भारतीय समाज में जैसे-जैसे पूंजीवाद का विकास हुआ वैसे-वैसे आधुनिकता भी बढ़ी है। नई पीढ़ी/जनरेशन अपने पहले की पीढ़ी से दो कदम आगे है। क्योंकि आज की पीढ़ी को ढेर सारे ऐसे संसाधन, माहौल आदि उपलब्ध है जो पहले की पीढ़ी को अन्य-अन्य कारणों से नहीं मिला था। आज के माहौल में किशोर लड़के-लड़कियां अपनी सहमति से यौन संबंध बना रहे हैं। 18 साल से कम उम्र के किशोर लड़के-लड़कियां प्यार कर यौन संबंध बनाते हैं या फिर शादी करने के इरादे से घर से चले जाते हैं। ऐसे में घर वाले उन पर अपराधिक मामले लगा देते हैं। यौन संबंध की पुष्टि के बाद लड़कों पर पॉक्सो अधिनियम की धारा लगा दी जाती है। लड़के को पॉक्सो लगा जेल में डाल दिया जाता है। अगर आरोपी लड़का 18 वर्ष से कम उम्र का हुआ तो उसे बाल सुधार गृह में डाल दिया जाता है। यौन हमले के आरोप में मुकदमा चलने का मतलब होता है कि उनका अपराधिक हो जाना। इससे उनकी पूरी जिंदगी बदल जाती है। एक तरफ, लड़कों को अपराधिक मुकदमे झेलने पड़ते हैं, वहीं लड़कियां जब अपने माता-पिता के फैसले का विरोध करती हैं, तो उन्हें भी सरकारी संस्थाओं में भेज दिया जाता है। और एक मामले में तो अभी हाल ही में मध्य प्रदेश में एक लड़की को पॉक्सो अधिनियम के तहत जेल भेज दिया गया क्योंकि लड़की की उम्र (19 वर्ष) लड़के की उम्र से ज्यादा थी।
आज के समय में ऐसे अधिकांश मामले जिज्ञासावश और दोनों की सहमति से हो रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2021 में पाक्सो कानून के तहत 53,873 मामले दर्ज किए गए थे। ये मामले बच्चों के खिलाफ सभी अपराधों का 36 प्रतिशत हैं। इनमें से 61 प्रतिशत मामले बलात्कार से जुड़े थे। छब्त्ठ के आंकड़ों से ही पता चलता है कि पॉक्सो के 50 फीसदी मामले 16 से 18 साल के किशोरों के खिलाफ हैं। यानी सहमति होने के बावजूद भी किशोर लड़के आरोपी बन रहे हैं क्योंकि कानून में इसको अपराध माना गया है। और यह भी नहीं कहा जा सकता है कि पॉक्सो कानून से बच्चों का यौन उत्पीड़न पूरी तरह से रुक गया है। कानून होने के बावजूद 18 साल से कम उम्र के लड़के-लड़कियों को यौन उत्पीड़न से जूझना पड़ रहा है क्योंकि केवल कानून बना देने से समस्या हल नहीं होती है। कानून को समय के हिसाब से बदलना चाहिए और उसे जमीनी हकीकतों से वाकिफ होना चाहिए। किसी देश के कानून को न्याय और निष्पक्षता का जितना पालन करना चाहिए, उतना ही उसे समय के साथ बदलना भी चाहिए।
इस मामले पर देश में बहस चल रही है कि सहमति की उम्र क्या होनी चाहिए? कुछ राज्यों (कर्नाटक, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, मद्रास आदि) में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश तथा महिला व बाल विकास परियोजना से जुड़े लोग इस बात की राय दे रहे हैं कि सहमति की उम्र 18 से घटा कर 16 कर दी जाय। कर्नाटक उच्च न्यायालय की धारवाड़ पीठ ने इसी आधार पर, भारत के विधि आयोग से यह आग्रह किया है कि ‘जमीनी हकीकत को ध्यान में रखते हुए’ सहमति की उम्र के मानदंडों पर वह फिर से विचार करे।
मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पार्थिबन ने कहा, ‘‘16 साल की उम्र के बाद सहमति से किसी यौन संबंध या संबंद्ध कृत्य को पॉक्सो कानून के कठोर प्रावधानों से बाहर रखा जा सकता है। ऐसे मामलों की सुनवाई और नरम प्रावधानों के तहत की जा सकती है, जिसे इस कानून में ही शामिल किया जा सकता है।’’ उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि ‘ऐसा संशोधन किया जा सकता है कि अगर 16 से अधिक और 18 से कम उम्र की लड़की सहमति से यौन संबंध बनाती है तो उसमें पुरुष की उम्र लड़की के मुकाबले पांच साल से अधिक नहीं हो सकती। ताकि लड़की से उम्र में बहुत अधिक बड़ा और परिपक्व व्यक्ति लड़की की कम उम्र और उसके भोलेपन का गलत फायदा न उठा सके।’
सहमति की अलग-अलग देशों में अलग-अलग उम्र है। लड़के-लड़की दोनों की सहमति की उम्र फ्रांस में 15 वर्ष, अमेरिका में 15 से 18 वर्ष, आस्ट्रिया में 14 वर्ष, कनाडा में 14 से 16 वर्ष और स्विट्जरलैंड में 16 वर्ष, रूस में 16 वर्ष, स्पेन में 16 वर्ष है।
भारत में भी पहले सहमति की उम्र 16 वर्ष थी। परन्तु बाद में सहमति की उम्र बढ़ा कर 18 वर्ष कर दी गई। सहमति की उम्र 18 वर्ष सिर्फ कानून में होने का मामला नहीं है, बल्कि यह एक बायोलाजिकल सवाल भी है। उसके साथ ही भारत में बिना शादी के यौन संबंध बनाने के लिए सहमति और शादीशुदा जीवन में यौन संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र हमेशा से अलग-अलग रही है। विवाह में 18 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ लड़कों को यौन संबंध बनाने की अनुमति है। हिंदू मैरिज एक्ट के तहत 15 से 18 साल की उम्र की लड़की की शादी को अवैध घोषित नहीं किया जा सकता है। ये विडंबना ही है कि विवाह होने पर 15 से 18 साल की लड़कियों के लिए सहमति की उम्र का प्रावधान है और विवाह न होने पर वह अपराधिक हो जाता है।
सरकार को चाहिए कि वह ‘नैतिकता’ की पहरेदारी करने की बजाय नयी उम्र के लड़के-लड़कियों के साथ हमदर्दी से पेश आये और किशोरावस्था के यौन संपर्कों को अपराधिक दायरे से बाहर करे। -एक पाठक, हरिद्वार
यौन संबंध और सहमति की उम्र
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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को