उद्घाटन के दिन ही महिला पहलवानों पर बरसा सेंगोल

28 मई को नई संसद और राजदण्ड सेंगोल का काफी ताम झाम के साथ उद्घाटन हो गया। राजधानी दिल्ली में जहां एक ओर नई संसद का उद्घाटन हो रहा था वहीं दूसरी ओर संघर्षरत महिला पहलवानों पर दिल्ली पुलिस बर्बर लाठी बरसा रही थी। पुलिस ने न केवल लाठियां भांजी बल्कि पहलवानों के धरनास्थल पर लगे तम्बू व अन्यpahlvaan सामान को भी उखाड़ दिया। इस तरह राजदण्ड सेंगोल अपने उद्घाटन के साथ ही महिला पहलवानों के ऊपर बरस पड़ा। 
    

सामंती जमाने के राजदण्ड सेंगोल को पुनर्स्थापित करने के मूर्खतापूर्ण कृत्य को मोदी सरकार कुछ ऐसे कारनामे के रूप में पेश कर रही है मानो उसने भारतीय संस्कृति की रक्षा में कोई महान कदम उठा लिया हो। मानो मोदी सरकार बताना चाह रही है कि आगे से शासन राजदण्ड का मालिक ही चलायेगा और जनता द्वारा 5 वर्ष में सरकार चुनने की नौटंकी समाप्त की जाए। आखिर संघी चाहत ‘फासीवादी हिन्दू राष्ट्र’ में राजदण्ड तो हिन्दू फासीवादियों के ही हाथ में रहना है। 
    

इस राजदण्ड के जरिये मोदी ने साथ ही खुद को प्रधानमंत्री की जगह राजा के रूप में भी स्थापित करने का भी काम किया है। कहा जा रहा है कि मौजूदा नई संसद का डिजाइन भी मुसोलिनी द्वारा सोमालिया में कब्जे के पश्चात मोगादिशु में बनवाये फासीवादी पार्टी के मुख्यालय से मिलता-जुलता है। 
    

सेंगोल के शिकार हुए पहलवान दिल्ली पुलिस द्वारा धरना उजाड़े जाने के बाद भी लगातार संघर्षरत हैं। किसान संगठनों से लेकर महिला संगठनों का उन्हें पूर्ण समर्थन मिल रहा है। उन्होंने निकट भविष्य में बृजभूषण की गिरफ्तारी न होने पर दोबारा धरना शुरू करने का एलान किया है।     
    

राजदण्ड सेंगोल को पहली चुनौती महिला पहलवानों ने दे दी है। अब देखना यह है कि राजदण्ड अपने चहेते बृजभूषण की रक्षा कर पाता है या फिर सड़कों का महिला पहलवानों व आम जनता का संघर्ष बृजभूषण को जेल भिजवाने में कामयाब होता है। आज 21वीं सदी में जनता व उसका संघर्ष बड़ी से बड़ी ताकत को झुका सकता है। भले ही वक्ती तौर पर बृजभूषण व उसका रक्षक राजदण्ड सफल होता दिखे पर अंततः इनकी हार निश्चित है। 
    

राजदण्ड ने इतिहास में ज्यादातर अन्याय का ही साथ दिया है। राजाओं ने प्रजा के शोषण-उत्पीड़न में इसका जमकर इस्तेमाल किया है। आज भी सेंगोल अन्यायी बृजभूषण, मोदी के साथ खड़ा है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि अन्याय के इस प्रतीक की पुनर्स्थापना पर गर्व के बजाय शर्म महसूस की जाये व इसे फिर से संग्रहालय में रखवाने का संघर्ष किया जाये। 

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को