डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादी और ज्यादा पागलपन के साथ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में कहर बरपा रहे हैं। इसी कड़ी में वे वेनेजुएला में राष्ट्रपति मादुरो की हुकूमत को मिटाने की साजिश कर रहे हैं। वे अपनी इस साजिश को अंजाम देने के लिए वेनेजुएला के करोड़पतियों-अरबपतियों से बने विरोध पक्ष का इस्तेमाल कर रहे हैं। विरोध पक्ष राजधानी काराकस में सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहा है। इन विरोध प्रदर्शनों में वे लोगों की हत्याऐं कर रहे हैं। सरकारी इमारतों में आग लगा रहे हैं। अस्पतालों को जला रहे हैं। वे मांग कर रहे हैं कि मादुरो सरकार तत्काल जनमत संग्रह कराये। ‘‘राजनीतिक बंदियों’’ की रिहाई की मांग कर रहे हैं। अमेरिकी साम्राज्यवादी विरोध पक्ष की इन हिंसक कार्रवाइयों पर चुप्पी साधे हुए हैं। वे मादुरो सरकार को वेनेजुएला की इस कुव्यवस्था के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। <br />
अमेरिकी साम्राज्यवादियों व विरोध पक्ष की इस मिलीभगत का जवाब देते हुए मादुरो सरकार ने जवाबी प्रदर्शनों का तांता लगा दिया है। ह्यूगो शावेज को अपदस्थ करने की साजिश असफल होने के बाद ह्यूगो शावेज ने एक लाख लोगों की एक जन मिलिशिया बनायी थी। मादुरो सरकार ने इस जन मिलिशिया को बढ़ाकर पांच लाख तक करने का आह्वान किया है। मादुरो के इस आह्वान का संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव ने विरोध किया है। इसी प्रकार, अमेरिकी राज्यों के संगठन के महासचिव ने इसका विरोध किया है। यह ज्ञात हो कि अमेरिकी साम्राज्वादियों ने लातिन अमेरिकी देशों को अपने नियंत्रण में रखने के एक औजार के बतौर अमेरिकी राज्यों के संगठन का गठन किया था। वेनेजुएला का मीडिया वहां के अरबपतियों के नियंत्रण में है और वह विरोध पक्ष के साथ है। वह लगातार मादुरो सरकार के विरोध में विपक्षियों की मदद कर रहा है। <br />
अमेरिकी राज्यों के संगठन के महासचिव लुइस अलम्ग्रो ने मादुरो सरकार को चेतावनी दी कि वह समय से एक साल पहले या तो चुनाव कराये या अमेरिकी राज्यों के संगठन से निष्कासन का सामना करे। यह अमेरिकी साम्राज्यवादियों का कठपुतला मादुरो सरकार को तानाशाही के अपराधों सहित खाद्य संकट और भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए उससे समय से पहले चुनाव कराने की मांग कर रहा है। यह वस्तुतः किसी भी संप्रभु देश की संप्रभुता पर प्रहार है। <br />
यह अमेरिकी साम्राज्यवादियों का कठपुतला पिछले लगभग एक वर्ष में वेनेजुएला के सरकार विरोधियों से कम से कम 26 बार मिल चुका है। यह अपने आप में अमेरिकी राज्यों के संगठन का दुरुपयोग है।<br />
यह बात सही है कि वेनेजुएला में विकट आर्थिक संकट है। जब से तेल की कीमतों में गिरावट आयी है, तब से वेनेजुएला की आर्थिक स्थिति और ज्यादा खराब हुई है। यह तेलों की कीमतों में गिरावट वस्तुतः अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय नाकेबंदी का परिणाम है, जिसे अमेरिकी साम्राज्यवादियों की साजिश के बतौर समझा जाता है। चूंकि वेनेजुएला के कुल निर्यात का 90 प्रतिशत से ज्यादा तेल के निर्यात से आता है, अतः तेल की कीमतों में भारी पैमाने पर कटौती करनी पड़ी है। इस कटौती के कारण खाद्यान्न सामानों और दवाओं जैसी जरूरी मदों की भारी किल्लत उठानी पड़ रही है। <br />
वेनेजुएला जहां इन वास्तविक आर्थिक दिक्कतों का सामना कर रहा है, वहीं इन दिक्कतों का इस्तेमाल अमेरिकी साम्राज्यवादी और अमेरिकी राज्यों का संगठन हुकूमत परिवर्तन के लिए कर रहे हैं।<br />
जहां अमेरिकी राज्यों के संगठन का महासचिव वेनेजुएला को ऐसी समस्याओं का जिम्मेदार बताते हुए मादुरो सरकार के विरुद्ध जहर उगल रहा है, वहीं वह ब्राजील की तेमेर हुकूमत के प्रति चुप्पी साधे हुए है। यह जगजाहिर है कि ब्राजील की तेमेर हुकूमत संसदीय तख्तापलट के बाद सत्ता में आयी है। इसी प्रकार जहां वह वेनेजुएला के दक्षिणपंथी तख्तापलट करने वालों को राजनीतिक बंदी बताकर मादुरो सरकार को गिराने को बढ़ावा दे रहा है, वहीं वह कोलम्बिया के वास्तविक राजनीतिक बंदियों के बारे में चुप्पी साधे हुए है जो कि हजारों की संख्या में सालों-साल से बंद हैं।<br />
वस्तुतः अमेरिकी साम्राज्यवादी वेनेजुएला में अपने पिट्ठुओं को सत्ता में लाने के लिए मादुरो सरकार को किसी भी कीमत में अपदस्थ करना चाहते हैं। यहां पर पिछले 20 वर्षों से अमेरिकी साम्राज्यवादी फासिस्ट गिरोहों की मदद से मौत और विनाश का नंगा नाच कराके इसकी जिम्मेदारी का ठीकरा मादुरो सरकार के ऊपर फोड़ते हुए अपने हस्तक्षेप करने का बहाना हासिल करना चाहते हैं।<br />
वस्तुतः वेनेजुएला की दक्षिणपंथी प्रतिपक्षी पार्टियां अमेरिकी साम्राज्यवादियों की योजना को खुलेआम लागू करके सत्ता पलट करना चाहती हैं। वे अमेरिकी साम्राज्यवादी फौजी हस्तक्षेप की मदद से वेनेजुएला के पुराने भ्रष्ट राजनीतिज्ञों से बनी कठपुतली हुकूमत कायम करना चाहती हैं। जिस तरीके से ब्राजील और अर्जेण्टीना में नरम तख्तापलट के जरिए दक्षिणपंथी हुकूमतें सत्ता में आ गयी हैं और वे अमेरिकी साम्राज्यवादियों के इशारे पर नव उदारवादी आर्थिक नीतियां लागू करके जन विरोधी कदम उठा रही हैं। उसी तरह का तख्तापलट अमेरिकी साम्राज्यवादी वेनेजुएला में भी करना चाहते हैं। वेनेजुएला में सी.आई.ए. की मदद से दक्षिणपंथी ताकतों को गोलबंद किया गया है। एक साल पहले वे राष्ट्रीय असेम्बली में बहुमत में भी आ चुके हैं। इसके बावजूद वे अपने कुकृत्यों से लोगों के बीच बदनाम हैं।<br />
इसके बावजूद, दक्षिणपंथी प्रतिपक्षी पार्टियां मादुरो सरकार को अपदस्थ करने की अपनी साजिशों को छोड़ने या पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं। वे बमों से सरकारी इमारतों पर हमले जारी रखे हुए हैं। उन्होंने हाल ही में एक जच्चा-बच्चा अस्पताल पर हमला किया। इससे अस्पताल में 54 मासूम बच्चों को बाहर ले जाना पड़ा। दक्षिणपंथी नेताओं ने घोषणा की है वे अपना आंदोलन तब तक जारी रखेंगें जब तक कि उनकी मांगे नहीं मान ली जातीं। इन मांगों में वे ही मांगे हैं जिनकी चर्चा ऊपर अमरीकी राज्यों के संगठन के महासचिव ने की हैं। दक्षिणपंथी पार्टियों के नेताओं ने धमकी भी दी है कि आगे और भी हिंसक घटनायें हो सकती हैं।<br />
एक तरफ अमरीकी साम्राज्यवादी वेनेजुएला में तख्तापलट करके अपनी पिछलग्गू सरकार बनाने की कार्यवाई करने की हर तरह की कोशिशें कर रहे है, वहीं दूसरी तरफ मादुरो की सरकार भी उसी पूंजीवादी व्यवस्था के दायरे के भीतर समस्याओं का समाधान करना चाहती है। हृयूगो शावेज का अमरीकी साम्राज्यवाद का विरोध और उनके द्वारा भागीदारी वाला जनतंत्र न तो पूंजीवाद को खत्म कर सकता था और न उसने किया। जब तक तेल के निर्यात से अच्छी आमदनी हो रही थी तब तक लोगों के आंसू पोंछने वाले कुछ कल्याणकारी कदम लागू करना सम्भव था। ‘बोलीबराई क्रांति’ और ‘इक्कीसवीं सदी के समाजवाद’ दरअसल पूंजीवादी व्यवस्था के भीतर कुछ कल्याणकारी कदम ही थे। समूचे हृयूगो शावेज के शासन के दौरान और बाद में मादुरो शासन काल में न तो वहां के बड़े पूंजीपतियों को समाप्त किया गया था और न ही बड़े-बड़े रैंचरों को समाप्त किया गया था। न ही साम्राज्यवाद के साथ वहां की अर्थव्यवस्था को अलग किया गया था। हृयूगो शावेज की हुकूमत का ऐसा कोई इरादा भी नहीं था। वे सिर्फ अमरीकी साम्राज्यवाद की हस्तक्षेपकारी नीतियों का विरोध करते थे। ऐसी स्थिति में इस ‘इक्कीसवीं सदी के समाजवाद’ के गुब्बारे को पिचकना ही था और वह इस समय पिचक रहा है।<br />
मादुरो सरकार के गुड़ खाने और गुलगुले से परहेज करने की यह नीति उसे आर्थिक संकट से उबार नहीं सकती। ऐसे में पूंजीवादी दायरे में अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाने के लिये उसे खुद ऐसे कदमों को उठाना पड़ेगा जो उसे जन-विरोधी साबित कर देंगे। इसका फायदा उठाकर भी दक्षिणपंथी ताकतें सत्ता में आ सकती हैं। अमरीकी साम्राज्यवाद भी हस्तक्षेप करने का कोई बहाना ढूंढकर दक्षिणपंथी ताकतों को सत्ता में ला सकता है।<br />
दरअसल हकीकत यही है कि ‘बोलीबराई क्रांति’, ‘इक्कीसवीं सदी के समाजवाद’ और जन भागीदारी वाला लोकतंत्र के असली पूंजीवादी चरित्र की यही सीमायें बनती थीं। ये सीमायें खुद शावेज के जमाने में ही उजागर होने लगी थीं। मजदूरों, गरीब किसानों और मूलवासियों की पूंजीवाद विरोधी भावनाओं और अमरीकी साम्राज्यवाद की हस्तक्षेपकारी नीतियां की विरोधी भावनाओं पर सवार होकर हयूगो शावेज सत्ता में आये थे। लेकिन उनके सत्ता में आने के बाद मजदूर वर्ग और मेहनतकश आवाम की बुनियादी समस्याओं का कोई समाधान नहीं हुआ और न हो सकता था।<br />
अमरीकी साम्राज्यवाद और दक्षिणपंथी ताकतों के प्रति अभी भी मजदूर वर्ग और व्यापक मेहनतकश अवाम में कोई सहानुभूति नहीं है। लेकिन मादुरो सरकार जब उनकी समस्याओं का कोई समाधान नहीं करेगी तो इसके प्रति भी मजदूर वर्ग व मेहनतकश अवाम लम्बे समय तक समर्थन नहीं जारी रख सकती। <br />
वेनेजुएला के आर्थिक संकट और वहां के मजदूर वर्ग व मेहनतकश अवाम की बुनियादी समस्याओं का समाधान पूंजीवाद के खात्मे और समाजवाद की विजय के साथ ही हो सकता है। यह ‘इक्कीसवीं सदी के समाजवाद’ के नकली समाजवाद से नहीं हो सकता। इससे दुनिया भर में उन लोगों की भी आंखें खुल जानी चाहिए जो हृयूगो शावेज के सत्ता में आने को वास्तविक तौर पर समाजवाद की जीत मानने लगे थे। <br />
लेकिन मौजूदा समय में अमरीकी साम्राज्यवादियों की दक्षिणपंथी ताकतों को वेनेजुएला में सत्ता में वापस बैठाने की और मादुरो सरकार को अपदस्थ करने की हर साजिश का विरोध न सिर्फ वेनेजुएला की अवाम को करना चाहिए बल्कि दुनिया के हर न्याय पसंद व्यक्ति को करना चाहिए। <br />
अमरीकी साम्राज्यवादी आज दुनिया भर में सैनिक हस्तक्षेप और अन्यायपूर्ण युद्ध में लगे हुए हैं। ट्रम्प के सत्ता में आने के बाद उनकी पागलपन भरी युद्धोन्मादी कार्रवाईयां और तेज हो गयी हैं। अफगानिस्तान, यमन, सीरिया, उत्तरी कोरिया के सभी क्षेत्रों में कहर बरपा रहे हैं। इनकी ये आक्रामक कार्रवाइयां ही इन्हें विनाश की ओर देर-सबेर ले जायेंगी। <br />
यह वेनेजुएला में होगा और अन्य जगहों पर भी। लेकिन इस कार्य को अंजाम तक पहुंचाने का कार्य मादुरो जैसे लोग नहीं कर सकते। यह काम मजदूर वर्ग का सचेत नेतृत्व ही कर सकता है।
अमेरिकी साम्राज्यवाद द्वारा वेनेजुएला में हुकूमत परिवर्तन की साजिश
राष्ट्रीय
आलेख
ट्रम्प ने घोषणा की है कि कनाडा को अमरीका का 51वां राज्य बन जाना चाहिए। अपने निवास मार-ए-लागो में मजाकिया अंदाज में उन्होंने कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को गवर्नर कह कर संबोधित किया। ट्रम्प के अनुसार, कनाडा अमरीका के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, इसलिए उसे अमरीका के साथ मिल जाना चाहिए। इससे कनाडा की जनता को फायदा होगा और यह अमरीका के राष्ट्रीय हित में है। इसका पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और विरोधी राजनीतिक पार्टियों ने विरोध किया। इसे उन्होंने अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता के खिलाफ कदम घोषित किया है। इस पर ट्रम्प ने अपना तटकर बढ़ाने का हथियार इस्तेमाल करने की धमकी दी है।
आज भारत एक जनतांत्रिक गणतंत्र है। पर यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को पांच किलो मुफ्त राशन, हजार-दो हजार रुपये की माहवार सहायता इत्यादि से लुभाया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को एक-दूसरे से डरा कर वोट हासिल किया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें जातियों, उप-जातियों की गोलबंदी जनतांत्रिक राज-काज का अहं हिस्सा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें गुण्डों और प्रशासन में या संघी-लम्पटों और राज्य-सत्ता में फर्क करना मुश्किल हो गया है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिक प्रजा में रूपान्तरित हो रहे हैं?
सीरिया में अभी तक विभिन्न धार्मिक समुदायों, विभिन्न नस्लों और संस्कृतियों के लोग मिलजुल कर रहते रहे हैं। बशर अल असद के शासन काल में उसकी तानाशाही के विरोध में तथा बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोगों का गुस्सा था और वे इसके विरुद्ध संघर्षरत थे। लेकिन इन विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के मानने वालों के बीच कोई कटुता या टकराहट नहीं थी। लेकिन जब से बशर अल असद की हुकूमत के विरुद्ध ये आतंकवादी संगठन साम्राज्यवादियों द्वारा खड़े किये गये तब से विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के विरुद्ध वैमनस्य की दीवार खड़ी हो गयी है।
समाज के क्रांतिकारी बदलाव की मुहिम ही समाज को और बदतर होने से रोक सकती है। क्रांतिकारी संघर्षों के उप-उत्पाद के तौर पर सुधार हासिल किये जा सकते हैं। और यह क्रांतिकारी संघर्ष संविधान बचाने के झंडे तले नहीं बल्कि ‘मजदूरों-किसानों के राज का नया संविधान’ बनाने के झंडे तले ही लड़ा जा सकता है जिसकी मूल भावना निजी सम्पत्ति का उन्मूलन और सामूहिक समाज की स्थापना होगी।
फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।