बीते दिनों कुछ किसान संगठनों ने केन्द्र सरकार की वादाखिलाफी के खिलाफ दिल्ली मार्च का आह्वान किया था। जब 8 दिसम्बर को पंजाब से किसानों के कुछ जत्थों ने दिल्ली की ओर कूच किया तो पंजाब-हरियाणा बार्डर पर हरियाणा पुलिस ने उन्हें जबरन रोक लिया। तथा पेपर स्प्रे, आंसू गैस तथा लाठी चार्ज से किसानों को आगे बढ़ने से रोक दिया।
हरियाणा पुलिस का कहना था कि दिल्ली पुलिस से किसानों ने अनुमति नहीं ली है इसलिए वे किसानों को रोक रहे हैं। वहीं संघर्षरत किसानों का कहना था कि दिल्ली जाने व प्रदर्शन के लिए उन्हें रोकना हरियाणा पुलिस का काम नहीं है। कि प्रदर्शन उनका कानूनी अधिकार है। फिलहाल किसानों ने 14 दिसम्बर को फिर से दिल्ली कूच की घोषणा की है।
कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली की सीमाओं पर हुए ऐतिहासिक किसान आंदोलन ने मोदी सरकार को झुकने को मजबूर कर दिया था। तब सरकार को 3 किसान विरोधी कानून वापस लेने के साथ समर्थन मूल्य व अन्य मांगों को पूरा करने का वायदा करना पड़ा था। पर सरकार आंदोलन स्थगित होने के बाद अपने हरेक वायदे से मुकर गयी। किसान वक्त-वक्त पर इन वायदों को पूरा करने की आवाज पंजाब-हरियाणा से लेकर देश के हर कोने से उठाते रहे पर पूंजीपतियों की सेवा में तत्पर मोदी सरकार ने किसानों की मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया। पहले भी संयुक्त किसान मोर्चे से अलग मोर्चा गठित कर कुछ संगठनों ने दिल्ली कूच का आह्वान किया था। तब सरकार ने उन्हें पंजाब-हरियाणा बार्डर पर रोक दिया था। वर्तमान में भी इन्हीं संगठनों ने दिल्ली कूच का आह्वान किया था।
सरकार का अड़ियल और दमनकारी रुख दिखलाता है कि सरकार अब पिछले आंदोलन से सबक निकालकर किसी भी कीमत पर किसानों को दिल्ली की सीमाओं पर नहीं पहुंचने देना चाहती है। ऐसे में पहले से अधिक व्यापक एकजुटता कायम करके ही किसान मोदी सरकार को झुका सकते हैं।
8 दिसम्बर को हुए पुलिसिया दमन में करीब 15 किसान घायल हो गये। शंभु बार्डर पर पुलिस द्वारा लगाये भारी बैरीकेड सरकार की किसान विरोधी मंशा को जगजाहिर कर रहे हैं।
किसानों का दमन
राष्ट्रीय
आलेख
फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।
यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं।
इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।