न्यूनतम वेतनमान और अदालतें

/newntam-vetanmaan-aur-adaalaten

अभी उत्तराखण्ड में सरकार द्वारा वेतन पुनरीक्षण के बाद बढ़ाये वेतन को हाईकोर्ट द्वारा कम किये जाने के मसले की अदालती सुनवाई पूरी भी नहीं हुई थी कि खबर आयी कि मई माह में मध्य प्रदेश में भी हाईकोर्ट ने इसी तरह सरकार द्वारा पुनरीक्षण के बाद बढ़ाये न्यूनतम वेतनमान पर रोक लगा दी गयी थी। इतना ही नहीं कोर्ट ने भुगतान किये बढ़े वेतन की मजदूरों से वसूली का अधिकार भी मालिकों को दे दिया था। 
    
म.प्र. में विधानसभा चुनाव के पहले अक्टूबर 23 में वेतन पुनरीक्षण कर मजदूरों के न्यूनतम वेतन को 1625 से 2106 रु. तक बढ़ाया गया था। गौरतलब है कि वेतन पुनरीक्षण 5 वर्ष में किये जाने का प्रावधान है पर यह 9 वर्ष बाद किया गया। पिछला पुनरीक्षण 2014 में हुआ था। 
    
15 मई 2024 को मध्य प्रदेश टैक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन ने मध्य प्रदेश सरकार को पत्र लिखा कि चूंकि म.प्र. में न्यूनतम वेतन देश के कई हिस्सों से ज्यादा है अतः न्यूनतम वेतन कम किया जाये। अन्यथा इस बढ़े वेतन से उद्योग संकट में चले जायेंगे। अब सत्तासीन भाजपा सरकार ने मालिकों की मांग पर त्वरित कार्यवाही करते हुए 13 दिन में 28 मई 24 को न्यूनतम वेतन सलाहकार बोर्ड की बैठक इस पर विचार हेतु बुला दी। इस बैठक में मौजूद श्रमिक संगठनों की तत्परता से न्यूनतम वेतन कटौती की मालिकों की मंशा असफल हो गयी। 
    
मालिकों की यही यूनियन पहले ही उच्च न्यायालय में न्यूनतम वेतन कटौती की मांग लेकर पहुंच गयी थी। इस याचिका पर यद्यपि न्यायालय ने यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया। और इसका अर्थ सुनवाई के दौरान बढ़ा हुआ वेतनमान जारी रहना था पर प्रदेश के श्रम विभाग ने इसका भिन्न अर्थ लगाया। उसने 24 मई 24 को अधिसूचना जारी कर वेतन वृद्धि वापस लेने का फरमान जारी कर दिया। 31 जुलाई 24 को अदालत में सरकार ने मालिकों का पक्ष लेते हुए कह दिया कि वो मालिकों की मांग पर विचार को तैयार है। न्यायालय ने सरकार को सभी पक्षों से चर्चा कर दो माह में नया प्रस्ताव देने को कहा। 
    
अब 2 माह की अवधि बीतने पर भी सरकार कोई प्रस्ताव अदालत में पेश नहीं कर रही है और इस तरह वेतन वृद्धि की मांग को लटकाये हुए है। वह लगातार न्यूनतम वेतन सलाहकार बोर्ड की बैठक स्थगित करते हुए मामले को लटकाये रखने के मूड में है। मालिक वर्ग सरकार की इस कारस्तानी से खुश है वहीं मजदूर हैरान-परेशान हैं। 
    
उत्तराखण्ड में व म.प्र. में लगभग एक समान प्रकरण देखते हुए समझा जा सकता है कि भाजपा सरकारें मजदूरों के वोट पाने हेतु कैसे पहले वेतन वृद्धि की नौटंकी करती हैं और फिर अदालत के जरिये उसे वापस ले लेती हैं। अदालतें भी आंखें मूंद यह देख पाने में असफल हो चुकी हैं कि भारी महंगाई में नाम मात्र की वेतन वृद्धि घोर अन्याय है। इसे कम करने की मांग तो अन्यायपूर्ण है ही। अदालतें मालिकों और सरकार की इच्छा को ही आदेशों में उतार रही हैं। भाजपा के अमृत काल में मजदूरों की किस्मत में नाम मात्र की वेतन वृद्धि भी नहीं है। 

 

यह भी पढ़ें :-

1. न्यूनतम वेतनमान में मामूली बढ़ोत्तरी भी पूंजीपतियों को बर्दाश्त नहीं

2. उत्तराखण्ड शासन द्वारा घोषित न्यूनतम मजदूरी मजदूरों के साथ में धोखा है

3. उत्तराखण्ड : न्यूनतम वेतन में वृद्धि वापस लेने की कवायद

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता