
अधमरा पड़ा है जमीन पर
बची सांसें थोड़ी हैं।
लो हिसाब हाकिम से उसने कितनी लाठियां
तोड़ी हैं।
कतरा-कतरा पड़ा है
सांस का नब्ज उसकी टटोली है।
दो सूखी रोटी निकली जब खंगाली
उसकी झोली है।
दुखने लगा जबड़ा मजदूर का चबाके रोटी
जो रूखी है।
बच्चा बिलख रहा दूध को
मां की छाती भी सूखी है।
उजाड़ दिया आशियाना गारे रेत का।
ताकि महल बन सके उनके सेठ का।
पूरी कमर पर जख्म कर दिए
कसर कोई न छोड़ी है।
ईंट ईंट तोड़ दी झोपड़ी की
हाकिम की मनमानी हथौड़ी है।
लो हिसाब हाकिम से उसने कितनी लाठियां
तोड़ी हैं।
बड़े बूढे औरत किसी की शर्म न बाकी है।
अभी तो गाड़ेंगे ताबूत में
ये तो बस झांकी है।
गारा-मिट्टी चुन कर नींव ये जोड़ी है।
लो हिसाब हाकिम से उसने कितनी लाठियां
तोड़ी हैं।
पक्ष विपक्ष सब राम मिलाई जोड़ी है।
लो हिसाब हाकिम से उसने कितनी लाठियां
तोड़ी हैं।
-डा. रवि लाम्बा