रामनगर/ रामनगर में वन भूमि पर अतिक्रमण के नाम पर लोगों के आशियाने उजाड़ने एवं धार्मिक स्थलों को तोड़ने की सरकार की कोशिशों के ग्रामीणों द्वारा जबरदस्त प्रतिरोध के परिणामस्वरूप वन विभाग की कार्यवाही फ़ौरी तौर पर भले धीमी हो गई हो लेकिन वन विभाग द्वारा जारी किये गये नोटिस एवं मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के बयानों से स्पष्ट है कि लोगों के घरों एवं धार्मिक स्थलों पर से खतरा अभी बिल्कुल भी नहीं टला है।
गौरतलब है कि पिछले दिनों वन विभाग द्वारा वन भूमि पर अतिक्रमण के नाम पर ग्राम पूछड़ी, कालू सिद्ध एवं नई बस्ती के निवासियों को नोटिस दिये जाने, वन गुर्जरों के घरों के आगे खाईयां खोदने एवं जिलाधिकारी, नैनीताल द्वारा जारी सूची में विभिन्न मंदिरों व मजारों के चिन्हीकरण के बाद लोगों में दहशत एवं आक्रोश पसर गया और वे सैकड़ों-हजारों की संख्या में सड़कों पर आकर विरोध प्रदर्शन करने लगे।
इस क्रम में 19 एवं 20 मई को लगातार दो दिन ग्राम पूछड़ी, कालू सिद्ध एवं नई बस्ती के निवासियों ने तराई पश्चिमी प्रभागीय वनाधिकारी एवं उपजिलाधिकारी कार्यालय पर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। तदुपरान्त 21 मई को हुई महापंचायत में इन ग्रामों के अलावा वन गुर्जरों एवं अन्य प्रभावित लोगों ने भी भागीदारी की। महापंचायत में ‘‘हर घर बचाओ संयुक्त संघर्ष मोर्चा’’ का गठन कर एक स्वर में इस पूरी कार्यवाही को रोकने की मांग की गई। मोर्चे में विभिन्न जन प्रतिनिधि, संगठनों एवं पार्टियों के नेता शामिल हैं और राज्य आंदोलनकारी प्रभात ध्यानी इसके संयोजक हैं।
अगले दिन 22 मई को वन गुर्जरों ने पुनः तराई पश्चिमी प्रभागीय कार्यालय पर विरोध प्रदर्शन और सभा की और नगर में जुलूस निकालकर उपजिलाधिकारी कार्यालय पर धरना दिया। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के 2019 के स्थगन आदेश के अनुसार जब तक वन गुर्जरों के दावे कोर्ट में विचाराधीन हैं तब तक उन्हें विस्थापित नहीं किया जा सकता है। लेकिन इसके बावजूद सरकार और वन विभाग के अधिकारी उन्हें लगातार वनों से बाहर करने की कोशिशें कर रहे हैं।
इसी दिन संयुक्त संघर्ष मोर्चे द्वारा सिंचाई विभाग में भी धरना प्रदर्शन किया गया। तदुपरान्त 24 मई के दिन पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत ग्रामीणों ने रामनगर के विधायक दीवान सिंह बिष्ट का निवास का घेराव कर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। लोगों का दबाव इतना ज्यादा था कि विधायक महोदय, जो कि शहर में नहीं थे, ने फोन पर ही ग्रामीणों को आश्वासन दिया गया कि लोगों के घर नहीं उजाड़े जायेंगे।
लेकिन अगले ही दिन वन विभाग द्वारा जारी किये गये नोटिस, विधायक दीवान सिंह बिष्ट के अख़बार में छपे बयान और मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के वायरल हुये भाषण से स्पष्ट हो गया कि असल में जनता को कोई राहत नहीं मिली है। व्यवहार में भी यह स्पष्ट नजर आया जबकि सिंचाई विभाग द्वारा प्रशासन की मदद से भारी पुलिस बल लगाकर गूलरघट्टी में तोड़-फोड़ शुरू कर दी गई।
वन विभाग ने बेहद कूटनीतिक भाषा में जारी अपने नोटिस में कहा है कि अभी रेंजर और वन दरोगा भी लोगों को नोटिस जारी कर रहे थे लेकिन अब आगे से सिर्फ प्रभागीय वन अधिकारी ही कोई नोटिस जारी करेंगे। अब इसमें वन विभाग ने अपनी कार्यवाही रोकने की कोई बात नहीं की है। दूसरी तरफ विधायक महोदय ने लेटी, चोपड़ा और रामपुर को राजस्व ग्राम बनाने का जो वायदा किया है वह भी पुरानी चली आ रही बातों का दोहराव मात्र है, जो कि अभी जारी आंदोलन का वैसे भी मुद्दा नहीं है। जबकि मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में पुनः सांप्रदायिक आधार पर लोगों को बांटने की कोशिश कर अपने असली इरादे जाहिर कर दिये हैं।
इसके अलावा वन भूमि पर विभिन्न पूंजीवादी परियोजनायें संचालित करने के लिये मोदी सरकार द्वारा गत वर्ष वन अधिकार कानून, 2006 में भी बदलाव किया जा चुका है, जिसके तहत वनवासियों या आदिवासियों की सहमति के बिना ही पूंजीपतियों को वन भूमि पर अपनी परियोजना शुरू करने के लिये सरकार 60 से 90 दिन के भीतर मंजूरी प्रदान कर देगी। और इसमें यदि लोगों के घर बाधा बनेंगे तो उन्हें उजाड़ दिया जायेगा और यदि उनके धार्मिक स्थल बाधा बनेंगे, चाहे वो हिन्दुओं के हों अथवा मुसलमानों के, तो उन्हें भी हटा दिया जायेगा। गौरतलब है कि जिलाधिकारी, नैनीताल द्वारा जारी धार्मिक स्थलों के अतिक्रमण की सूची में सिर्फ मजारे ही नहीं मंदिर भी शामिल हैं।
असल में जनता ने कोई अतिक्रमण नहीं किया है क्योंकि वे तो पीढ़ियों से उसी भूमि पर रहते आ रहे हैं। सच्चाई एकदम उलट है और वो यह है कि जमीन की कारपोरेट लूट की खातिर गरीब मजदूर-मेहनतकश लोगों के आशियाने उजाड़ने पर तुली सरकार लोगों के घर-सम्पत्ति का अतिक्रमण कर रही है और उनकी धार्मिक श्रद्धा को चोट पहुंचा रही है। और इसके विरुद्ध लोगों को लैंड जिहाद के झूठे सांप्रदायिक प्रचार को ख़ारिज कर और व्यापक हिंदू-मुस्लिम एकता कायम कर अपने आंदोलन को तेज करना होगा। -रामनगर संवाददाता