इजराइल का फिलिस्तीन पर हमला और भाजपा
इजराइल ने फिलिस्तीन पर हमला बोला हुआ है। अब तक इस हमले में 1400 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। मारे और घायल बच्चों, महिलाओं की दर्दनाक तस्वीरें सोशल मीडिया में छाई हुई हैं
इजराइल ने फिलिस्तीन पर हमला बोला हुआ है। अब तक इस हमले में 1400 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। मारे और घायल बच्चों, महिलाओं की दर्दनाक तस्वीरें सोशल मीडिया में छाई हुई हैं
हिन्दू फासीवादियों के लिए औरंगजेब एक खास शख्स है। यह उनकी कल्पनाओं का ऐसा दुश्मन है जिस पर लगातार हमला करके वे आम हिन्दुओं को अपने पीछे गोलबंद करने का प्रयास करते हैं। उन
अक्टूबर के पहले हफ्ते के अंत में एक सुबह दिल्ली-एनसीआर समेत कई जगहों पर 40 से अधिक, अधिकतर ऐसे पत्रकारों एवं अन्य मीडियाकर्मियों के घरों पर पुलिस ने छापे मारे, उनसे घर पर
देश के पूंजीवादी लोकतंत्र ने 70 से अधिक वर्ष पूरे कर लिये। अप्रैल 1952 को पहली चुनी संसद अस्तित्व में आयी थी। इन 70 बरसों में भारतीय संसद ने खुद को रसातल में ले जाने का क
हाल ही में सरकार द्वारा संसद का विशेष सत्र बुलाने की घोषणा के साथ ही इसके एजेण्डे को लेकर पूंजीवादी हलकों में तरह-तरह के अनुमान लगाये जाते रहे हैं। इसी बीच सरकार द्वारा ‘
‘‘हमारे देश में सामाजिक असमानता का एक इतिहास रहा है।...हमने अपने साथी इंसानों को सामाजिक व्यवस्था में पिछड़ा बनाये रखा। वे जानवरों की तरह रहते रहे और हमने उनकी परवाह नहीं
मोदी सरकार द्वारा भारत में बहुप्रचारित जी-20 का शिखर सम्मेलन रूसी व चीनी राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में सम्पन्न हो गया। रूस व चीन के राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में ऐसा दबाव त
हिन्दू फासीवादियों की केन्द्रीय सरकार ने भारत के आपराधिक कानूनों को बदलने की घोषणा कर दी है। भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदल
अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब रेलवे के पुलिसकर्मी चेतन ने चलती ट्रेन में अपने अधिकारी और मुस्लिम समुदाय के तीन लोगों की हत्या कर दी थी। तब उस पुलिसकर्मी को बचाने के लिए उसक
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को