
गुड़गांव/ वर्तमान समय में भले ही मजदूर आंदोलन ठहरा या पीछे हटा हो, लेकिन पूंजीपति वर्ग का डर कम नहीं हुआ है। पूंजीपति वर्ग अपने डर को भिन्न-भिन्न तरीकां से कम करने की तरकीबें निकालता रहता है। इसने अपने कल-कारखानों में उत्पादन के तौर-तरीकों में बदलाव किया है। इस प्रक्रिया से इसने मजदूर वर्ग को और ज्यादा नियंत्रित किया है और मजदूर वर्ग की मोलभाव करने की ताकत को कमजोर किया है। इसी प्रक्रिया में मजदूर आंदोलन पर शिकंजा कसता जा रहा है।
बेलसोनिका कम्पनी के मालिक ने भी ऐसे ही सिलसिले को अपनाया है। यहां ठेका और स्थाई मजदूरों में अंतर दिखाने के लिए स्थाई मजदूरों की यूनिफार्म को बदल दिया है। जबकि ठेका व स्थाई मजदूरों के अंतर को खत्म करने के लिए पुरानी/पहली यूनियन 2014 से जुझारू तरीके से संघर्ष करती आ रही थी। यहां सही मायने में मजदूरों में भाईचारा दिखाई देता था। इसी भाईचारे को कायम रखने के लिए यूनियन ने ठेका मजदूरों को यूनियन की सदस्यता देने की पहल की। एक लम्बे समय से ठेका व स्थाई मजदूर एक जैसी यूनिफार्म पहनते आ रहे थे। जुलूस प्रदर्शनों में या फिर काम के दौरान ठेका व स्थाई मजदूरों में कोई अंतर दिखाई नहीं पड़ता था। मजदूरों में जबरदस्त एकता दिखाई देती थी। मालिक को मजदूरों में मामूली समानता व एकता भी बर्दाश्त नहीं हुई।
मालिक ने सोचा कि जो भी चीज या वजह ठेका व स्थाई मजदूरों में एकता को प्रदर्शित करती हो, उस पहचान को मिटा दिया जाए। और इस प्रकार स्थाई मजदूरों की यूनिफार्म में बदलाव कर दिया। इससे पूर्व मालिक की चहेती व पक्षधर नयी नवेली यूनियन ने ठेका मजदूरों से किनाराकसी करना शुरू कर दिया था। साफ तौर पर ठेका व स्थाई मजदूरों में विभाजन रेखा खींच दी थी। नयी यूनियन ठेका मजदूरों से आज के समय में सौतेला व्यवहार कर रही है।
कम्पनी मलिक ने पुरानी जुझारू संघर्षशील यूनियन का रजिस्ट्रेशन खारिज करा दिया। उस यूनियन के नेतृत्व को भी कम्पनी से निकाल दिया। उसके बावजूद भी पुरानी यूनियन और उसके नेताओं के जुझारू संघर्ष का भूत मालिक को अभी भी सता रहा है। मालिक को अभी भी इस बात का खतरा है कि कहीं संघर्ष का अनुभव लिए हुए ये मजदूर फिर से अपनी पूरी ताकत के साथ हमारे खिलाफ संघर्ष का ऐलान न कर दें। इस बात में कोई शक नहीं होना चाहिए कि मालिक हर तरह से ताकतवर होने के बावजूद मजदूरों की वर्गीय एकता से भयभीत रहता है। मालिकों को एक कंपनी के मजदूरों की एकता से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, बल्कि मजदूरों की वर्गीय एकता से ज्यादा फर्क पड़ता है। ये वर्गीय एकता एकाएक पैदा नहीं होती, बल्कि एक फैक्टरी का संघर्ष व्यापक फैक्टरियों में फैलते जाने से पैदा होती है।
अगर किसी एक फैक्टरी में जुझारू यूनियन के द्वारा लगातार संघर्ष किया जाता है। और वह यूनियन मजदूर वर्गीय एकता के सिद्धांतों पर संघर्षरत रहती है, तो ऐसी यूनियन को उस फैक्टरी मालिक सहित अन्य मालिक भी खत्म करना चाहेंगे। ऐसा ही बेलसोनिका कम्पनी मालिक ने संघर्षशील यूनियन और उसके नेताओं व मजदूरों के साथ किया। वह अब भी किसी भी प्रकार की एकता के प्रतीक को मिटाने पर तुला है। यह मालिकों के भय को दिखाता है। -गुड़गांव संवाददाता