आटा और डाटा

देश के संघी प्रधानमंत्री ने संघ परिवार के जमीनी प्रचार को यह सीख दी कि वे जाकर जनता को यह बतायें कि यदि आटा महंगा हुआ है तो डाटा उससे भी ज्यादा सस्ता हुआ है। इसलिए संघी सरकार पर आम जनता को महंगाई के डंडे से पीटने का आरोप नहीं लगाया जा सकता। 
    
अपने चरित्र के अनुरूप ही संघी प्रधानमंत्री ने यह बात कहते हुए अर्द्ध सत्य और झूठ का सहारा लिया। अर्द्ध सत्य डाटा के बारे में था तो झूठ आटा के बारे में। 
    
यह कहना सही है कि डाटा पिछले सालों में सस्ता हुआ है यानी इंटरनेट सेवाओं के दाम घटे हैं (हालांकि पिछले दो सालों में ये तेजी से बढ़े हैं)। पर यह कहना झूठ होगा कि यह मोदी सरकार की नीतियों के कारण हुआ है। यह उस तकनीकी विकास के कारण हुआ है जो पूंजीवाद की आम गति है। 
    
पूंजीवाद में तकनीकी विकास के चलते चीजों की कीमत घटती जाती है क्योंकि प्रति इकाई उत्पादन लागत घटती जाती है। यानी यदि अन्य कारक न हों तो पूंजीवाद में चीजें लगातार सस्ती होती जायेंगी। कम्प्यूटर के बारे में तो कहा ही जाता है कि वहां एक नियम काम करता है- हर अठारह महीनों में कम्प्यूटर की गणना क्षमता दोगुनी हो जाती है जबकि कीमत आधी हो जाती है। 
    
इसलिए यदि पिछले सालों में इंटरनेट सेवाओं के दाम गिरे हैं तो न तो यह अजूबा है और न ही मोदी सरकार की मेहरबानी। यदि सरकार को इसका श्रेय दिया जाना है तो यह पहले की कांग्रेस सरकार को जाना चाहिए जिसने इंटरनेट के प्रसार के लिए बुनियादी ढांचा खड़ा किया था। 
    
यदि डाटा के बारे में संघी प्रधानमंत्री ने अर्द्धसत्य बोला था तो आटा के बारे में सफेद झूठ। आटा स्वयं तो महंगा हुआ ही है लेकिन वह साथ ही सभी सामान्य जरूरत की चीजों का प्रतीक है जो आम जनता इस्तेमाल करती है और जिसे सरकारी आंकड़ों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से आंका जाता है। आम जनता के लिए इसी महंगाई का मतलब होता है और यह मोदी काल में पांच से दस प्रतिशत रही है। यानी आम उपभोग की चीजें सालाना पांच से दस प्रतिशत महंगी हो गईं। 
    
जब कहा जाता है कि उपभोक्ता महंगाई बढ़ गई तो यह उपभोग की सारी वस्तुओं की कीमत के आधार पर कहा जाता है। हो सकता है, इसमें कुछ चीजें सस्ती हो गई हों और कुछ चीजों के दाम वही हों। पर कुल मिलाकर उपभोक्ता को अब ज्यादा देना पड़ रहा है। 
    
उदाहरण के लिए पिछले सालों में रसोई गैस के दाम लगातार बढ़ते गये हैं। इसके मुकाबले चीनी के दाम लगभग स्थिर हैं। और जैसा मोदी कहते हैं, मोबाइल सेवा सस्ती हुई है। पर कुल मिलाकर उपभोग की चीजें पांच से दस प्रतिशत महंगी हो गई हैं। 
    
इसलिए देश के प्रधानमंत्री द्वारा महंगाई के मसले पर कुछ सस्ती हो गई चीजों की चर्चा करना सरासर झूठ बोलना है क्योंकि इसका आशय यह निकलता है कि कुल मिलाकर चीजें सस्ती हुई हैं और इसलिए महंगाई नहीं है। यह तब जब सरकार का वित्त मंत्रालय बताता है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर मोदी काल में महंगाई पांच से दस प्रतिशत रही है। 
    
आम जन अपने अनुभव से जानते हैं कि देश का प्रधानमंत्री महंगाई के मामले में झूठ बोल रहा है। यह बात इसलिए और भी चुभती है कि लोगों की आय महंगाई के हिसाब से नहीं बढ़ रही है। लोगों का जीवन स्तर गिर रहा है। 
    
कहा जाता है कि फ्रांसीसी क्रांति के पहले जब भूखी जनता ने कहा कि खाने के लिए ब्रेड नहीं है तो रानी मेरी एंटोनी ने जवाब दिया कि ब्रेड नहीं है तो वे केक खायें। आज भारत के संघी प्रधानमंत्री आटा महंगा होने का सवाल करने पर डाटा सस्ता होने का राग अलापते हैं। आटा नहीं है तो लोग डाटा खायें। क्या संघी प्रधानमंत्री का हश्र भी रानी मेरी एंटोनी जैसा होगा? 

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