खुशबूदार, जायकेदार बिरयानी और मुंह में लार व जुबान से जहर वाले

/khusaboodar-jaayakedaar-birayani-aur-munh-men-laar-v-jubaan-se-jahar-vaale

बिरयानी का नाम सुनते ही कईयों की भूख खुल जाती है। मुंह में लार आने लगती है। बिरयानी चाहे कैसी भी हो ‘‘कच्ची’’ या ‘‘पक्की’’ या फिर वह मांसाहारी हो अथवा शाकाहारी या फिर वह भारत में बनी हो या फिर पाकिस्तान, ईरान, म्यांमार, थाईलैण्ड या मलेशिया में बनी हो। सब जगह होता ऐसा ही है। बिरयानी का नाम सुनते ही उसका स्वाद, उसकी खुशबू, उसका रंग सब जेहन में एक साथ आते हैं। यह सब आम लोगों के साथ होता है कि बिरयानी उनकी तबियत को खुश कर देती है और मन करता है कि कोई बड़ी सी दावत हो और उसमें आपके सारे दोस्त और रिश्तेदार हों। मजा आ जाए तब, जब दावत में बिरयानी की किस्मों, बनाने के तरीकों, मसालों और उसके साथ परोसे जाने वाले सालन-चटनी आदि की गर्मागर्म चर्चा हो। यह बिरयानी का ही प्रताप है कि भारत सरकार को 2017 में बिरयानी पर एक डाक टिकट जारी करना पड़ा था। फिर भी कुछ लोग हैं जो बिरयानी को बुरा समझते हैं। 
    
कुछ लोग हमारे देश में ऐसे हैं जिनके साथ बिरयानी के कारण अजीबो गरीब असर होता है। एक ओर इन बेचारों के मुंह में बिरयानी का नाम सुनते ही लार आने लगती है और दूसरी ओर इनकी जुबान जहर उगलने लगती है। क्या आपने ऐसे जीव-जन्तु नहीं देखें हैं जिनका मुंह और जुबान ऐसा नायाब करिश्मा दिखा सकती है। जनाब! आजकल ऐसे लोगों की ही चल रही है। हर चुनाव में ये बिरयानी का मसला लेकर आ जाते हैं। ये बिरयानी में पड़ने वाले मसालों के बारे में जानते हों या न जानते हों पर ये जरूर जानते हैं कि बिरयानी की बात करते ही इन्हें शायद खूब वोट मिल जायेंगे। कोई जाकर इन कमबख्तों को समझाये कि इससे ज्यादा वोट उन्हें तब मिल जायेंगे जब ये कहेंगे कि अगर ये चुनाव जीत गये तो ‘‘विश्व बिरयानी दिवस’’ के दिन (7 जुलाई) हर किसी को भरपेट बिरयानी खिलायेंगे। और अच्छी स्वादिष्ट बिरयानी के लिए तो वो लोग भी अपना वोट दे देंगे जो अब तक धर्म, जाति, पैसा, शराब, साड़ी आदि-आदि के नाम पर वोट देते रहे हैं। 
    
बिरयानी असल में धर्म निरपेक्ष है। उसका अपना एक ही ‘‘धर्म’’ है जायका। और उससे बड़ी बात यह सर्वभारतीय है। सर्वभारतीय से बढ़कर यह सर्व दक्षिण एशियाई है। अरे! अरे! नहीं यह तो सार्वभौमिक हो गयी है। 
    
बिरयानी के चाहने वाले बिरयानी पर महाकाव्य लिख सकते हैं। पर बेचारे बिरयानी के लालची दुश्मन बिरयानी को कोई खंजर समझते हैं। खंजर चलाओ और देश को अंदर तक दो खेमों में बदल दो। कमबख्तों तुम एक ही काम करो जुबान के जहर को थूक दो और लार को गटक लो। फिर आराम से सरेआम हैदराबादी बिरयानी खा लो। तुम्हारे सब झगड़े मिट जायेंगे। अजीबोगरीब जानवर से तुरंत ही तुम्हारा ‘‘पवित्र कायान्तरण’’ इंसान के रूप में हो जायेगा। ‘बिरयानी-बिरयानी’ का जाप करने से कोई फायदा नहीं होगा। प्यार से बनाओ, प्यार से खिलाओ। कभी मेहमान बनो तो कभी मेजबान बनो! और मुल्क की आबोहवा बदलो!

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता