संघ-भाजपा का नफरती चेहरा दिन-प्रतिदिन जनता के सामने उजागर होता जा रहा है। संघ भाजपा के ढेरों लोग संवैधानिक पदों पर विराजमान हैं। संघी मण्डली के लोग मुस्लिम समुदाय के लोगों को निशाना बनाकर बहुसंख्यक समुदाय को इनके खिलाफ भड़काने का काम करते हैं। ऐसे में बहुसंख्यक समुदाय के कुछ लोग अपने संघी गुरूओं व नेताओं से सीख लेकर उनका अनुसरण करते हैं।
इन्हीं नेताओं व गुरूओं ने हिन्दू बहुसंख्यक समुदाय के अनेकों लोगों को जिसमें बड़ी संख्या नौजवानों की है, को मुस्लिम समुदाय के लोगों के घर, उनके कारोबार, धार्मिक स्थलों और लोगों पर हमला करने आदि का आशीर्वाद देकर बेलगाम छोड़ दिया है। लम्पट अब अपने गुरूओं व नेताओं के आदेश का इंतजार करे बगैर अपने घृणित मंसूबों में लग जाते हैं। इनके द्वारा बनाए साम्प्रदायिक तनाव से मुस्लिम समुदाय के लोगों में दहशत का माहौल पैदा हो जाता है, ये समुदाय अपने आपको असुरक्षित महसूस करने लगता है। जो हिन्दू आबादी किसी धर्म के झगड़ों में नहीं पड़ती और न उसका इन सबों से कोई लेना-देना होता है, वह भी दहशत में जीने को मजबूर होती है।
दोनों समुदायों के लोग इन सब झगड़ों से दूर रहते हैं और इन झगड़ों को ग़लत मानते हैं, वो भी ऐसे मौकों पर एक-दूसरे को शक की निगाह से देखने लगते हैं। वर्तमान समय में ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि देश के एक कोने में कोई साम्प्रदायिक तनाव पैदा किया जाता है और देश के दूसरे कोने में उसका असर दिखाई देने लगता है। यह इसलिए होता है कि देश के हर कोने में ऐसे लम्पट/भस्मासुरों की मौजूदगी बनी हुई है।
इन लम्पट गिरोहों को कानून का कोई डर-भय नहीं है और हो भी क्यों, क्योंकि ये तो अपने आपको कानून से ऊपर समझते हैं। कानून तो इनके सामने पंगु बना रहता है। कई मौकों पर कानून का पालन कराने वालों को इन साम्प्रदायिक लम्पट गिरोहों के साथ मिलकर मुस्लिम समुदाय के लोगों पर हमला करते देखा गया है। ये कानून के रखवाले ऐसा इसलिए करते हैं कि इनमें भी कुछ ऐसे लोग होते हैं जो धार्मिक कट्टर सोच के होते हैं जबकि इनकी सेवा शर्तों में इनको किसी भी तरह के भेदभाव करने की मनाही होती है। लेकिन इनके लिए ‘कानून’ किस खेत की मूली है। जब कानून बनाने वाले और पालन कराने वाले खुद समाज में नफ़रत फैलाने में शामिल हों तो इनके चेले-चपाटों का तो क्या ही कहना।
अब इन लंपटों के हौंसले इतने बुलंद हो गये हैं कि ये किसी की भी नहीं सुनते हैं और न ही किसी से रुकते हैं। ऐसी स्थिति भी आ सकती है कि इनके गुरूओं को मुस्लिम समुदाय पर हमलों के मामले में कुछ फेर बदल करना (हमले रोकने के संदर्भ में) पढें़ तो ऐसी स्थिति में ये लंपट जिस गति से आगे निकल चुके हैं, इनको रोकना इनके गुरूओं के बस की बात भी नहीं रह जायेगी।
ऐसे में इन बेलगाम लंपटों को भस्म करने की जिम्मेदारी मजदूर वर्ग की बन जाती है, कि वह अपने आपको एक वर्ग के रूप में संगठित कर अपने क्रांतिकारी विचारों से जितना सम्भव हो सके मेहनतकश अवाम को अपने पक्ष में खड़ा करें। बाकियों को तटस्थ व बेअसर करें। इस कार्यभार को सभी क्रांतिकारी ताकतों व इंसाफ पसन्द लोगों को मिलकर पूरा करने की जरूरत है। तभी इन साम्प्रदायिक लम्पट गिरोहों से निपटा जा सकता है।
-राजू, गुड़गांव
संघी लम्पटों का आतंक
राष्ट्रीय
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