जी-7 : हिरोशिमा में इकट्ठा हुए पश्चिमी साम्राज्यवादी

19 से 21 मई तक जी-7 संगठन की वार्षिक बैठक हिरोशिमा, जापान में सम्पन्न हुई। हिरोशिमा जापान के उन 2 शहरों में से एक है जहां अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने द्वितीय विश्व युद्ध के खात्मे के वक्त परमाणु बम गिराया था। हिरोशिमा-नागासाकी में गिरे इन अमेरिकी बमों के दंश को जापानी जनता आज भी भुगत रही है। 
    

ऐसे में जब यह बैठक हिरोशिमा में होने की चर्चा शुरू ही हुई थी तो उसके साथ ही यह चर्चा भी शुरू हो गयी थी कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन जापानी जनता से माफी मांगेंगे या फिर ओबामा की तरह इस पर चुप्पी साध लेंगे। उम्मीद के अनुरूप जो बाइडेन ने हिरोशिमा-नागासाकी पर परमाणु बम बरसाने पर चुप्पी साधे रखी। 
    

हिरोशिमा में हो रही यह बैठक और हास्यास्पद इसलिए बन गयी थी कि दुनिया भर के लुटेरों का एक धड़ा परमाणु विध्वंस के शिकार शहर में इकट्ठा हो वर्तमान में चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध में फिर परमाणु युद्ध की धमकी दे रहा था। 
    

जी-7 के देशों में अमेरिका, यूके, इटली, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, जापान आते हैं। 2014 से पूर्व रूस भी इस जमावडे का हिस्सा था पर 2014 के बाद उसे इससे अलग कर दिया गया। रूस के इसमें शामिल रहते हुए यह कुछ हद तक वैश्विक शक्ति संतुलन में शीर्ष देशों को शामिल करने वाली संस्था थी। और तब कुछ मामलों में यह टकराव कम करने में कारगर थी। पर आज रूसी व चीनी साम्राज्यवाद के इससे बाहर होने के चलते यह मुख्यतः पश्चिमी साम्राज्यवादियों की संस्था बन गयी है। हालांकि इसके भीतर भी काफी अन्तरविरोध मौजूद हैं। ऐसे में इस संस्था की महत्ता किसी मसले पर हल ढूंढने के बजाय अमेरिकी साम्राज्यवादियों के शक्ति प्रदर्शन सरीखी रह गयी है। 
    

इस बार बैठक में आस्ट्रेलिया, भारत, ब्राजील, अफ्रीकी संघ, कूक आइसलैण्ड, इण्डोनेशिया, कोरिया, वियतनाम को आमंत्रित सदस्य के रूप में बुलाया गया था। प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संगठन तो इसके हमेशा हिस्सा होते रहे हैं। मेहमान के बतौर इस बार यूक्रेन आमंत्रित था। 
    

इस बैठक को अमेरिकी साम्राज्यवादी मूलतः रूस व चीन को घेरने के मुद्दे पर केन्द्रित किये रहे। मेहमान देश यूक्रेन के जेलेंस्की को बारम्बार युद्ध में साथ खड़े होने के वायदे किये गये तो रूस को जमकर कोसा गया। उस पर नये प्रतिबंधों को लगाने व यूक्रेन की मदद बढ़ाने के वायदे हुए। 
    

यही स्थिति चीन के प्रश्न पर भी रही। यद्यपि चीन के मामले में उससे आर्थिक सम्बन्ध बनाये रखते हुए उसके गैर कारोबारी व्यवहार पर हमला बोला गया। साथ ही ताइवान के मसले पर चीन के हस्तक्षेप को इशारों में कोसा गया। साथ ही चीन से सटे इलाके में यथास्थिति बनाये रखने व उसमें किसी बदलाव की कोशिश से सख्ती से निपटने की बातें हुईं। 
    

इसके अलावा अर्थव्यवस्था, बढ़ता कर्ज, जलवायु संकट आदि मसलों पर हमेशा की तरह मिल जुलकर काम करने की बातें की गयीं। 
    

भारतीय मीडिया ने प्रधानमंत्री मोदी की ऐसी छवि गढ़ने की कोशिश की मानो वे जी-7 के प्रमुख नेता बन कर उभरे हों जबकि वास्तविकता यह थी कि आमंत्रित सदस्यों को जी-7 के महज कुछ सत्रों में ही भागीदारी का मौका मिला। वैसे भी साम्राज्यवादी लुटेरों की जमात में भारत का कद छोटे प्यादे से अधिक नहीं है। 
    

कुल मिलाकर जी-7 का यह आयोजन ऊपरी तौर पर अमेरिकी साम्राज्यवादियों के एजेण्डे पर चलता नजर आया। रूस को कोसने में जहां सातों साम्राज्यवादी एकमत थे वहीं उस पर प्रतिबंधों के मामले में वे कहीं से भी एकमत नहीं थे। खासकर फ्रांस, जर्मनी के हित कहीं से भी रूस पर और प्रतिबंध थोपने में नहीं हैं। ऐसे में आम बातें कर ही अमेरिकी शासकों को संतुष्ट होना पड़ा। जहां तक युद्ध का प्रश्न है तो अमेरिकी शासकों ने जेलेंस्की को और भड़का कर युद्ध और लम्बा खींचने का इंतजाम कर लिया है। अमेरिकी साम्राज्यवादी युद्ध लम्बा खींच रूस को थका देने की नीति पर चल रहे हैं जिसमें वे काफी हद तक सफल रहे हैं। इस उकसावे भरी अमेरिकी नीति का खामियाजा यूक्रेन की जनता भुगत रही है। 

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को