लीप ईयर नहीं, लीक ईयर है 2024

प्रश्न पत्र का लीक होना अब एक आम बात हो गई है। हर दूसरे दिन अखबारों में यही पढ़ने को मिलता है कि फलां परीक्षा का प्रश्न पत्र लीक हो गया है। एक विद्यार्थी जो मेहनत और लगन के साथ किसी परीक्षा की तैयारी करता है उसके ऊपर इसका बहुत ज्यादा दुष्प्रभाव पड़ता है। परीक्षा लीक का एक छात्र पर पड़ने वाला असर इन पंक्तियों से समझा जा सकता हैः

मैंने सोचा था सब कुछ ठीक हो गया
बाहर देखा तो पेपर लीक हो गया
कोई एक रात जागकर अमीर हो गया
मैं किताबों को पढ़कर फकीर हो गया
दिन रात की मेहनत बेकार हो गई
बेकारों की मेहनत साकार हो गई!!
    
मैंने 21 जनवरी 2024 को CTET (केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा) दिया और जब मैं अपनी परीक्षा देकर वापस अपने हास्टल पहुंची तो यूट्यूब पर देखा ‘CTET परीक्षा लीक’! छात्रों ने आवाज उठाई, कई सारे सबूत दिखाए लेकिन आयोग ने कहा कि पेपर लीक नहीं हुआ और उसका परिणाम भी घोषित कर दिया गया।
    
इस बार मैं मार्च में बिहार शिक्षक भर्ती की परीक्षा देने गई थी। ये परीक्षा मेरे जीवन को एक नई दिशा देने वाली थी, इसके लिए मैंने खूब मेहनत भी की। दिन-रात एक करके पढ़ाई की। दिल्ली से बिहार जाने के लिए टिकट ही बमुश्किल मिल पाया था। परीक्षा देने के बाद मैं घर भी नहीं पहुंच पाई थी, ट्रेन में ही सूचना मिल गई कि इसका पेपर भी लीक हो गया है। कुछ पल हम उम्मीद लगाए बैठे थे कि शायद ये खबर फर्जी निकल आए। काश! पेपर लीक ना हुआ हो, लेकिन सच यही था कि पेपर लीक हो चुका था। सरकारी तंत्र और परीक्षा माफिया मिलकर एक के बाद एक हम छात्रों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। जब बाद में जांच हुई तो पता चला कि झारखंड के हजारीबाग के एक होटल में पेपर माफिया बच्चों को जमा करके पैसे लेकर उत्तर रटवाया करते थे।
    
शिक्षक भर्ती की परीक्षा लीक होने की आधिकारिक पुष्टि जब विभाग द्वारा की गई तो इसका मेरे जैसे लाखों छात्राओं-छात्रों पर बहुत बुरा असर पड़ा, हमारा मनोबल बुरी तरह टूट गया था। लीक की पुष्टि होने के अगले 10 दिनों तक पढ़ने में बिल्कुल मन नहीं लगता था। क्या करें? किसके लिए पढ़ें? बार-बार लीक हो जाने वाली परीक्षाओं के लिए पढ़ें?
    
सोचिए BPSC ने लाखों छात्रों को बिहार भ्रमण करा दिया और हासिल क्या है? एक और पेपर लीक! पेपर लीक सिर्फ बिहार शिक्षक भर्ती का नहीं हुआ है, इसके पहले RO/ARO की परीक्षा 11 फरवरी को लीक हुई, 28 जनवरी को SSC CGL का प्रश्न पत्र लीक हुआ, इसके आस पास ही UP पुलिस और बिहार पुलिस का प्रश्न पत्र लीक हुआ है। ऐसे तमाम पेपरों का लीक होना कोई आम परिघटना नहीं है। एक के बाद एक पेपर लीक होना सरकारी तंत्र के साथ पेपर माफिया की सांठ-गांठ को दिखाता है।
    
पेपर लीक की समस्या कहीं ना कहीं लगातार बढ़ती बेरोजगारी से जुड़ती है। युवाओं पर किसी भी कीमत पर रोजगार पाने का ऐसा दबाव है कि वो परेशान रहते हैं, रोजगार हासिल करने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं। ऐसे में सत्ता पोषित माफिया उन्हें उनके सपने पूरे करने के लिए पैसे के बदले पेपर देने के ख्वाब दिखाता है। जब तक सरकार सबको सम्मानजनक रोजगार की गारंटी नहीं देती, हर हाथ को उसकी योग्यता अनुसार काम की गारंटी नहीं देती तब तक ऐसी घटनाओं से निपट पाना भी संभव नहीं है।
    
पेपरों का बार-बार लीक होना सरकारों की विफलता तो है ही, लेकिन साथ में हम छात्रों के लिए भी बड़ा सवाल है। आज देश के स्टूडेंट्स अपनी मांगों को लेकर संगठित नहीं हैं, समय की मांग है कि लगातार होते पेपर लीक के खिलाफ छात्र इकट्ठे हों और अपनी आवाज उठाकर इन सरकारों को कड़े कदम उठाने के लिए मजबूर कर दें। -रवीना राय, छात्रा, MA, दिल्ली विश्वविद्यालय

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता