदते हुए नेतन्याहू के निवास तक जा पहुंची।
इन हालातों में ईरान पर इजरायली हमला ईरान को उकसा युद्ध विस्तार कर अमेरिकी व पश्चिमी साम्राज्यवादियों को सीधे युद्ध में खींचने का प्रयास है। फिलहाल ईरान की संतुलित प्रतिक्रिया के चलते इजरायल के मन की नहीं हो पायी पर इजरायली शासक युद्ध विस्तार के और उकसावे जरूर पैदा करेंगे। वे जितना ऐसा करेंगे दुनिया भर की जनता के दिलों में अत्याचारी इजरायली शासकों के प्रति नफरत उतनी ही बढ़ती जायेगी।
इजरायल का ईरान पर हमला
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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
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