कौन किसका बॉस? कौन किसका पीर?
भाजपा का नया अध्यक्ष कौन होगा इसको लेकर अपने को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कहने वाली भाजपा तथा अपने को ‘‘सांस्कृतिक संगठन’’ कहने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच पर्दे
भाजपा का नया अध्यक्ष कौन होगा इसको लेकर अपने को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कहने वाली भाजपा तथा अपने को ‘‘सांस्कृतिक संगठन’’ कहने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच पर्दे
प्रधानमंत्री मोदी के पहले रूस, फिर पोलैंड और आखिर में यूक्रेन की यात्रा में दिए गए बयान मजेदार थे। यह आपको तब बेहद मजेदार लगने लगेंगे जब आप मोदी जी के बयान को भारत-पाकिस्
उ.प्र की योगी सरकार फासीवादी कदमों के मामले में केन्द्र सरकार को कड़ी टक्कर दे रही है। मोदी-शाह से चार कदम आगे बढ़कर योगी सरकार ने सारे जनवादी अधिकारों को खत्म करने की ठान
जुलाई के महीने के साथ ही उत्तर भारत की सड़कों पर एक विभीषिका शुरू होती है। इस विभीषिका को कांवड़ यात्रा कहा जाता है। भगवा कपड़ों में उत्तर भारत के राजमार्गों पर चल रहे ये का
पिछले कुछ समय से संघ मुखिया के बयान खासकर मोदी को निशाने पर लेने वाले रहे हैं। विशेषकर ऐसा चुनाव के बाद तब हुआ जब मोदी-शाह की जोड़ी अपने 400 पार के नारे से काफी दूर रह गई
पुरोला, पिछले साल राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में रहा था। ऐसा तब हुआ जब, मई माह में संघ परिवार ने फर्जी ‘‘लव जिहाद’’ के मुद्दे के इर्द गिर्द पुरोला में ‘‘मुसलमान मुक्त उत्तरा
रामायण के रचयिता माने जाने वाले वाल्मीकि के बारे में एक कहावत प्रचलित है। कहा जाता है कि वे पहले एक डाकू थे जो लूटमार कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। इसी क्रम में एक
हिंदू फासीवादियों के हिटलरी फरमान पर सुप्रीम कोर्ट ने भले ही अंतरिम रोक लगा दी है परन्तु कांवड यात्रा के दौरान समाज में जहर घोलने की इनकी इस कोशिश ने दिखला दिया है कि हिं
एक लम्बे समय तक बेरोजगारी की भयावह समस्या से आंख मूंदने के बाद अंततः भारत की शासक वर्गीय पार्टियों ने इसे स्वीकार करना शुरू कर दिया है। कांग्रेस पार्टी ने हालिया लोकसभा च
यहां यह बात स्पष्ट है कि भाषावार प्रांतों के गठन की मांग जहां जनता की जनवादी मांग थी वहीं धर्म के आधार पर राष्ट्र गठन की मांग एक प्रतिक्रियावादी व जनता के बीच विभाजन पैदा करने वाली मांग है। बात चाहे धर्म के आधार पर भारत-पाक विभाजन की हो या फिर हिन्दू राष्ट्र या सिख राष्ट्र की, ये सभी मेहनतकश जनता के बीच विभाजन पैदा करने के साथ कट्टरपंथ को बढ़ावा देती हैं।
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को