
मेरा नाम कपिल कुमार गौतम है। मैं काशीपुर के हिम्मतपुर वार्ड नं 6 में निवास करता हूं और दो साल से काशीपुर के हिम्मतपुर क्षेत्र में स्थित कम्पनी काशी विश्वनाथ में काम करता हूं। मेरा पद सहायक इलेक्ट्रीशियन का है। इन दो सालों में मैंने काशी विश्वनाथ और इसकी अन्य फैक्टरियों में मजदूरों की जो स्थिति देखी है उसी के बारे में कुछ बातें आपको बताना चाहता हूं।
जब मैं शुरुवात में काम करने के लिए फैक्टरी गया तो मुझे अच्छा लगा कि मुझे घर के पास ही काम मिल गया है। लेकिन धीरे-धीरे फैक्टरी के अंदर के हालात देखकर मुझे समझ में आया कि फैक्टरी में मजदूरों का बहुत शोषण हो रहा है। जब भी कोई मजदूर फैक्टरी में काम करने जाता है तो उसका ई एस आई कटना चाहिए ताकि जरूरत पड़ने पर मजदूर इलाज करवा सके लेकिन यहां ज्यादातर मजदूरों का ई एस आई काटा ही नहीं जाता और पी एफ भी नहीं काटा जाता है। क्योंकि मालिक कंपनी में ज्यादा मजदूरों को नहीं दिखाना चाहता।
फैक्टरी में मजदूरों से 12-12 घंटे काम लिया जाता है यानी 4 घंटे प्रतिदिन ओवरटाइम करवाया जाता है। श्रम कानूनों के मुताबिक ओवरटाइम का दुगुना भुगतान होना चाहिए जैसे 4 घंटे काम कराने पर मालिक को 8 घंटे का भुगतान करना होगा लेकिन यहां ऐसा नहीं होता। ओवरटाइम सिंगल ही दिया जाता है। जो ओवरटाइम दिया जाता है वह भी बेसिक पर ही दिया जाता है। ओवरटाइम पर जबरदस्ती रोका जाता है। यदि कोई मजदूर ओवरटाइम करने से मना करता है तो उसका गेट बंद कर दिया जाता है।
फैक्टरी में काम करने के दौरान मजदूरों की सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं। आये दिन मजदूर फैक्टरी में काम करने के दौरान घायल होते रहते हैं या मर जाते हैं। मृतक मजदूर के परिवारजनों को कम्पनी 10-20 हजार रुपये देकर निपटारा कर देती है। उसकी नजर में मजदूरों की जान की यही कीमत है। कोई दुर्घटना होने पर अगली बार दुर्घटना न हो इसके लिए कोई इंतजाम नहीं किये जाते हैं। आठ-नौ महीने पहले एक महिला की कम्पनी में दीवार गिरने से मौत हो गयी। अगर उसके पास हेलमेट होता तो वह बच जाती। इसी तरह दिसंबर 24 में एक मजदूर राहुल की रोलर पर फंसकर मृत्यु हो गयी। ऐसी ही बहुत सारी घटनाएं हैं। इसके अलावा चोट तो अक्सर लगती ही रहती हैं। जूते-वर्दी तक कंपनी नहीं देती है। कम्पनी मालिक ने कम्पनी में एक घंटी लगा रखी है। जब भी श्रम विभाग से कोई कम्पनी में जांच करने आता है तो वह घंटी बजा दी जाती है ताकि पूरी कम्पनी में सूचना फैल जाए और कम्पनी के गैर कानूनी काम नजर में न आएं।
काशी विश्वनाथ और अन्य कम्पनियां न केवल मजदूरों का शोषण करती हैं बल्कि इस क्षेत्र में रह रही आबादी के लिए ये वायु प्रदूषण का भी काम करती हैं। दिन में तो नहीं लेकिन रात में इन कंपनियों से निकलने वाला धुंआ हिम्मतपुर में रह रहे निवासियों को साफ दिखाई पड़ता है लेकिन वे उसी हवा में सांस लेने के लिए मजबूर हैं।
