पंजाब में जनवादी संगठनों द्वारा मानव अधिकार दिवस के अवसर पर व्यापक पैमाने पर विरोध मार्च, सम्मेलन आयोजित किये। पंजाब के तीन दर्जन से अधिक जनवादी संगठनों के संयुक्त मंच ने 10 दिसंबर, 24 को अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस के अवसर पर सेमिनार, सम्मेलन, रैलियां और जुलूस आयोजित किए। ये सामूहिक समारोह विभिन्न जिला मुख्यालयों और ब्लाक मुख्यालयों जैसे अमृतसर, गुरदासपुर, जालंधर, तरनतारन, मोगा, बठिंडा, बरनाला, संगरूर, पटियाला, नवांशहर, लुधियाना, मानसा आदि में आयोजित किए गए। इन कार्यक्रमों में तर्कशील सोसायटी पंजाब और एएफडीआर पंजाब द्वारा संयुक्त रूप से जारी एक पत्रक बड़ी संख्या में लोगों को वितरित किया गया। पत्रक में उस लंबे संघर्ष और परिस्थितियों पर प्रकाश डाला गया जिसके तहत 10 दिसम्बर 1948 को यू.एन.ओ. द्वारा मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (यूडीएचआर) की गई थी।
विभिन्न प्रख्यात बुद्धिजीवियों और जन नेताओं ने इन सभाओं को संबोधित किया और मानवाधिकारों के महत्व को समझाया। उन्होंने कहा कि यद्यपि संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकांश सदस्य देशों ने यूडीएचआर पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन दुनिया भर में मानवाधिकारों का लगातार उल्लंघन हो रहा है। हम सभी जानते हैं कि इन दिनों गाजा, यूक्रेन और दुनिया के कई अन्य हिस्सों में क्या हो रहा है। साम्राज्यवादी देश स्थानीय राजनीतिक व्यवस्थाओं के साथ मिलकर लोगों के अधिकारों को कुचल रहे हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हितों की पूर्ति के लिए पर्यावरण को खतरनाक स्तर तक प्रदूषित किया जा रहा है।
वक्ताओं ने कहा कि यद्यपि भारत यूडीएचआर पर हस्ताक्षर करने वाले शुरूआती देशों में से है, लेकिन मानवाधिकारों के सम्मान के मामले में भारतीय राज्य सबसे खराब प्रदर्शन करने वालों में से है। यद्यपि यूडीएचआर के कई मानवाधिकारों को नागरिकों के मौलिक अधिकारों के रूप में भारतीय संविधान में भी शामिल किया गया है, लेकिन इन अधिकारों का कभी सम्मान नहीं किया जाता है और इनका लगातार उल्लंघन किया जाता है। बुद्धिजीवियों, लेखकों, संवाददाताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक विरोधियों को बिना किसी कारण के जेलों में डाल दिया जाता है।
वक्ताओं ने सूचीबद्ध मानवाधिकारों की रक्षा करने तथा आम लोगों के लिए बेहतर और सार्थक जीवन के लिए अधिक लोकतांत्रिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए व्यापक और जीवंत जन आंदोलन के महत्व और आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
इसी अवसर पर उत्तर प्रदेश के बरेली में एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। नेहरू युवा केंद्र में हुई इस संगोष्ठी में एडवोकेट मानसी खन्ना ने मानवाधिकारों की सार्वजनिक घोषणा के बारे में विस्तार से बताया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डा. प्रदीप कुमार (पूर्व विधि विभागाध्यक्ष, बरेली कालेज) ने कहा कि नये आपराधिक कानून पारित करते समय 146 सांसद निलंबित थे। उन्होंने बताया कि नये कानून बनाते समय राजद्रोह कानून को धारा 152 में पुनः स्थापित कर दिया गया है। इसके अलावा पी यू सी एल, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रेमांजलि महिला विकास मंच, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, क्रांतिकारी किसान मंच एवं बरेली ट्रेड यूनियन फेडरेशन इत्यादि के प्रतिनिधियों ने भी संगोष्ठी को सम्बोधित किया। इस दौरान प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच ने क्रांतिकारी गीत भी प्रस्तुत किये। अंत में देश-दुनिया में जनवादी अधिकारों की रक्षा में हुये शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। -विशेष संवाददाता
मानव अधिकार दिवस पर विरोध मार्च, सम्मेलन
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फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।
यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं।
इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।