‘मास्टरमाइंड’ कौन है?

हरियाणा के नूंह और गुड़गांव में साम्प्रदायिक दंगों के बाद हरियाणा के गृहमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार इनके ‘मास्टरमाइंड’ की तलाश कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि वह यह भी छानबीन कर रही है कि कहीं हिंसा पूर्व नियोजित तो नहीं थी। 
    
हरियाणा के गृहमंत्री का यह बयान मासूमियत के नकाब में धूर्तता की इंतहा थी। यह कुछ ऐसा था कि चोर चोरी करने के बाद खुद ही चोर की तलाश करता घूमे। जो स्वयं ‘मास्टरमाइंड’ हैं वे ‘मास्टरमाइंड’ की तलाश कर रहे हैं या तलाश करने का ढोंग कर रहे हैं जिससे दूसरे बेगुनाहों को जेल में ठूंसा जा सके। यह यूं ही नहीं है कि बजरंगी लंपट खुलेआम दावा कर रहे हैं कि उन्होंने हजारों मुसलमानों को जेल भिजवा दिया है। 
    
आज यह किसी से छिपी हुयी बात नहीं है कि यदि आज मोदी-शाह देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हैं तो इसमें 2002 के गुजरात दंगों की प्रमुख भूमिका है। यदि ‘अन्ना आंदोलन’ ने केजरीवाल को दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया तो 2002 के गुजरात दंगों ने मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर। 
    
आज दो दशक बाद भी इस पर विवाद है कि 2002 के गुजरात दंगे क्यों और कैसे हुए? उनमें मोदी की क्या भूमिका थी? घटनाओं की एक व्याख्या यह है कि मोदी के नेतृत्व में संघ परिवार ने पूरी तैयारी के साथ ये दंगे करवाये जिससे मुसलमानों को हमेशा के लिए सबक सिखाया जा सके। दूसरी व्याख्या यह है कि गोधरा में रेल में कार सेवकों के जल कर मरने के बाद दंगे स्वतः स्फूर्त तरीके से फूट पड़े और नौसिखुए मुख्यमंत्री मोदी इन पर नियंत्रण नहीं कर पाये। अन्य व्याख्यायें इन दोनों के बीच की हैं। मोदी विरोधी जहां पहली व्याख्या को मानते हैं वहीं मोदी समर्थक दूसरी को। बीच-बीच के लोग बीच-बीच की व्याख्या पेश करते हैं। हालांकि गोधरा से कारसेवकों के जले हुए शवों को जिस तरह से अहमदाबाद ले जाया गया और जिस तरह से उनका वहां प्रदर्शन किया गया उससे पहली व्याख्या को बल मिलता है। 
    
मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचाने वाले 2002 के गुजरात दंगों के ‘मास्टरमाइंड’ पर आज भी विवाद है? आज भी विवाद है कि ये दंगे स्वतः स्फूर्त थे या प्रायोजित? बहुत सारे भलेमानस आज भी मोदी-शाह को संदेह का लाभ देने को तैयार हैं। 
    
पिछले दो दशकों में गंगा-जमुना में बहुत सारा पानी बह चुका है। खासकर पिछले दशक भर में। अब किसी को संदेह नहीं होता कि दंगे स्वतः स्फूर्त हैं या प्रायोजित? अब दंगों के ‘मास्टरमाइंड’ को तलाश करने के लिए शरलाक होम्स होने की जरूरत नहीं है। अब सबको पता है कि गांव और मोहल्ले के स्तर से दिल्ली तक ‘मास्टरमाइंड’ कौन हैं। आज सबको पता है कि मणिपुर किनकी वजह से जल रहा है और ‘मिलिनियम सिटी’ गुड़गांव धुंआ-धुंआ किसकी वजह से हो रही है। आज सबको दीख रहा है कि वे कौन हैं जो शांति शब्द मुंह से निकालने को तैयार नहीं हैं। 
    
पिछले दो दशकों में देश में इतनी प्रगति हुई है कि अब खुलेआम घोषित करके सरकारी पार्टी के लोग सरकार के सहयोग से दंगे कर रहे हैं और सरकार दंगे के शिकार लोगों को ही जेल में ठूंस रही है और उनके मकान-दुकान तोड़ रही है। पुलिस के सामने दंगाई गोलियां चला रहे हैं और मुसलमानों के सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार का आह्वान कर रहे हैं। 
    
लेकिन साथ ही देश में यह भी प्रगति हुई है कि अब साम्प्रदायिक दंगों के असल ‘मास्टरमाइंड’ की पहचान मुश्किल नहीं रह गई है। जो पिछले पचहत्तर साल से देश को ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाने के लिए ये दंगे भड़का रहे थे वे अब खुलकर सामने आ गये हैं। अब यह देखना मुश्किल नहीं है कि कैसे दंगाई मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हो रहे हैं। इसी का नतीजा है कि कभी दंगों में लिपट जाने वाले किसान संगठन किसानों को इसके खिलाफ आगाह कर रहे हैं। कौन दंगाई हैं और कौन शिकार यह स्पष्ट दीख रहा है। यह भी स्पष्ट दीख रहा है कि यह कौन सी राजनीति है और इसका उद्देश्य क्या है? ठीक इसी कारण इनके खिलाफ संघर्ष भी अब आसान हो गया है। 

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