काशी विश्वनाथ के मालिक की अन्य कई कंपनियां भी हिम्मतपुर क्षेत्र में हैं। यहां भी ऐसे ही हालात हैं। कुछ दिनों पहले 4 अप्रैल को इसकी एक अन्य कम्पनी देवार्पण जो नमकीन बनाती है, में एक मजदूर की कन्वेयर में फंसकर मौत हो गयी। उस मजदूर को वहां काम करते हुए 1 वर्ष हो चुका था लेकिन उसकी ई एस आई नहीं थी। पहले तो मालिक उसकी लाश को ही गायब करना चाहता था लेकिन वहां मौजूद मजदूरों द्वारा वीडिओ बनाने के बाद वह ऐसा नहीं कर पाया।
मृतक मजदूर के परिवारजनों को इंसाफ दिलाने के लिए जब बहुत सारे लोग परिवारजनों के साथ इकट्ठा हो गये तो एक मजदूर होने के नाते मैं भी देवार्पण कम्पनी के गेट पर पहुंच गया। मालिक के साथ काफी जद्दोजहद और संघर्ष के बाद अंततः 5 लाख रुपये मृतक मजदूर के परिवारजनों को मिले। मजदूर की जान के बदले यह बहुत छोटी रकम थी लेकिन यह भी मालिक को बहुत ज्यादा लग रही थी।
जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूं कि देवार्पण कम्पनी भी काशी विश्वनाथ के मालिक की ही कम्पनी है इसलिए मुझे काशी विश्वनाथ कम्पनी के मालिक ने नौकरी से निकाल दिया। मुझ पर झूठे इलजाम लगाए गये। आरोप लगाया गया कि मैंने कम्पनी की मोटर खराब कर दी। जबकि ऐसा कभी नहीं हुआ। उलटे कई बार मुझसे ऐसे काम करवाए गये कि मेरी जान जाते-जाते बची। इसके अलावा यह आरोप लगाया गया कि मैं छुट्टी बहुत करता हूं। जबकि हकीकत यह है कि मुझसे जबरदस्ती 12-12 घंटे काम करवाया जाता था और छुट्टी वाले दिन भी काम करवाया जाता था। इससे मेरी तबियत खराब हो जाती थी। असल बात यह है कि काशी विश्वनाथ का मालिक या कोई भी मालिक ऐसे मजदूर को कंपनी में नहीं रखना चाहता जो उसके गैर कानूनी कामों के खिलाफ आवाज उठाता हो।
मैं कम्पनी से निकाले जाने के बाद श्रम विभाग भी गया। श्रम विभाग ने भी मुझे निकाले जाने को गलत बताया और कम्पनी से मुझे वापिस काम पर रखने के लिए कहा। लेकिन अभी तक भी कम्पनी ने मुझे काम पर नहीं रखा है। जब मैं काम से निकाले जाने की सूचना देने थाने पहुंचा तो पुलिस वालों ने मालिक का ही पक्ष लिया। और कहा कि मालिक के खिलाफ लड़ोगे तो मालिक क्यों रखेगा। यानी मजदूर अपने हकों के लिए मालिक से संघर्ष भी नहीं कर सकता।
जब भी मजदूर अपने हक की आवाज उठाते हैं तो श्रम विभाग, शासन प्रशासन, पुलिस प्रशासन कहता है कि हमारे पास आओ। हम तुम्हारी समस्या का समाधान करवाएंगे लेकिन जब मजदूर इनके पास जाता है तो ये सभी मालिक के आगे बेबस नजर आते हैं। ये कहीं न कहीं मालिक के पक्ष में खड़े नज़र आते हैं। ये मालिक के खिलाफ तभी कार्यवाही करते हैं जब मजदूर संगठित होकर मालिक के खिलाफ संघर्ष करते हैं। मुझे यह बात धीरे-धीरे समझ में आ रही है और सभी मजदूरों को इस बात को समझने की जरूरत है। तभी वे मालिकों से अपने अधिकारों को छीन सकते हैं। -कपिल कुमार गौतम