एक ‘राष्ट्रवादी’ कविता -कल्लोल चक्रवर्ती

हाँ, कोरोना के बाद से दिख नहीं रहा है एक लाचार परिवार
जो हर जाड़े में कम्बल और रजाई के लिए आवाज़ लगाता था
नुक्कड़ में पुराने कपड़े सिलने वाला दर्जी महीनों से नजर नहीं आता
लेकिन सैकड़ों वर्ष पुराने वे धर्मस्थल आज प्राचीन गौरव से दीप्त चमक रहे हैं
हजार और पांच सौ के पुराने नोटों के साथ चलन से बाहर कर दिये गये हैं
आन्दोलन, प्रेस की आजादी और धर्मनिरपेक्षता जैसे जुमले भी.
हाँ, कुछ मुट्ठी भर किसानों ने आवाज़ उठाने की जुर्रत की
क्योंकि उनको पैसा आ रहा था विदेश से
कहा गया कि उनमें से कुछ मर गये
मर तो वे तब भी जाते जब वे घरों में रहते
कहा गया कि उनके लंगर में भोजन मिल रहा था सैकड़ों लोगों को
और हम जो करोड़ों भूखों को भोजन मुहैया करा रहे हैं
उसका क्या!
काम पर लगा दिया गया है मालवीयों, गोस्वामियों, पात्रों, कश्यपों और चौधरियों को
जो कल तक किसी के भी खिलाफ़ कुछ भी लिख-बोल सकते थे
आज वे गूंगे बन चुके हैं
यह कह दिया गया है ऐलानिया कि विरोध में कुछ भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा
देश बदल रहा है, सोच बदल रही है
ऐसे में जो नहीं बदलेंगे वे देश बदल लेने के लिए आजाद हैं
कृपया सुन लें कि पहले की सरकारों की तरह
हम बदले की कार्रवाई नहीं करते.
अब भी अगर आप बुलडोजर को शक्ति का नया प्रतीक मानने से इनकार करते हैं
तो हम क्या कर सकते हैं?
लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इससे बड़ा उदाहरण
और क्या हो सकता है श्रीमान
कि प्रधानमंत्री को हर सुबह गाली देने के बाद भी आप
बिल्कुल सही-सलामत हैं!                   साभार : samalochan.com

आलेख

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता