दिल्ली भगदड़ और रेल मंत्रालय

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कुंभ को लेकर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर इकट्ठा भीड़ में मची भगदड़ में ढेरों लोग मारे गये। इससे कुछ दिन पहले इलाहाबाद में कुंभ स्थल  व कुछेक अन्य जगहों पर मची भगदड़ में ढेरों लोग मारे गये थे। इन भगदड़ों के प्रति सरकारों व प्रशासनिक तंत्र का रुख बतलाता है कि उन्हें भगदड़ के कारणों में कोई दिलचस्पी नहीं है। वे सारी दिलचस्पी बस घटना को छिपाने, लोगों के जेहन से उसे मिटाने में दिखा रहे हैं। 
    
प्रयाग में भगदड़ के बाद काफी वक्त तक तो प्रशासन घटना से ही इंकार करता रहा। बाद में उसने 30 लोगों की मौतों का आंकड़ा स्वीकारा। जबकि लोग मृतकों की संख्या सैकड़ों-हजारों में होने की बात कर रहे थे। पर योगी सरकार मृतकों की संख्या बढ़ाने को तैयार नहीं हुई। उलटे वह कुंभ में भारी भीड़ जुटाने की कवायदों में जुटी रही। अब वह 66 करोड़ लोगों के स्नान की बात कर रिकार्ड बनाने की बात कर रही है। 
    
कुछ ऐसा ही रुख रेलवे विभाग का दिल्ली भगदड़ को भी लेकर रहा। रेलवे विभाग ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स को 200 से अधिक खातों से भगदड़ के वीडियो, फोटो हटाने के निर्देश दे दिये। नयी सोशल मीडिया पालिसी के तहत सरकार को यह अधिकार मिल गया है कि वो सोशल मीडिया प्लेटफार्म को किसी सामग्री को हटाने को कह सकती है। 
    
रेलवे इन वीडियो को यह कहकर हटवा रहा है कि ये यात्रियों को विचलित कर सकते हैं। पर असल बात यह है कि रेलवे विभाग उ.प्र. सरकार की तरह अपने ऊपर भगदड़-मौतों के दाग को इंटरनेट से गायब करवा लोगों की स्मृति से गायब करवाना चाहता है। 
    
सरकार व प्रशासनिक विभागों का रुख बहुत हद तक पूंजीपतियों के फैक्टरी में होने वाली दुर्घटनाओं वाले रुख से मिलता जुलता है। ऐसी दुर्घटना के वक्त पूंजीपति-प्रबंधक लाशों को ठिकाने लगा दुर्घटना की बात से ही मुकरने की कोशिश करते हैं। अगर मामला ज्यादा उछल जाता है तो बेहद कम मौतें स्वीकार कर मामला निपटा देते हैं। शासन-प्रशासन उनकी इस हरकत में मददगार बना रहता है। 
    
पर जब खुद सरकार ही अपने नागरिकों की मौतों से मुकरने लगे, उन्हें छिपाने लगे तो मामला काफी गम्भीर हो जाता है। यह सरकारों के जनविरोधी से आगे बढ़कर धूर्त होने की निशानी है। धूर्त सत्ताधीश जब खुद यह करने लग जाते हैं तो उनके सारे सिपहसालार भी इन्हीं हरकतों में जुट जाते हैं। पुलिस खुद निर्दोष लोगों की हत्या कर मुकरने लगती है तो प्रशासन बाढ़ से लेकर दुर्घटना, साम्प्रदायिक हिंसा में मौत के आंकड़े छिपाने लगता है। इन्हीं तौर-तरीकों से उ.प्र. ‘अपराध मुक्त’ हो जाता है। 
    
हिन्दू फासीवादी आधुनिक सूचना तंत्र की ताकत पहचानते हैं। वे अप्रिय खबरें हटाकर और मनपसंद फर्जी खबरें फैलाकर लोगों के दिमागों का मनमाफिक निर्माण करना चाह रहे हैं। वे इन्हीं खबरों के जरिये विकसित भारत का निर्माण कर रहे हैं। 
    
पर वे भूल जाते हैं कि मनुष्य का दिमाग केवल खबरों से ही नहीं बनता। उसके शरीर में जाता भोजन, तन पर कपड़े यानी उसकी बुनियादी जरूरतें भी उसके दिमाग को बनाने में योगदान करती हैं। और देर-सबेर जनता यह हकीकत पहचान लेगी कि खबरों में विकसित बनते भारत की सरकार जनता से बुनियादी जरूरतों के साधन ही नहीं छीन रही है बल्कि जनता की मौतों का आंकड़ा छिपा उनका वजूद भी छीन ले रही है। 

 

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आलेख

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असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

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इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

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आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो। 

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ट्रम्प द्वारा फिलिस्तीनियों को गाजापट्टी से हटाकर किसी अन्य देश में बसाने की योजना अमरीकी साम्राज्यवादियों की पुरानी योजना ही है। गाजापट्टी से सटे पूर्वी भूमध्यसागर में तेल और गैस का बड़ा भण्डार है। अमरीकी साम्राज्यवादियों, इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों और अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निगाह इस विशाल तेल और गैस के साधन स्रोतों पर कब्जा करने की है। यदि गाजापट्टी पर फिलिस्तीनी लोग रहते हैं और उनका शासन रहता है तो इस विशाल तेल व गैस भण्डार के वे ही मालिक होंगे। इसलिए उन्हें हटाना इन साम्राज्यवादियों के लिए जरूरी है। 

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आज भी सं.रा.अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और सामरिक ताकत है। दुनिया भर में उसके सैनिक अड्डे हैं। दुनिया के वित्तीय तंत्र और इंटरनेट पर उसका नियंत्रण है। आधुनिक तकनीक के नये क्षेत्र (संचार, सूचना प्रौद्योगिकी, ए आई, बायो-तकनीक, इत्यादि) में उसी का वर्चस्व है। पर इस सबके बावजूद सापेक्षिक तौर पर उसकी हैसियत 1970 वाली नहीं है या वह नहीं है जो उसने क्षणिक तौर पर 1990-95 में हासिल कर ली थी। इससे अमरीकी साम्राज्यवादी बेचैन हैं। खासकर वे इसलिए बेचैन हैं कि यदि चीन इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो वह इस सदी के मध्य तक अमेरिका को पीछे छोड़ देगा।