जर्मनी में फासीवादी दल ए एफ डी की गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं। जब से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन में क्रूर नरसंहार शुरू हुआ और जर्मन शासकों ने इजरायल के समर्थन में खड़ा होना तय किया, तब से जर्मनी के भीतर मुस्लिमों खासकर फिलिस्तीनियों के विरुद्ध फासीवादियों की हिंसा काफी बढ़ गयी है। इस हिंसा को शासक वर्ग का किसी न किसी रूप में समर्थन भी हासिल रहा है। हालांकि जर्मन जनता का एक ठीक-ठाक हिस्सा सड़कों पर उतर फासीवादी ताकतों की बढ़त का विरोध भी कर रहा है।
ए एफ डी (अल्टरनेटिव फार जर्मनी) के समर्थन से जर्मनी में शरणार्थियों-अप्रवासियों के खिलाफ ‘प्रत्यावर्तन सुधार अधिनियम’ बनाया जा रहा है। इसके तहत शरणार्थियों की गिरफ्तारी व जबरन निर्वासन के प्रावधान हैं। दूसरी तरफ फासीवादी दस्ते जगह-जगह मुस्लिमों पर हमले बोल रहे हैं।
9 अक्टूबर 2023 को सिगबर्ग में एक मस्जिद पर 3 लोगों ने हमला बोल उसकी खिड़कियां तोड़ दीं व चरमपंथी पर्चे फेंके। 16 अक्टूबर 23 को डॉर्टमुंड में एक मस्जिद में आगजनी की गयी। 17 नवम्बर,23 को मैगडेबर्ग में मुस्लिम कब्रों को स्वास्तिक रंग से रंगा गया। 10 दिसम्बर, 23 को बर्लिन में एक ट्रेन में कुछ नस्लवादियों ने एक फिलिस्तीनी व्यक्ति को पीटते हुए अपने वतन लौटने की धमकी दी। 11 दिसम्बर, 23 में म्यूनिख में ‘सभी फिलिस्तीनियों को मार डालो’ के आह्वान वाले चित्र बनाये हुए दिखे। 21 दिसम्बर 23 को एक अरब रेस्तरां को मिले एक आनलाइन आर्डर में फिलिस्तीनियों के खिलाफ नरसंहार का आह्वान किया गया था। क्रिसमस के दिन बवेरिया में मुस्लिम घरों-कारों पर स्वास्तिक निशान बना पाया गया। 26 दिसम्बर 23 को एक पाकिस्तानी परिवार के घर में आगजनी की गयी। 18 जनवरी 24 को दो स्कार्फ पहने महिलाओं पर हमला बोला गया। जनवरी-फरवरी माह में 2 मस्जिदों पर हमले, मुसलमानों को मारने के आह्वान कई जगह पाये गये।
मुस्लिमों के खिलाफ लक्षित हिंसा को रोकने में जर्मन सरकार व पुलिस-प्रशासन पूरी तरह विफल रहे हैं। इजरायल के समर्थन में शासकों व मीडिया की बयानबाजी ने भी मुस्लिम विरोधी माहौल बनाने में मदद की है। फिलिस्तीन के समर्थन में होने वाले प्रदर्शनों का क्रूर दमन बना हुआ है। जगह-जगह फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनकारी गिरफ्तार किये गये हैं। जर्मनी में फिलिस्तीनी स्कार्फ पहनना या ‘फ्री फिलिस्तीन’ का नारा लगाना अपराध बन चुका है। इजरायल द्वारा जारी नरसंहार का विरोध करने वाले संगठनों का खास तौर पर सरकारी दमन किया जा रहा है।
स्पष्ट है कि जर्मन साम्राज्यवादियों का इजरायल के पक्ष में खड़ा होना जर्मनी में फासीवादी तत्वों को आगे बढ़ने, मनमाने हमले बोलने में मददगार रहा है। इन हमलों में प्रशासनिक तंत्र मूक दर्शक बना रहा है।
पर जर्मनी की बहादुर जनता फासीवादी आतंक की बढ़त से चिंतित है और अधिकाधिक संख्या में ‘हिटलर की वापसी’ रोकने को सड़कों पर उतर रही है।
जर्मनी : बढ़ती मुस्लिम विरोधी हिंसा
राष्ट्रीय
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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
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