जहां वर्तमान समय में धर्म और धार्मिक स्थलों का निर्माण या उसका प्रचार खत्म या स्वैच्छिक हो जाना चाहिए था वहां आज इन धार्मिक स्थलों का निर्माण और धर्म का प्रचार सरकारों के रहमोकरम से अधिक से अधिक होता जा रहा है। सरकार की योजना के केन्द्र में जन सुविधाएं होनी चाहिए थीं लेकिन सरकार की योजना के केन्द्र में धर्म को बढ़ावा और इससे जुड़े स्थलों का निर्माण अधिक हो गया है ताकि पूंजीपतियों के लिए मेहनतकशों की लूट के रास्ते सुगम बनें जिससे इनका मुनाफा अधिक से अधिक हो सके।
जहां सरकार ने विज्ञान के आधार पर शासन करना चाहिए। जहां सरकार को तार्किक शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए था। जहां जन सुविधाओं को बढ़ाना चाहिए था और धर्म को राज्य से अलग कर लोगों का व्यक्तिगत मामला घोषित कर देना चाहिए था। जैसे पूर्व की समाजवादी देशों की सरकारों ने कर दिया था और जन सुविधाओं को केन्द्र में रख कर नीतियां बनाई जाती थीं। लेकिन उपरोक्त कदम एवं वर्तमान पूंजीवादी सरकारें (इसमें किसी भी पार्टी की सरकार हो) कभी नहीं उठायेगी। यह तो समाजवादी समाज में ही संभव हो सकता है।
सरकारों की नीति और नियत जैसी है जिन कदमों से ये चल रहे हैं इनके इन कदमों और इरादों से जनराहत की थोड़ी बहुत उम्मीद करना भी अज्ञानता होगी। धर्म को अपना हथियार बनाकर जनता पर नित नये हमले बोले जा रहे हैं। धार्मिक स्थलों का निर्माण तेज गति से हर गांव-कस्बों, शहरों में किया जा रहा है। आये दिन धार्मिक आयोजन का प्रचार-प्रसार हर जगह किया जा रहा है।
आज के दौर में एक खास बात देखने में आ रही है कि इन धार्मिक आयोजनों में या ऐसे ही कार्यों में नौजवान पीढ़ी लिप्त है। यह वही नौजवान हैं जो हर जगह बेरोजगारों की रिजर्व सेना में शामिल हैं, इनको धार्मिक जहर पिलाकर ऐेसे कार्यों का जिम्मा सौंपा जा रहा है। यह नौजवान धार्मिक कम उन्मादी ज्यादा हैं। इन नौजवानों का धर्म से दूर तक कोई लेना-देना नहीं है। अब इन नौजवानों को किसी न किसी तरह जनवादी सुविधाओं की मांगों से दूर रखा जाए। यह तरीका धर्म के रंग में रंगकर ही किया जा सकता है।
धार्मिक स्थलों के निर्माण में गांव के प्रधान से लेकर, सांसद, विधायक और तमाम संस्थाएं व सरकार तक धन खर्च कर रहे हैं। धार्मिक स्थलों को भव्य व उनकी संख्या तक बढ़ाई जा रही है। जबकि जन सुविधाओं से जुड़े संसाधनों को खत्म प्रायः किया जा रहा है। उन्हें बीमार घोषित किया जा रहा है। इनमें बजट गुणात्मक स्तर तक घटाया जा रहा है। देश के नौजवानों को वैज्ञानिक, तार्किक, ऐतिहासिक शिक्षा मिले। देश की स्वास्थ्य सेवायें बेहतर हों, लोगों को सस्ती शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध हो सके, इसके लिए सरकारों के पास कोई योजना नहीं है। हां, इन सुविधाओं को खत्म करने की योजना जरूर है और इस दिशा में सरकारें पूरी क्षमता के साथ इस कार्य को करने में लगी हैं।
जब राजनीति में धर्म का बोलबाला होने लगता है, तो मेहनतकशों के लिए खतरे की घंटी का संकेत होता है। ऐसे दौर में दो चीजें मुख्य तौर पर जनता पर हावी होती जाती हैं। एक तो धर्म का रंग जनता पर चढ़ाया जाता है, दूसरा पूंजीपति वर्ग की खुली नंगी आतंकवादी तानाशाही जनता पर शासकों के माध्यम से थोपी जाने लगती है। इसलिए मेहनतकश जनता को इन दोनों चीजों के चरित्र और प्रभाव को समझकर इनसे अलग होकर व्यापक संघर्ष करने की जरूरत है। -एक पाठक, हल्द्वानी