पेरिस कम्यून दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन

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पेरिस कम्यून मानव इतिहास की अविस्मरणीय घटना है जब पेरिस के मजदूरों ने पूंजीपतियों के ‘‘स्वर्ग पर धावा’’ बोलते हुये सत्ता को अपने हाथों में ले लिया था। 18 मार्च 1871 को फ्रांस के पेरिस में अस्तित्व में आई मजदूरों की यह सत्ता 72 दिनों तक कायम रही जब तक कि फ्रांस और जर्मनी के पूंजीपतियों ने आपस में हाथ मिलाकर कम्यून को खून में नहीं डुबो दिया। पेरिस कम्यून, जो कि शोषित जनता का मजदूर वर्ग का इतिहास में पहला शासन था, की वर्षगांठ पर क्रांतिकारी संगठन विभिन्न कार्यक्रम कर शहीद हुये कम्यूनार्डों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और एक शोषण विहीन समाज बनाने का संकल्प लेते हैं। 
    
गुड़गांव-मानेसर में इस अवसर पर इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस दौरान वक्ताओं ने पेरिस कम्यून की उपलब्धियों पर बात करते हुये कहा कि कम्यून ने धर्म को लोगों का निजी मामला घोषित करते हुये राज्य और शिक्षा से उसे अलग कर दिया। वक्ताओं ने कहा कि आज विज्ञान और तकनीक के इतने विकास के बावजूद मोदी सरकार द्वारा महिला मजदूरों से रात की पाली में काम कराने का कानून पारित कर दिया गया है जबकि आज से 154 साल पहले कायम हुये पेरिस कम्यून ने मजदूरों से रात की पाली में काम कराने की प्रणाली का ही अंत कर दिया था।
    
हरिद्वार में पेरिस कम्यून दिवस पर प्रभात फेरी निकाली गई जिसमें इंकलाबी मजदूर केंद्र, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, भेल मजदूर ट्रेड यूनियन, फ़ूड्स श्रमिक यूनियन एवं एवेरेडी मजदूर यूनियन के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि कम्यून ने सरकार के मंत्री, न्यायालय के जजों और कार्यपालिका के अधिकारियों सभी के चुनाव की व्यवस्था की और सभी का वेतन एक कुशल मजदूर के वेतन के बराबर घोषित कर सच्चे अर्थों में जनवाद कायम किया। इसके अलावा कम्यून ने एक जर्मन मजदूर को अपना श्रम मंत्री बनाकर ‘‘दुनिया के मज़दूरो, एक हो’’! के नारे और अंतर्राष्ट्रवाद की भावना को बुलंद किया।
    
पंतनगर में इंकलाबी मजदूर केंद्र एवं ठेका मजदूर कल्याण समिति ने एक सभा कर कम्यून के शहीदों को याद किया, जिसमें ट्रेड यूनियन संयुक्त मोर्चा के प्रतिनिधियों ने भी भागीदारी की। इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि कम्यून ने जनता की अपेक्षाओं पर खरे न उतरने वाले चुने हुये प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार भी जनता को दिया। गौरतलब है कि पूंजीवादी संसदीय व्यवस्था में आज तक भी कहीं जनता को यह अधिकार हासिल नहीं है। 
    
मऊ में इस अवसर पर इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा कम्यून के शहीदों की याद में मजदूर बस्तियों में बैठकें की गईं। इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि बीसवीं सदी में रूस में घटित महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति हो या चीन में हुई महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति, दोनों ने ही पेरिस कम्यून के सबकों से प्रेरणा हासिल की। -विशेष संवाददाता

आलेख

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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