फिलिस्तीनी जेनिन कैम्प पर इस्राइली हमला

2 जुलाई को इस्राइली सेनाओं ने वेस्ट बैंक स्थित जेनिन कैम्प पर भीषण हमला बोल दिया। इस जेनिन शरणार्थी कैम्प में करीब 14 हजार फिलिस्तीनी नागरिक रहते हैं। हमला 3 दिनों तक चलता रहा। 2002 के बाद से वेस्ट बैंक के किसी इलाके पर यह सबसे भीषण हमला था। द्रोण, मिसाइलों, मानवरहित विमानों के साथ सैकड़ों इस्राइली सैनिक जेनिन कैम्प में घुस गये और चारों ओर तबाही बरपा करने लगे। उन्होंने ढेरों घर तोड़ डाले। इस हमले में 3 बच्चों समेत 12 फिलिस्तीनी लोग मारे गये। 120 फिलिस्तीनी लोग घायल हो गये जिनमें से दर्जनों गम्भीर हालत में हैं। करीब 3000 लोग अपना घर छोड़ कर भाग जाने को मजबूर हो गये। 
    
इस भीषण हमले के बाद जब मारे गये लोगों की शव यात्रा में शामिल होने के लिए फिलिस्तीनी अथारिटी के तीन बड़े अधिकारी गये तो उनसे नाराज लोगों ने ‘गेट आउट-गेट आउट’ के नारे लगा उन्हें शवयात्रा से भगा दिया। लोगों का गुस्सा फिलिस्तीनी अथारिटी के प्रति बढ़ता जा रहा है। बीते दो वर्षों में वेस्ट बैंक के विभिन्न इलाकों में इस्राइली हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। लोगों को लगने लगा है कि फिलिस्तीनी अथारिटी उनकी सुरक्षा करने में अक्षम हो चुकी है।
    
फिलिस्तीनी अथारिटी 1993 में फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) व इस्राइल के बीच हुए ओस्लो समझौते से अस्तित्व में आयी थी। इस अथारिटी ने लोगों से वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी व पूर्वी येरूशलम को मिला स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य बनाने का वायदा किया था। पर समय के साथ फिलिस्तीनी अथारिटी का वेस्ट बैंक पर भी नियंत्रण कमजोर होता गया और वह इसके महज 18 प्रतिशत हिस्से पर ही वर्तमान में नियंत्रण रखती है। इस हिस्से में भी बढ़ते इस्राइली हमलों पर रोक लगाने में वह विफल साबित हुई है। हमले के करीब हफ्ते भर बाद अथारिटी के नेता महमूद अब्बास ने जेनिन कैम्प का दौरा किया। इस दौरे का भी बहुत से कैम्पवासियों ने विरोध किया। अब्बास ने शीघ्र ही कैम्प में पुनर्निर्माण की बात कही। 
    
फिलिस्तीनी अथारिटी में व्याप्त भ्रष्टाचार व फिलीस्तीनी मुक्ति संघर्ष से मुंह मोड़ने के चलते लोगों का इससे मोहभंग हो चुका है। परिणामस्वरूप लोग या तो खुद आत्मरक्षा के उपाय करने लगे हैं या कुछ हथियारबंद इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन इनके बीच खड़े हो गये हैं। इस्राइली सेना जब इन फिलिस्तीनी इलाकों पर हमला करती है तो वह फिलिस्तीनी हथियारबंद समूहों के खात्मे के लिए इन हमलों को जायज ठहराती है। हालांकि हमले के वक्त वह बेगुनाह आम नागरिकों-महिलाओं -बच्चों किसी को भी निशाना बनाने, मार डालने तक से परहेज नहीं करती। 
    
इस्राइली शासकों के सिर पर अमेरिकी साम्राज्यवादियों का हाथ है। बीते 6-7 दशकों में इस्राइली शासकों ने फिलिस्तीनी इलाकों पर कब्जा करते-करते उन्हें बेहद छोटे इलाके में सिमटने को मजबूर कर दिया है। इस्राइली शासक समूचे फिलिस्तीन को हड़पने की मंशा रखते हैं। अमेरिकी साम्राज्यवादी इस्राइली सेना के भीषण हमलों को इस्राइल की आत्मरक्षा के नाम पर जायज ठहराते हैं। मौजूदा जेनिन कैम्प पर हमले के वक्त भी अमेरिकी सरकार व अमेरिकी मीडिया ने निर्लज्जता से इस्राइल का साथ दिया।
    
इस्राइली सेना के बढ़ते हमलों के साथ फिलिस्तीनी अथारिटी के आत्मसमर्पण से नाराज फिलिस्तीनी अवाम अब अपनी सुरक्षा का खुद इंतजाम करने लगी है। जेनिन कैम्प में भी युवाओं का एक ऐसा आत्मरक्षा दल अस्तित्व में आ चुका है जो ऐसे हथियार तैयार करता है जिनसे हमले के वक्त इस्राइली सेना को नुकसान पहुंचाया जा सके। सामूहिक तौर पर तैयार इन हथियारों में एण्टी टैंक धातु के अवरोधक, विस्फोटक कंटेनर, हाथ से फेंके जाने वाले हथगोले आदि शामिल हैं। यहां तक कि बोतलों में अंडा व इस्तेमाल हुआ तेल भरकर भी उन्हें हथगोलों की तरह इस्तेमाल किया जाता है। कैम्प के निकास द्वार पर बड़े-बड़े धातु अवरोधक खड़े कर टैंकों का रास्ता रोका जाता है। सड़कों पर भी विस्फोटक लगाये जाते हैं जो इस्राइली सेना के वाहनों को नुकसान पहुंचा सकें। 
    
इस सब तैयारी का परिणाम यह हुआ कि इस्राइली सेना द्रोण, हवाई जहाजों की सुरक्षा पंक्ति के बगैर सीधे कैम्प में नहीं घुस सकती। विस्फोटकों से उनके वाहन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इस्राइली हमलों के वक्त फिलिस्तीनी युवा, महिलायें-लड़कियां सभी आत्मरक्षा के प्रयासों में एक टीम के बतौर काम करने लगते हैं। जेनिन कैम्प की देखा-देखी वेस्ट बैंक के बाकी इलाकों में भी इसी तरह के हथियार बनाये जाने लगे हैं। 
    
फिलिस्तीनी जनता जानती है कि इन हथियारों से आधुनिकतम हथियारों से लैस इस्राइली सेना को नहीं हराया जा सकता है पर उसे हैरान परेशान जरूर किया जा सकता है। इस्राइली सरकार में चूंकि दक्षिणपंथी तत्वों की तादाद बढ़ गयी है इसलिए भी फिलिस्तीनी अवाम नये हमलों से निपटने की तैयारी कर रही है। 
    
कुल मिलाकर फिलिस्तीन के लड़ाके दुनिया की मजबूत इस्राइली सेना के खिलाफ सर झुकाने के बजाय अंतिम दम तक लड़ने का जज्बा दिखा अपनी गौरवशाली संघर्ष की विरासत को कायम रखे हुए हैं।  

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को