पेशाब कांड के विरोध में जगह-जगह प्रदर्शन, पुतला दहन

मध्य प्रदेश के सीधी जिले के भाजपा विधायक केदारनाथ शुक्ला के प्रतिनिधि प्रवेश शुक्ला द्वारा आदिवासी युवक के मुंह पर पेशाब करने की लोमहर्षक घटना का पूरे देश में विरोध हो रहा है। विभिन्न क्रांतिकारी-जनवादी संगठन और दलित-आदिवासी संगठन और देश के जागरुक नागरिक इसके विरोध में सड़कों पर उतर रहे हैं और पूरे देश में चारों ओर इस कृत्य की घोर निंदा हो रही है।
    
इसी क्रम में दिल्ली के शाहबाद डेरी में भी इसके विरोध में प्रदर्शन किया गया। विरोध-प्रदर्शन में इंकलाबी मजदूर केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र और परिवर्तनकामी छात्र संगठन से जुड़े लोगों ने भागीदारी की।
       
इस दौरान हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि ब्राह्मणवादी-मनुवादी मूल्य-मान्यताओं में जीने वाले आरएसएस और भाजपा के कार्यकर्ता सत्ता के घमंड में चूर हैं। ये लोग आये दिन हिंसक और इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। दरअसल ये हिंदूवादी संगठन जर्मनी के फासीवादी तानाशाह हिटलर के नक्शे कदम पर चल रहे हैं।
    
उत्तराखंड के रुद्रपुर में इस घटना के विरोध में ब्राह्मणवादी मानसिकता, फासीवाद और मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार का पुतला फूंका गया। विरोध-प्रदर्शन में इंकलाबी मजदूर केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, इंटरार्क मजदूर संगठन, यजाकि वर्कर्स यूनियन, बडवे यूनियन से जुड़े लोगों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।
    
इस दौरान हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि भाजपा और आर एस एस ने देश में हिंदू-मुस्लिम, सवर्ण-दलित, आदिवासी-गैर आदिवासी के विभाजन को गहराकर नफरत की राजनीति को चरम पर पहुंचा दिया है। आज ब्राह्मणवादी भाजपा और ‘संस्कारी’ आर एस एस से जुड़े लम्पट-गुंडे मजदूरों, किसानों, छोटे दुकानदारों, महिलाओं, दलितों, धार्मिक अल्पसंख्यकों एवं आदिवासियों पर जुल्म ढा रहे हैं। वक्ताओं ने कहा कि संगठित मजदूर वर्ग के नेतृत्व में ही इन हिंदू फासीवादियों का अंत किया जा सकता है।
    
पंतनगर में भी इस घटना के विरोध में ब्राह्मणवादी संघी मानसिकता का पुतला दहन किया गया। विरोध-प्रदर्शन में इंकलाबी मजदूर केंद्र, ठेका मजदूर कल्याण समिति और प्रगतिशील महिला एकता केंद्र के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।
    
इस दौरान हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि भाजपा विधायक के प्रतिनिधि और भाजपा के युवा नेता के इस घृणित कृत्य की जब चारों ओर से निंदा होने लगी तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को आने वाले चुनावों में आदिवासी वोटों का खतरा सताने लगा और उन्होंने पीड़ित आदिवासी युवक के चरण धोकर माफी मांगने की नौटंकी आयोजित कर डाली, हालांकि इस नौटंकी में दर्शाया गया पीड़ित असली है या नकली अब इस पर भी सवाल खड़ा हो चुका है।       -विशेष संवाददाता
 

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असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

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इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

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आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो। 

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ट्रम्प द्वारा फिलिस्तीनियों को गाजापट्टी से हटाकर किसी अन्य देश में बसाने की योजना अमरीकी साम्राज्यवादियों की पुरानी योजना ही है। गाजापट्टी से सटे पूर्वी भूमध्यसागर में तेल और गैस का बड़ा भण्डार है। अमरीकी साम्राज्यवादियों, इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों और अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निगाह इस विशाल तेल और गैस के साधन स्रोतों पर कब्जा करने की है। यदि गाजापट्टी पर फिलिस्तीनी लोग रहते हैं और उनका शासन रहता है तो इस विशाल तेल व गैस भण्डार के वे ही मालिक होंगे। इसलिए उन्हें हटाना इन साम्राज्यवादियों के लिए जरूरी है। 

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आज भी सं.रा.अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और सामरिक ताकत है। दुनिया भर में उसके सैनिक अड्डे हैं। दुनिया के वित्तीय तंत्र और इंटरनेट पर उसका नियंत्रण है। आधुनिक तकनीक के नये क्षेत्र (संचार, सूचना प्रौद्योगिकी, ए आई, बायो-तकनीक, इत्यादि) में उसी का वर्चस्व है। पर इस सबके बावजूद सापेक्षिक तौर पर उसकी हैसियत 1970 वाली नहीं है या वह नहीं है जो उसने क्षणिक तौर पर 1990-95 में हासिल कर ली थी। इससे अमरीकी साम्राज्यवादी बेचैन हैं। खासकर वे इसलिए बेचैन हैं कि यदि चीन इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो वह इस सदी के मध्य तक अमेरिका को पीछे छोड़ देगा।