मुंह में राम बगल में छुरी

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सशक्त भू-कानून, 2025

उत्तराखंड में पिछले कुछ सालों से ‘‘सख्त भू कानून’’ की मांग उठती रही है। 2022 के विधानसभा चुनाव के समय से ही भाजपा सख्त भू कानून का वादा करती रही है। 20 फरवरी 2025 को ‘‘उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) (संशोधन) अधिनियम 2025’’ को विधानसभा में पास कर दिया गया। कानून के तौर पर यह ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’ के मुहावरे को चरितार्थ करता है। वहीं धामी सरकार ने जिस तरह इस कानून को बनाया वह ‘मुंह में राम बगल में छुरी’ की मिसाल है।
    
भू कानून के नाम पर चकबंदी कानून, सीलिंग कानून आदि की तुलना में जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार का उक्त कानून प्रमुख है। यह जमीन के मालिकाने से लेकर उसके उपयोग तक को निर्धारित करता है। लेकिन इस कानून में इतने बड़े छेद हैं कि जमीनों को बड़े पूंजीपतियों के कब्जे में जाने में कोई रोक-टोक नहीं है। अभी किए गए संशोधनों में भी ऐसे प्रावधान जस के तस बने हुए हैं।
    
एक प्रमुख कमी यह है कि नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत, छावनी परिषद में यह कानून लागू नहीं होगा। समय-समय पर इन क्षेत्रों के होने वाले परिसीमन के जरिए इनका क्षेत्र विस्तार होता रहता है। इसकी खबर सरकार में बैठे नेताओं, बड़े अफसरों को पहले ही हो जाती है। इनके जरिये यह खबर बड़े पूंजीपतियों तक पहुंचती है। इसके बाद जो खेल जमीन की खरीद-फरोख्त में होता है उसमें सरकार, अफसरशाही, भू माफिया (पूंजीपति) गठजोड़ काम करता है। परिसीमन क्षेत्र बनने से पहले या साथ-साथ ही जमीनें खरीद ली जाती हैं। पहाड़ों के प्रमुख कस्बों अल्मोड़ा, गैरसैण, पिथौरागढ़, श्रीनगर, पौड़ी आदि में जमीनों के साथ यही हुआ। 2002 में हुए अध्यादेश के समय से यह प्रावधान मौजूद है, जिसे हटाने की मांग प्रमुख रूप से उठती रही है। इस ‘‘सशक्त कानून’’ में भी यह धारा पहले की तरह मौजूद है।
    
इस बार भू कानून में ऊधमसिंह नगर और हरिद्वार जिले को भी बाहर रखा गया है। यानी यहां जमीन की खरीद-फरोख्त का खेल खुलकर खेला जा सकता है। यह दो जिले ही हैं जहां कृषि योग्य भूमि की बड़ी जोतें मौजूद हैं। यह मैदानी क्षेत्र हैं जहां प्रमुख औद्योगिक केंद्र (सिडकुल) मौजूद हैं। यहां जमीनों पर औद्योगिक पूंजीपतियों के अलावा, बिल्डर, शिक्षा, स्वास्थ्य, होटल आदि क्षेत्रों के पूंजीपतियों की गिद्ध दृष्टि बनी हुई है। इस नए प्रावधान में इन दो मैदानी जिलों में भू कानून जमीन की लूट की खुली छूट देता है।
    
इसके अलावा पहाड़ी जिलों में औद्योगिक प्रयोजन, आयुष, शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा, उद्यान एवं विभिन्न प्रसंस्करण, खेल प्रशिक्षण अकादमी, स्टेडियम, पर्यटन के लिए किसी न्यास, संस्था, कंपनी, फर्म को जमीन दी जा सकती है। इसी तरह केंद्र और राज्य सरकार की किन्हीं परियोजनाओं के लिए भी जमीन आवंटित हो सकती है। इन प्रयोजन के अलावा कोई व्यक्ति आवासीय प्रयोजन के लिए मात्र 250 वर्ग मीटर भूमि ही खरीद सकता है। यहां पहाड़ों की जमीन के चलते आम लोगों की बर्बादी के तमाम रास्ते खुले हुए हैं। सड़क चौड़ी करने, बांध परियोजना आदि जैसी बड़ी परियोजनाओं को अवैज्ञानिक ढंग से आम लोगों को नजरअंदाज कर बनाने का नतीजा जोशीमठ में देखा गया। पूंजीपतियों द्वारा पर्यटन के नाम पर होटल-रिसोर्ट आदि के मनमाने निर्माण की कहानी प्रदेश भर में देखी जा सकती है। इस कानून से इसमें कहीं कोई रोक नहीं लगेगी।
    
यानी इस कानून में कुछ भी ऐसा नहीं किया गया है जिससे उत्तराखंड में जमीनों की बंदरबांट पर कुछ अंकुश लग सके।
    
मुख्यमंत्री धामी अपनी ‘‘धाकड़’’ छवि बनवाने में मशगूल हैं। भू कानून के मामले में बनाई गई समिति ने 2022 में सरकार को रिपोर्ट सौंप दी। इस रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए एक और समिति बनाई गई। अब आखिरकार कानून में संशोधन पेश किया गया जिसे संशोधन कहना संशोधन शब्द का अपमान है। इस बीच में समिति की रिपोर्ट कभी भी प्रकाशित नहीं की गई। लेकिन पुष्कर धामी ने समिति के सुझाव का दावा करते हुए प्रदेश भर में अवैध मस्जिद-मजारों के निर्माण की बात करते हुए ‘‘लैंड जिहाद’’ का सांप्रदायिक जहर फैलाना शुरू कर दिया; जबकि इसी तरह हिंदू-सिख धार्मिक स्थल भी प्रदेश भर में बने हुए हैं। साम्प्रदायिक जहर फैला अपने हिन्दू फासीवादी एजेंडे के तहत ही ‘भीतरी-बाहरी’ की बातें की जाने लगीं। इसमें विशेष कर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के प्रयास भी किए गए; और अब लाए गए कानून से साफ हो गया है कि इतने समय के बाद भी कानून के नाम पर ‘ढाक के तीन पात’ हैं। इसके जरिए उत्तराखंड सरकार मुंह में राम लिए बगल में छुरी दबाये हुए जमीनों को बड़े पूंजीपतियों पर लुटाने से पीछे नहीं हटेगी।
    
दरअसल साम्प्रदायिक राजनीति की चैम्पियन भाजपा उत्तराखण्ड के पहाड़ी जिलों में लैण्ड जिहाद आदि का भय पैदा कर यहां काम करने बाहर से आयी मेहनतकश आबादी के प्रति पहाड़ी-बाहरी का विभाजन पैदा कर रही है। उत्तराखण्ड में इस झगड़े को बढ़ावा दे यह जहां अपना वोट बैंक मजबूत बनाये रखना चाह रही है वहीं दूसरी ओर पूंजीपतियों को पहाड़ी भूमि-संसाधन लुटाने का काम भी जारी रखे हुए है। मौजूदा भू कानून उसकी इसी मंशा को दिखाता है। इसके जरिये पहाड़ों में बाहरी के नाम पर मुस्लिम समेत अन्य मेहनतकशों पर हमले बढ़ेंगे जबकि पूंजीपति बेरोकटोक पहाड़ी सम्पदा का दोहन कर सकेंगे। 

आलेख

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