अडाणी पर मेहरबान मोदी सरकार

प्रधानमंत्री मोदी की देश के शीर्ष पूंजीपति अडाणी से यारी किसी से छुपी नहीं है। यह यूं ही नहीं है कि मोदी के 10 वर्ष के शासन में सबसे ज्यादा फलने-फूलने वाला अडाणी समूह ही रहा है। हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने अडाणी के इस आश्चर्यजनक उत्थान व उसकी कारगुजारियों के बारे में जब एक रिपोर्ट जारी की तो अडाणी की कम्पनियों के शेयर भारी गिरावट का शिकार हुए। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सेबी से रिपोर्ट की मांग की। अब सेबी ने अडाणी को पाक साफ बताते हुए रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी है। कुल मिलाकर कहा जाए तो मोदी सरकार की मेहरबानी से हिंडनबर्ग रिपोर्ट अडाणी को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा पायी। अडाणी समूह मनमाने तरीके से कानूनों को धता बताता रहा और मोदी सरकार की मेहरबानी से बच निकला। 
    
2017-18 में अडाणी समूह की 6 कंपनियों का कुल मुनाफा 3455 करोड़ रु. था। अडाणी समूह के विशालकाय बनने का राज दूसरी कम्पनियों का अधिग्रहण रहा है। यह अधिग्रहण अपनी कंपनियों के शेयरों के भाव चढ़ाकर उस पर भारी कर्ज उठा कर किया जाता रहा है। परिणाम यह हुआ कि 2023 में अडाणी समूह का कुल मुनाफा बढ़ कर 57.219 करोड़ रु. हो गया। बंदरगाहों का अधिग्रहण अडाणी समूह का प्रिय धंधा रहा है। 
    
अभी हाल में ही मोदी जब ग्रीस की यात्रा पर गये तो वहां वे भारत के प्रधानमंत्री कम अडाणी समूह के एजेंट की भूमिका में अधिक नजर आये। अडाणी समूह ग्रीस के 2-3 बंदरगाहों की खरीद-निवेश को उत्सुक है और प्रधानमंत्री मोदी इस निवेश की राह की बाधायें दूर करने में जुटे रहे। 
    
मोदी का अडाणी प्रेम तब और स्पष्ट हो जाता है जब देश में अडाणी द्वारा अधिग्रहित किये बंदरगाहों की कहानी पर एक नजर डाली जाती है। इसी से यह भी स्पष्ट होता है कि अडाणी समूह इतनी तेजी से बंदरगाह-हवाई अड्डों पर कैसे कब्जा जमा ले रहा है। 
    
सितम्बर 2021 में अडाणी समूह ने घोषणा की कि उसने आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम स्थित गंगावरम बंदरगाह का 6200 करोड़ रु. में अधिग्रहण कर लिया है। अडाणी समूह ने एक प्रेस विज्ञप्ति के जरिये बताया कि उसने इस बंदरगाह में आंध्र प्रदेश सरकार की समूची 10.4 प्रतिशत हिस्सेदारी 645 करोड़ रु. में खरीद ली है। इससे पूर्व अप्रैल 21 में उसने प्राइवेट इक्विटी फर्म वारबर्ग पिनकस के इस बंदरगाह के 31.5 प्रतिशत शेयर खरीदने के अलावा बंदरगाह के प्रमोटर डी वी एस राजू और परिवार से एक समझौता कर उनके 58.1 प्रतिशत नियंत्रणकारी शेयरों पर कब्जा जमा लिया था। वारबर्ग के शेयरों हेतु अडाणी समूह ने 1954 करोड़ रु. का भुगतान किया। यह भुगतान इस तरह हुआ कि 800 करोड़ रु. के बदले में वारबर्ग को अडाणी पोर्ट्स में 0.49 प्रतिशत की हिस्सेदारी दे दी गयी। राजू मुख्य प्रमोटर के साथ सौदा उसे अडाणी पोर्ट्स की 2.2 प्रतिशत भागीदारी (उस समय 3604 करोड़ रु. मूल्य की) दे कर किया गया। 
    
अडाणी समूह 2015 से उक्त बंदरगाह को खरीदने को उत्सुक रहा था। तब बंदरगाह का कुल मूल्य 7000 करोड़ से 13,000 करोड़ रु. तक आंका गया था। जब अडाणी ने 2021 में बंदरगाह के 100 प्रतिशत शेयर खरीदे तब तक बंदरगाह की क्षमता 3 करोड़ टन ढुलाई से बढ़कर 6 करोड़ टन हो चुकी थी। इस तरह लगभग 15,000 करोड़ रु. से ऊपर का बंदरगाह अडाणी समूह को महज 6200 करोड़ रु. में हासिल हो गया और उसे भुगतान तो इससे भी कम राशि करनी पड़ी क्योंकि उसने करीब 4404 करोड़ रु. की अपनी कम्पनी की भागीदारी देकर भुगतान किया। इस दौरान कोविड महामारी के कारण रुके कारोबार का अडाणी समूह को फायदा हुआ पर यह बात बेहद स्पष्ट है कि आंध्र सरकार, वारबर्ग व राजू तीनों ने वास्तविक मूल्य से काफी कम पर अपनी हिस्सेदारी अडाणी समूह को बेची। 
    
गंगावरम बंदरगाह का 2020 में मुनाफा 634 करोड़ रु. था। अडाणी समूह की अपनी गणना के अनुसार 8.8 वर्ष में वह चुकाये कुल मूल्य 6200 करोड़ रु. की वसूली कर लेगा। आम तौर पर बाकी अधिग्रहणों में यह समय 15 से 25 वर्ष तक होता है। यह भी दिखलाता है कि अडाणी समूह ने कितने नफे का सौदा किया। इस अधिग्रहण के कम मूल्य पर आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका लगी है जिसमें आंध्र प्रदेश सरकार को भी निशाने पर लिया गया है कि उसने बगैर बोली लगाये अपनी हिस्सेदारी अडाणी समूह को कम दामों में क्यों सौंप दी। याचिका में यह भी प्रश्न उठाया गया है कि इस बंदरगाह हेतु 1800 एकड़ भूमि सरकार ने मुहैय्या करायी थी जिसकी आज कीमत 3000 करोड़ रु. है। इस तरह सरकार ने अडाणी से भूमि के मूल्य की भी वसूली नहीं की। कोर्ट में आंध्र सरकार इन आरोपों से इनकार करती रही है। एक पूर्व अधिकारी ने सीएजी से इस खरीद का ऑडिट कराने की भी मांग की है। 
    
गंगावरम बंदरगाह अडाणी पोर्ट्स के 13 बंदरगाहों में से एक है। अडाणी पोर्ट्स का पहला बंदरगाह 1998 में मुंद्रा (गुजरात) में अस्तित्व में आया था। आज इसके कुल 13 बंदरगाहों में 6 अधिग्रहण किये हुए हैं। इसके अतिरिक्त इसके पास इजरायल व कोलंबो में भी बंदरगाहों में हिस्सेदारी है और ग्रीस में बंदरगाहों पर यह कब्जे को उत्सुक है। 
    
जहां पहले बंदरगाह सरकार बनाती थी वहीं अब यह पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत बन रहे हैं। मुंद्रा, गंगावरम व कृष्णापट्टनम पी पी पी मोड पर बने बंदरगाह हैं। पी पी पी मोड के तहत सरकार निजी निवेशकों को भारी सहूलियतें देती रही है। कृष्णपट्टनम बंदरगाह का मसला लें तो इसमें भागीदार नवयुग ग्रुप को सहूलियत दी गयी थी कि इस बंदरगाह के दोनों ओर 30 किमी. तक कोई बंदरगाह नहीं बनेगा व साथ ही शुरूआती 30 वर्षों तक कुल आय का महज 2.6 प्रतिशत सरकार को देना होगा। आम तौर पर यह राशि आय के 33 प्रतिशत तक बाकी नये बंदरगाहों के मामले में तय है। अगर बंदरगाह पुराना है तो यह राशि 52 प्रतिशत तक हो सकती है। जनहित याचिका में इस पर भी प्रश्न खड़े किये गये हैं। गंगावरम बंदरगाह के लिए सरकार को महज 2.1 प्रतिशत आय का हिस्सा मिलना था। अडाणी ने जब यह बंदरगाह अधिग्रहित किया तो बंदरगाह पहले से विकसित था पर पुराने समझौते के तहत उसे 2039 तक आय का महज 2.1 प्रतिशत हिस्सा सरकार को देना था। 
    
गंगावरम बंदरगाह से प्रति वर्ष 6 करोड़ टन माल ढुलाई हो सकती है। अगर अडाणी प्रति टन 300 रु. की वसूली भी करता है तो उसे 1800 करोड़ रु. प्रतिवर्ष प्राप्त होंगे। अगर इसकी मुनाफे की दर बाकी अडाणी के बंदरगाहों सरीखी यानी 44.22 प्रतिशत रहती है तो अडाणी इस बंदरगाह से 795.9 करोड़ रु. का प्रतिवर्ष लाभ कमायेगा और उसे सरकार को महज 37.8 करोड़ रु. देने होंगे। 
    
अडाणी ग्रुप पर बंदरगाहों के मामले में सरकार की मेहरबानी स्पष्ट है। यह मेहरबानी तब और खुलकर सामने आती है जब अडाणी समूह की कंपनियों को सरकारी बैंकों द्वारा मिले ऋण व अन्य सरकारी रियायतें सामने आती हैं। ये रियायतें बताती हैं कि मोदी काल में सरकारी सम्पत्ति व भारी कर छूट अडाणी को मुनाफे के तौर पर सीधे हस्तांतरित हो रही है। अडाणी यूं ही गुमनामी से दुनिया का शीर्ष पूंजीपति नहीं बन गया। मोदी से यारी के बगैर यह असंभव था। ऐसा नहीं है कि बाकी पार्टियां पूंजीपतियों को लूट की छूट नहीं देती हैं। पूंजीवादी व्यवस्था में पूंजी ही वास्तविक शासक होती है और सभी सरकारें शासक पूंजीपति वर्ग की सेवा करती हैं। पर मोदी काल में जिस निर्लज्जता से कुछेक पूंजीपतियों पर मेहरबानी की जा रही है वह बेजोड़ है। 

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