हरिद्वार : राजकीय मेडिकल कालेज पर पड़ी निजीकरण की मार

/haridwar-rajkiy-medical-college-par-padi-privatisation-ki-maar

हरिद्वार/ राजकीय मेडिकल कालेज, हरिद्वार में सत्र 2024-25 के लिए 100 छात्र-छात्राएं एमबीबीएस में दाखिले के लिए आए हुए थे। उन्हें दिनांक 8 जनवरी 2025 को पता लगा कि उत्तराखंड शासन का एक आदेश 1 जनवरी 2025 को स्वास्थ्य महानिदेशक के नाम आया हुआ है जिसमें स्पष्ट तौर पर लिखा हुआ है कि हरिद्वार के राजकीय मेडिकल कालेज की 100 एमबीबीएस की सीटों के संचालन की जिम्मेदारी शारदा एजुकेशनल ट्रस्ट को दी जाती है। सभी छात्रों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई, जमकर नारेबाजी कर अपना विरोध दर्ज किया। छात्रों ने एक लिखित पत्र कालेज के प्रधानाचार्य को भी सौंपा।
    
दिनांक 9 जनवरी को एसडीएम महोदय पुलिस बल के साथ कॉलेज पहुंचे और छात्रों से बातचीत की। छात्रों से बात करने पर पता चला कि एसडीएम महोदय समस्या का समाधान निकालने के लिए नहीं बल्कि छात्रों को डराने-धमकाने आये हैं। वे छात्रों को आचार संहिता का हवाला देते हुए हास्टल से निकालने तक की धमकी दे रहे थे।
    
मेडिकल के छात्रों के साथ-साथ इस कालेज में पढ़ाने आए चिकित्सकों से बात करने से पता चला कि उनके साथ भी धोखा किया गया है। निजी अस्पतालों में बेवजह चिकित्सकों पर दबाव डाला जाता है। जिन जांचों की जरूरत नहीं होती है उन्हें भी जबरदस्ती कराना होता है जो काफी महंगे होते है। उसका भार आम गरीब जनता पर पड़ता है। इसी तरह महंगी दवाओं का बोझ भी अनावश्यक रूप से जनता के ऊपर डाला जाता है। फैकल्टी के एक चिकित्सक ने तो यहां तक कहा है कि यदि हरिद्वार का राजकीय मेडिकल कालेज निजी हाथों में जाएगा तो वे नौकरी नहीं करेंगे। पीपीपी मोड के बारे में कोई जानकारी ना तो फैकल्टी के चिकित्सकों को दी गई और न ही छात्र-छात्राओं को दी गई। 
    
ऐसे में यह धोखा न केवल छात्रों और चिकित्सकों के साथ है बल्कि हरिद्वार समेत पूरे आस-पास की आम जनता के साथ भी धोखा है। भाजपा सरकार हर जिले में एक सरकारी मेडिकल कालेज खोलने की बात कर रही है। इन अस्पतालों के लिए सरकारी जमीन मुहैया कराकर आम जनता की गाढ़ी कमाई से अस्पताल बनाकर निजी पूंजीपतियों को लूटने के लिए सौंपे जा रहे हैं। छात्रों का कहना था कि यदि सरकार के पास पैसा नहीं है तो सरकारी कालेज खोलने का ढोंग क्यों कर रही है?     
    
एक तरफ देश के प्रधानमंत्री 5000 अरब डालर की अर्थव्यवस्था बनाने की बात करते हैं। भारत के विश्व गुरू बनने की बात करते हैं। लेकिन ये कोरी बकवास है। असल में देश के एकधिकारी पूंजीपतियों (अडाणी-अंबानी जैसे उद्योगपतियों) को फायदा देने के लिए देश की व्यापक जनता को नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
    
पीपीपी मोड निजीकरण का ही एक रूप है। 1991 में नई आर्थिक नीतियां (निजीकरण, उदारीकरण, वैश्वीकरण) कांग्रेस सरकार लाई थी। तब निजीकरण के काफी फायदे गिनाये गये थे। इन नीतियों को सभी पार्टियों ने काफी जोर-शोर के साथ आगे बढ़ाया। भारतीय जनता पार्टी ने सरकारी उपक्रमों/संस्थाओं का निजीकरण बहुत तेजी से किया है। नई आर्थिक नीतियों से किसी भी राजनीतिक दल का विरोध नहीं है। ये सभी दल देश के उद्योगपतियों से चंदा लेते हैं तो उनका विरोध कैसे करेंगे?
    
पीपीपी मोड पर जाने के बाद हरिद्वार की आम जनता को भी इलाज के लिए काफी पैसे खर्च करने पड़ेंगे। केवल नाम का ही राजकीय मेडिकल कालेज रह जाएगा। इसलिए हरिद्वार की जनता व सामाजिक संगठनों को आगे आना होगा। मेडिकल के छात्रों के आंदोलन को नैतिक व भौतिक तौर पर पूर्ण समर्थन देना होगा। -हरिद्वार संवाददाता

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता