संघर्षरत डाल्फिन मजदूरों द्वारा आयोजित की गयी मजदूर पंचायत

पंतनगर/ उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर में पंतनगर सिड़कुल में स्थित डाल्फिन कम्पनी के मजदूरों का संघर्ष जारी है। यह कम्पनी मारुति के कल-पुर्जे बनाती है। इस कम्पनी में हजारों मजदूर ठेके में काम करते हैं। यहां मजदूरों का शोषण-उत्पीड़न चरम पर है। कम्पनी प्रबंधन खुलेआम श्रम कानूनों की धज्जियां उड़ा रहा है। यहां मजदूरों को सरकार द्वारा तय न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जा रहा है। डाल्फिन कम्पनी के मजदूरों की समस्याओं को लेकर दिनांक 9 जून 2024 को गांधी पार्क रुद्रपुर में मजदूर पंचायत सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई।
    
पंचायत को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि डाल्फिन कम्पनी में मजदूरों को न्यूनतम वेतनमान भी नहीं दिया जाता। नियमानुसार बोनस और ओवरटाइम का भुगतान भी नहीं दिया जाता है जो कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 23, 42 और अनुच्छेद-43 का घोर उल्लंघन है और भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस हेतु समय-समय पर दिए गए आदेशों की घोर अवमानना है। बंधुआ मजदूरी और बेगार प्रथा की घृणित प्रथा को अंजाम देना है। कुमाऊं केसरी बद्री दत्त पांडे जी जैसे क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से लड़कर 1921 में जिस कुप्रथा को उत्तराखंड में कानूनी रूप में खत्म करवाया था आज शासन-प्रशासन और डाल्फिन कम्पनी के मालिकों का गठजोड़ उस कुप्रथा को डाल्फिन कम्पनी में लागू करके भारतीय संविधान को ताक पर रख चुके हैं।
    
डाल्फिन कम्पनी में स्थायी मजदूरों से जबरदस्ती त्याग पत्र पर हस्ताक्षर कराकर ठेकेदार की नौकरी में नियोजित किया जा रहा है। असंख्य मजदूरों को कारण बताओ नोटिस व आरोप पत्र दिये बिना ही उनकी गैरकानूनी गेटबंदी कर दी गई है। शासन-प्रशासन और श्रम विभाग में इस पर अनगिनत बार शिकायत की जा चुकी है किंतु सभी डाल्फिन कम्पनी मालिक की ही भाषा बोल रहे हैं। ।स्ब् रुद्रपुर दीपक कुमार तो कम्पनी मालिक के नौकर की तरह ही व्यवहार करके मजदूरों को ही दबा रहे हैं। ।स्ब् द्वारा मजदूरों के बयानों को बदल कर लिखा जा रहा है, उनके द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों को भी दाखिल नहीं किया जा रहा है जो कि छल-कपट, जालसाजी है और न्याय की हत्या है।
    
मजदूरों की सभाओं में कम्पनी मालिक द्वारा लाल सिंह गंगवार और इरफान पाशा जैसे गुंडों के नेतृत्व में हमले कराए जा रहे हैं, वीडियो बनाई जा रही हैं और महिलाओं से छेड़छाड़ की जा रही है। कम्पनी मालिक की आडियो और गुंडों की वीडियो और अन्य साक्ष्यों को पेश करके महिलाओं और मजदूरों ने ट्रांजिट कैंप थाने में कई बार लिखित तहरीर दी किंतु पुलिस ने उस पर एफआईआर तक दर्ज नहीं की। किंतु वहीं उक्त गुंडों की झूठी शिकायत को हाथों हाथ लेकर डाल्फिन के मजदूर नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं कैलाश भट्ट (पूर्व अध्यक्ष, इंकलाबी मजदूर केन्द्र) और राजेश सक्सेना के विरुद्ध गुंडों से मारपीट करने और दस हजार रुपए छीनने का आरोप लगाकर झूठे मुकदमे दर्ज किए गए। मजदूर नेता सोनू कुमार को जेल भेज दिया गया। श्रमिक नेता ललित कुमार के भाई को पुलिस ने घर से उठा लिया। इससे स्पष्ट है कि डाल्फिन कम्पनी के मालिक और शासन-प्रशासन, पुलिस की गहरी सांठ-गांठ है। और सभी मिलकर गरीब मजदूरों को दबा रहे हैं और भारतीय संविधान, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और श्रम कानूनों का चीरहरण कर रहे हैं और सिडकुल में स्थित अन्य कंपनियों का भी यही हाल है। इंटरार्क, कारोलिया और लुकास टीवीएस सहित अनगिनत कंपनियों में जिला प्रशासन की मध्यस्थता में हुए समझौतों को, उच्च न्यायालय, श्रम न्यायालय और लोक अदालतों के आदेशों का उल्लंघन करके असंख्य मजदूरों का निलंबन, निष्कासन किया गया है किंतु शासन-प्रशासन और पुलिस मौन है और कम्पनी मालिकों के नौकर बनकर पीड़ित मजदूरों की ही आवाज को दबा रहे हैं। इसके खिलाफ एकजुट संघर्ष करके ही आगे बढ़ा जा सकता है।
    
डाल्फिन के मजदूर नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ता के विरुद्ध पुलिस द्वारा दर्ज किए झूठे मुकदमे को निरस्त करने और महिलाओं द्वारा गुंडों के खिलाफ दी गई तहरीर पर एफआईआर दर्ज करने की मांग करते हुए प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किए गए। सोनू कुमार सहित मजदूरों पर झूठे मुकदमे दर्ज करने वाले पुलिस वालों और एसडीएम मनीष कुमार और ALC दीपक कुमार के खिलाफ कार्यवाही की जोरदार मांग की गई।
    
अंत में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया कि यदि पुलिस द्वारा किसी भी मजदूर साथी को गिरफ्तार किया गया तो उसके विरोध में सभी मजदूर जेल भरो आंदोलन के तहत सामूहिक गिरफ्तारी देंगे। और किसी भी मजदूर का कम्पनी ने गेटबंद किया तो उसके जवाब में मजदूर अपने सामूहिक हड़ताल के अधिकार का प्रयोग करेंगे।
    
अंत में सिडकुल में मजदूरों के सामूहिक आंदोलन को शुरू करके निर्णायक कदम उठाने का निर्णय लिया गया।               
    
सभा के पश्चात् सभी मजदूरों द्वारा जुलूस की शक्ल में ट्रांजिट कैंप थाना में जाकर 05 जून 2024 को पुलिस द्वारा डाल्फिन के प्रबंधकों के इशारे पर मजदूरों पर लगाये फर्जी मुकदमे के खिलाफ ट्रांजिट कैंप थाने के एस ओ के माध्यम से पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड को ज्ञापन देने की योजना थी। इस पर पहले थाने के एस ओ का फोन आया कि वह खुद पंचायत स्थल पर आकर ज्ञापन लेंगे। बाद में फोन आया कि ज्ञापन रिसीव के लिए कोई सक्षम अधिकारी होना चाहिए वो ज्ञापन नहीं ले सकते हैं। इस पर मजदूरों ने तय किया कि अब सभी एस एस पी के कैंप कार्यालय जाकर ज्ञापन देंगे और मजदूर जुलूस की शक्ल में चल पड़े। तभी शहर कोतवाल दल बल के साथ आये और जुलूस को पुनः कार्यक्रम स्थल पर लौटा लाये। वहां पर मजदूरों द्वारा ज्ञापन पढ़कर कोतवाल रुद्रपुर को सौंपा गया। और फर्जी मुकदमे के खिलाफ अपना पक्ष रखा गया। तय किया गया कि यदि किसी भी मजदूर का गेट बंद किया गया या कोई ज्यादती की गयी या फिर पुलिस ने किसी की गिरफ्तारी की तो पांचों प्लांटों में मजदूर सामूहिक हड़ताल करके और जेल भरो आंदोलन के तहत पुलिस मुख्यालय रुद्रपुर पहुंचकर गिरफ्तारी देंगे।
    
मजदूर पंचायत में डालफिन मजदूरों के अलावा विभिन्न मजदूर संगठन, ट्रेड यूनियनें, छात्र संगठन, किसान संगठनों व विभिन्न दलों के नेता शामिल रहे।     -पंतनगर संवाददाता

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता