बीते दिनों केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा ने अपना देशव्यापी सदस्यता अभियान चलाया। दावा किया गया कि 1 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक चले इस अभियान में 10 करोड़ लोगों को भाजपा का नया सदस्य बना लिया गया। पर कुछ वक्त बीतते-बीतते इस अभियान का पाखण्ड सबके सामने आने लगा। जगह-जगह से लोग बगैर उनकी सहमति लिये जबरन उन्हें भाजपा का सदस्य बनाने का आरोप लगाने लगे। भाजपा के पाखण्ड के शिकार लोगों की तादाद इतनी ज्यादा थी कि ‘द हिन्दू’ के वरिष्ठ पत्रकार महेश लांगा ने इस पर अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की। इस रिपोर्ट से भाजपा नेता तिलमिला गये। फिर क्या था लांगा को एक कथित जी एस टी घोटाले में आरोपी बना हिरासत में ले लिया गया।
लांगा ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि गुजरात के एक अस्पताल में भर्ती मरीजों को जगा कर एक व्यक्ति ने उनका मो.न. मांगा। कुछ समय बाद इन भर्ती मरीजों के फोन पर एक मैसेज आया जिससे इन्हें पता चला कि वे भाजपा के सदस्य बन चुके हैं। इसी तरह टीका लगाने गये एक जोड़े का मामला भी सामने आया। यह जोड़ा एंटी रैबीज इंजेक्शन लगवाने गया था। इन्हें नियम बदलने का हवाला देकर फोन पर आये ओटीपी को बताने की मांग की गयी। शीघ्र ही इन्हें भाजपा का सदस्य बनने का पता चला। एक स्कूल के बच्चों से एक दिन स्कूल में माता-पिता के फोन मंगाये गये। अगले दिन सारे माता-पिताओं को पता चला कि वे भाजपा के सदस्य बन चुके हैं।
लांगा की रिपोर्ट के अलावा भी जगह-जगह जबरन व धोखे से सदस्य बनाये जाने की खबरें सामने आयी हैं। फैक्टरियों में भाजपा के छुटभैय्ये नेता जबरन सारे मजदूरों का फोन लेकर उन्हें सदस्य बनाते नजर आये तो कुछेक जगह प्रशासनिक मशीनरी भी इस काम में जुटी नजर आयी। उ.प्र. में तो डेढ़ माह के अभियान में 2 करोड़ सदस्य बनाने पर मुख्यमंत्री ने अपनी पीठ थपथपायी।
भाजपा का यह जबरिया सदस्यता अभियान भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच फैलते भ्रष्टाचार, प्रतियोगिता को भी दिखलाता है। पार्टी में अपना कद बढ़ाने के लिए हर कार्यकर्ता अधिक से अधिक सदस्य बनाने में जुटा रहा। इसके लिए धोखे से या जबरन लोगों का फोन ले मिस्ड काल के जरिये सदस्य बनाने लगे। सत्ता की हनक का इस्तेमाल कर यह जबरिया अभियान चलाया गया। अब भाजपा में कैरियर बनाने की जिद में कार्यकर्ता घर-घर जा लोगों को सदस्य बनने हेतु सहमत करने का सिरदर्द उठाने को तैयार नहीं हैं। वे शार्ट कट तरीके से अधिक से अधिक सदस्य बनाने को उतारू दिखे।
भाजपा भले ही दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का दावा कर रही हो पर हकीकत यही है कि जब कोई दल जबरिया, सत्ता की हनक से लोगों पर तानाशाही थोपने लगता है तो यह इस बात का प्रमाण होता है कि उस दल के दिन पूरे हो चुके हैं कि लोग अब इससे जुड़ने को तैयार नहीं हैं। संघ-भाजपा के साथ भी यही हो रहा है। ये अपने बड़े होने का चाहे जितना दम्भ भरें, इनके शासन से जनता त्रस्त है और इनके दिन पूरे हो चुके हैं। हिटलर के इन वंशजों को शीघ्र ही जनता हिटलर के अंजाम तक पहुंचायेगी।
भाजपा का जबरिया सदस्यता अभियान
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अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।