जर्मनी में ए एफ डी का उभार

/jermany-mein-afd-ka-ubhaar

जर्मनी में हुए चुनाव में सभी पूंजीवादी पार्टियों ने अप्रवासियों के मुद्दे पर एक-दूसरे से प्रतियोगिता की। घोर दक्षिणपंथी पार्टी ए एफ डी (जर्मनी के लिए विकल्प) ने तो 2015 से ही जर्मनी में बढ़ती अप्रवासी आबादी को मुद्दा बनाना शुरू कर दिया था। जर्मनी में संकट के गहराने के साथ सत्ताधारी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी और चुनाव से पहले की मुख्य विपक्षी कंजरवेटिव पार्टी ने भी अप्रवासन को कठिन करने की चर्चा शुरू कर दी थी। 
    
चुनाव नतीजों में घोर दक्षिणपंथी पार्टी ए एफ डी के वोटों में बड़ा उछाल आया है। यह संसद में दूसरे नंबर की पार्टी बन गयी है। इसने अपनी इस जीत पर खुशी जताई है और दावा किया है कि अगले संसदीय चुनाव में यह जर्मनी में सत्ता हासिल करने में सफल हो जाएगी। 
    
जर्मनी में चुनाव नतीजों ने दिखाया है कि जर्मनी की पूंजीवादी राजनीति का दक्षिणपंथ की तरफ झुकाव और ज्यादा तीखा हो गया है। इससे कानूनी-गैर कानूनी तौर पर जर्मनी में रह रही अप्रवासी आबादी जो कि आबादी का लगभग पांचवां हिस्सा है, के लिए परेशानी तो बढ़ी ही है; साथ ही, यह जर्मनी के तथाकथित कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए भी खतरे की घंटी है। एएफडी समेत सभी पूंजीवादी ताकतें जर्मनी के इन कल्याणकारी कार्यक्रमों को अप्रवासियों के लिए बड़ा आकर्षण घोषित करते रहे हैं। 
    
जर्मनी में रह रही अप्रवासी आबादी का बड़ा हिस्सा कानूनी तौर पर वहां रह रहा है। इनमें से भी लगभग आधी संख्या को वहां की नागरिकता हासिल हो चुकी है। जो एक छोटी संख्या वहां गैर कानूनी तौर पर रह रही है, वह भी वहां पर उस तरह के रोजगार में नियोजित है जिनमें कम मजदूरी होने की वजह से श्रम शक्ति की किल्लत है और इनके नियोक्ता इनके गैर कानूनी हैसियत से परिचित होने के बावजूद इनको काम पर रखते हैं। अगर इस आबादी को जबरन जर्मनी से डिपोर्ट किया जाता है तो इससे इन नियोक्ताओं का भी कम नुकसान नहीं होगा। अगर जर्मनी की अप्रवासन संबंधी सरकारी मशीनरी इन गैर कानूनी अप्रवासियों को अनदेखा कर रही थी, तो इसके पीछे इन अप्रवासियों के द्वारा जर्मनी के निर्माण में निभाई गयी महत्वपूर्ण भूमिका है। माना जाता है कि जर्मनी की संसद के शीशे की प्रभावशाली पारदर्शी इमारत को खड़ा करने में भी इन गैर कानूनी अप्रवासियों की मेहनत लगी है। 
    
जर्मनी में कानूनी-गैर कानूनी तौर पर रह रहे अप्रवासियों में शरणार्थियों और युद्ध में फंसे देशों से आने वाले लोगों की बड़ी संख्या है। सीरिया, यूक्रेन, अफगानिस्तान आदि से आने वाली अप्रवासी आबादी जर्मनी की कल्याणकारी नीतियों की वजह से आकर्षित होकर यहां नहीं आ रही है; बल्कि, उल्टा जर्मनी के शासक वर्ग ने अपने वर्ग बंधुओं के साथ मिलकर इनके देश को तबाह-बर्बाद किया और ये बहुत दुखी मन से अपने घर को छोड़ने को विवश हुए। 
    
जर्मनी में दक्षिणपंथी राजनीति के हावी होने से यहां की नागरिकता हासिल कर चुके अप्रवासियों की भी चिंता बढ़ गयी है। अब लगातार इन्हें यह साबित करना होगा कि इनका जर्मनी के समाज में एकीकरण हो चुका है। पहली पीढ़ी के अप्रवासी नागरिकों के लिए समस्या सबसे ज्यादा होगी। नागरिकता हासिल करने लायक जर्मन भाषा सीख जाने के बावजूद इनके लिए यह संभव नहीं है कि ये मूल जर्मन लोगों की तरह इस भाषा को बोल सके। दूसरी पीढ़ी के भी गैर श्वेत अप्रवासी मूल के जर्मन नागरिक भी नव फासीवादी तत्वों की हिंसा के शिकार बनने की शंका के साथ जियेंगे। आज भी इस तरह के हमलों के बाद उदारवादी दायरे के लोग इन हमलों को गलत करार देने के साथ-साथ अप्रवासी मूल के लोगों को भी अपना पर्याप्त एकीकरण न कर पाने के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। 
    
जर्मनी में अप्रवासियों के लिए बढ़ती नफरत यूरोप और पूरी दुनिया में घोर दक्षिणपंथी-नव फासीवादी उभार की ही एक तीखी अभिव्यक्ति है। ए एफ डी को ट्रम्प और एलन मस्क से मिल रहा खुला समर्थन इस खतरे की गंभीरता को दिखाता है। इस उभार की गंभीरता को पूरी दुनिया समेत जर्मनी में भी फासीवाद विरोधी ताकतें महसूस कर रही हैं। जर्मनी में ए एफ डी के खिलाफ होने वाले विशाल प्रदर्शन इसके प्रमाण हैं। लेकिन, अभी ये ताकतें कम या ज्यादा पूंजीवादी ताकतों के नेतृत्व पर ही फासीवाद का मुकाबला करने के लिए निर्भर हैं। देर सबेर ये अपनी इस कमजोरी से निजात पाएंगी और फासीवाद के एक-दो लक्षणों को ही नहीं, बल्कि इसकी पूरी मानवद्रोही परियोजना को अपने हमले का निशाना बनाएंगी। इसको जन्म देने वाली और खाद-पानी मुहैय्या कराने वाली साम्राज्यवादी पूंजीवादी व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करने का संकल्प लेंगी।   

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता