लंगड़ी तुलना

कहावत है तुलनाएं हमेशा लंगड़ी होती हैं। और जब तुलना मोदी और नेहरू की हो तो तुलना की दोनों टांगें टूट जाती हैं। इस बार बहुत हल्ला है कि मोदी ने तीसरी बार लगातार प्रधानमंत्री बनकर नेहरू के रिकार्ड की बराबरी कर ली है। और इसे ऐतिहासिक भी कहा जा रहा है। 
    
यह बात ठीक है कि नेहरू ने लगातार तीन चुनाव (1952, 1957, 1962) भारी बहुमत से जीते थे परन्तु वे प्रधानमंत्री तीन बार नहीं तथ्यतः  देखा जाये तो पांच बार प्रधानमंत्री बने। वे 2 सितम्बर 1946 से 15 अगस्त 1947 तक अंतरिम प्रधानमंत्री बने और 15 अगस्त 1947 से लेकर 1964 तक करीब 16 साल प्रधानमंत्री रहे। पहले आम चुनाव तक वे अंतरिम प्रधानमंत्री थे। 
    
मोदी की नेहरू से कोई तुलना नहीं है। और जहां तक तीन बार प्रधानमंत्री का सवाल है उन्हीं की पार्टी के बाजपेयी ने तीन बार प्रधानमंत्री की शपथ ली। और इंदिरा गांधी तो चार बार प्रधानमंत्री बनीं। लगातार तीन बार तो वह भी प्रधानमंत्री रहीं। वे 1966 में लाल बहादुर शास्त्री के बाद पहली दफा प्रधानमंत्री बनीं। दूसरी बार 1967 के आम चुनाव में जीत के बाद और तीसरी बार 1971 में बनीं। चौथी दफा वे 1980 में प्रधानमंत्री बनीं। 
    
मोदी के गुण गाने वाले इतिहास की परवाह नहीं करते हैं। तुलना करते वक्त तो वे अतिश्योक्ति में अपने नेता की तरह ही बात करते हैं। 

आलेख

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता