
भारत के प्रमुख उद्योगों में एक ऑटो उद्योग है जो जीडीपी में 7 प्रतिशत योगदान करता है। ऑटो उद्योग अपने कम्पोनेन्ट के लिए मैन्युफैक्चरिंग से माल जुटाता है और जीडीपी के 7 प्रतिशत का 2.3 प्रतिशत इसी मैन्युफैक्चरिंग से आता है। ऑटो कम्पोनेन्ट की यह मैन्युफैक्चरिंग कुल मैन्युफैक्चरिंग का 30-35 प्रतिशत है।
ऑटो उद्योग अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण भाग है। ऑटो उद्योग में भारत दुनिया का पांचवा बड़ा खिलाड़ी है। यह उद्योग करीब 2.5 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार देता है। ऑटो उद्योग का निर्यात अभी 19 अरब डॉलर है जो 2026 तक 30 अरब डॉलर होने की संभावना है। हरियाणा से बावल तक ऑटो उद्योग की एक लम्बी बेल्ट है जिसमें लाखों मजदूर काम करते हैं।
और अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण उद्योग होते हुए भी यहां मजदूरों की स्थिति क्या है। यह अभी हाल में 16 मार्च 2024 को रेवाड़ी जिले के धारूहेडा औद्योगिक क्षेत्र में लाइफलांग फैक्टरी में हुई दुर्घटना से समझा जा सकता है। इस दुर्घटना में 40 मजदूर घायल हुए थे जिसमें से 16 मजदूरों की मौत हो गयी थी।
यह फैक्टरी ऑटो उद्योग के लिए प्लास्टिक इंजेक्शन मोल्डेड पार्ट और एल्युमिनियम प्रेशर डाई कास्ट पार्ट बनाती थी। यह कम्पनी जनरल मोटर्स, हीरो मोटर कार्प्स, पेनासोनिक, एक्साइड, लीग्रांड आदि के लिए माल बनाती थी। आग लगने के पीछे बने मालों से निकलने वाली धूल थी, जो आग पकड़ सकती थी और जिसको इकट्ठा होने दिया जा रहा था। और हुआ भी यही। एक चिंगारी ने आग पकड़़ी और 16 मजदूरों की जान चली गयी। ये ऐसा हादसा था जिससे बचा सकता था। फैक्टरी में आज मालिकों को केवल उत्पादन से मतलब होता है। उत्पादन और मुनाफा ही उसके मूल मंत्र हैं।
विकेन्द्रीकृत उत्पादन के तहत साम्राज्यवादी देशों की कम्पनियां तीसरी दुनिया के देशों में अपना माल उत्पादन करवाती हैं क्योंकि यहां सुरक्षा के मानक बहुत ढीले हैं। काम के दौरान या दुर्घटनाओं में मजदूर मर भी जाते हैं तब भी यहां केवल कुछ छोटा-मोटा मुआवजा देकर मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है। और जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं तब से स्थिति और ज्यादा खराब हुई है। आये दिन कम्पनियों में दुर्घटनायें होती हैं और मजदूरों की जानें जाती रहती हैं।
इसके अलावा ऑटो उद्योग में नीम, ट्रेनी, अप्रेन्टिस, फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेन्ट आदि के तहत सस्ते मजदूरों की भर्ती के लिए भी नये श्रम कानूनों में प्रावधान किया जा रहा है। स्थायी मजदूरों और उनकी यूनियनों को खत्म किया जा रहा है।
लाइफलांग फैक्टरी के एक मजदूर ने बताया कि जब यह दुर्घटना हुई तब वह फैक्टरी में नहीं था। क्योंकि कुछ दिनों पहले उसे फैक्टरी में चोट लग गई थी जिस कारण वह घर चला गया था। उस मजदूर ने यह भी बताया कि छोटी-मोटी चोटें लगना तो ऑटो उद्योग में सामान्य बात है। इसके अलावा अक्सर प्रेस मशीन या अन्य वजहों से भी मजदूरों की उंगलियां दब और कट जाती हैं।
इसके अलावा ऑटो उद्योग में काम के घंटों का लम्बा होना सामान्य है। अगर मजदूरों की शिफ्ट खत्म भी हो गयी है तब भी वे घर नहीं जा सकते जब तक कि उनकी जगह लेने वाले मजदूर नहीं आ जाते। इस वजह से उनके काम के घंटे 14-14 तक हो जाते हैं। लाइफलांग फैक्टरी में ज्यादा मजदूरों के मारे जाने की वजह एक यह भी थी कि पहली शिफ्ट के मजदूरों को उनका टारगेट पूरा होने के बाद भी घर नहीं जाने दिया क्योंकि उनकी जगह लेने वाले मजदूर अभी नहीं आये थे।
चूंकि मजदूर संगठित नहीं हैं इसलिए काम के लंबे घंटों, उच्च उत्पादन लक्ष्य और अन्य अनुशासनात्मक कार्यवाहियों के लिए वे मालिक/प्रबंधन से बातचीत भी नहीं कर पाते। अगर वे आवाज उठाते हैं तो उनको निकालकर बाहर कर दिया जाता है।