रूस-यूक्रेन युद्ध व्यापक युद्ध की ओर बढ़ रहा है?

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1 जून को यूक्रेन ने रूस के कई सैनिक ठिकानों पर हमले किये। इन हमलों में यूक्रेन ने रूस के बमवर्षक विमानों को निशाना बनाया। ये हमले रूस के भीतर घुसकर हजारों किमी दूर किये गये। यूक्रेन ने दावा किया कि उसने 40 से अधिक बमवर्षक विमानों को नष्ट कर दिया है। यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेन्स्की और यूरोपीय संघ के सहयोगियों ने इन हमलों पर जश्न मनाया। यूक्रेन ने दावा किया कि उसने रूस के आणविक हथियारों को ले जाने वाले इन बमवर्षकों की क्षमता को एक तिहाई से ज्यादा नष्ट कर दिया है। ये हमले कंटेनर ट्रकों में ले जाकर ड्रोनों के जरिए एक ही समय में अलग-अलग पांच स्थानों पर किये गये। बाद में जेलेन्स्की ने दावा किया कि इन हमलों की तैयारी पिछले डेढ़ साल से की जा रही थी। इसके अलावा यूक्रेन ने रूस के अंदर यूक्रेनी सीमा के पास रेल पुल को उड़ाकर रेल दुर्घटना करायी जिसमें कई लोग मारे गये और भारी संख्या में लोग घायल हुए। और भी यूक्रेन ने क्रीमिया को रूस से जोड़ने वाले किर्च पुल को उड़ाने की नाकाम कोशिश की। इसके पहले यूक्रेन ने ड्रोनों के जरिए राष्ट्रपति पुतिन के हेलीकाप्टर को उड़ाने की कोशिश की। 
    
रूस के अंदर इन सब यूक्रेनी कार्रवाईयों से यह स्पष्ट हो गया कि यूक्रेन रूस के अंदर सुदूर इलाके तक घुस कर हमला कर सकता है। इससे रूस की सुरक्षा एजेन्सियों की कमजोरी भी उजागर हो गयी। इसके बाद रूस के शासक हलकों में पहले तो आश्चर्यजनक सन्नाटा छा गया। लेकिन तुरंत ही रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने अपनी सरकार के मंत्रियों, सेना के प्रमुखों और विभिन्न सुरक्षा एजेन्सियों के साथ सलाह मशविरा करके यह कहा कि यूक्रेनी राज्य एक आतंकवादी राज्य में तब्दील हो गया है। और कि किसी आतंकवादी के साथ रूस कोई समझौता वार्ता नहीं करेगा। अब रूस इस आतंकवादी राज्य से उसी तरह निपटेगा जैसे किसी भी आतंकवादी से निपटा जाता है। इसका मतलब यह निकलता है कि अब रूसी राज्य यूक्रेनी सरकार के पदों पर बैठे अधिकारियों को आतंकवादियों के तौर पर निशाना बनायेगा। रूसी सरकार करीब एक वर्ष पहले से ही यूक्रेनी सरकार और उसके राष्ट्रपति को अवैध सरकार व राष्ट्रपति घोषित कर चुकी है। 
    
यहां यह ध्यान में रखने की बात है कि उपरोक्त ड्रोन हमले ऐसे समय में हुए जब रूस और यूक्रेन के बीच प्रत्यक्ष समझौता वार्ता तुर्की के इस्तांबुल में शुरू होने वाली थी। इस वार्ता के ठीक एक दिन पहले ये ड्रोन हमले हुए। रूस का कहना है कि इस वार्ता को असफल करने के मकसद से ये हमले किये गये। बहरहाल दोनों पक्षों के बीच वार्ता हुई। दोनों पक्षों के बीच शांति स्थापित करने की दिशा में इस वार्ता में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई। लेकिन इस वार्ता में यह तय किया गया कि दोनों पक्ष गम्भीर रूप से घायल, बीमार और 25 वर्ष से कम उम्र के युद्ध बंदियों की अदला-बदली करेंगे तथा रूस ने अपनी ओर से यह प्रस्ताव रखा कि युद्ध में मारे गये 6000 सैनिकों के शवों को वह यूक्रेन को सौंपेगा। इसी के साथ रूसी प्रतिनिधि मण्डल ने तीन दिन के युद्ध विराम का प्रस्ताव इसलिए रखा कि इस दौरान मृत सैनिकों को मलबों और अन्य स्थानों से ढूंढकर निकालने में मदद मिलेगी। जेलेन्स्की ने तीन दिन के अल्प युद्ध विराम को अस्वीकार कर दिया। जेलेन्स्की 30 दिन के बिना शर्त युद्ध विराम की मांग कर रहे थे और उसके बाद शांति वार्ता की प्रक्रिया शुरू करने की उनकी शर्त थी। जब कि रूसी पक्ष इसके लिए तैयार नहीं था। उसकी शर्त थी कि जिन बुनियादी कारणों से उनका ‘‘विशेष सैन्य अभियान’’ शुरू हुआ था, उनको हल किये बगैर वार्ता करने का कोई अर्थ नहीं है। इसके साथ ही, जिन क्षेत्रों पर रूस कब्जा कर चुका है, यूक्रेन को इस ठोस जमीनी हकीकत को स्वीकार करना होगा और अब ये इलाके रूस का हिस्सा होंगे। इसके अलावा यूक्रेन का असैन्यीकरण और गैर नाजीकरण, नाटो में न शामिल होने की पुरानी शर्त भी रहेंगी। दोनों पक्षों ने अपने-अपने प्रस्तावों को दिया और इस पर आगे वार्ता करने के बारे में सहमति बनी। 
    
लेकिन जब रूसी पक्ष तय स्थान पर मृतक सैनिकों की पहली खेप लेकर पहुंचा तो वहां उन्हें लेने के लिए यूक्रेनी पक्ष मौजूद नहीं था। इसलिए मृतकों को सौंपा नहीं जा सका। इस पर भी दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर आरोप लगाये। 
    
यूक्रेन द्वारा रूसी रणनीतिक बमवर्षकों पर किए गये ड्रोन हमलों और अन्य आतंकवादी कार्रवाइयों के बाद पुतिन की अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से फोन पर बात हुई। इसी फोन पर बातचीत के दौरान पुतिन ने ट्रम्प से कह दिया कि इन आतंकी हमलों का रूस जोरदार जवाब देगा। 
    
इसके बाद रूस ने समूचे यूक्रेन के कई बड़े शहरों में ड्रोन और मिसाइल हमलों की बौछार कर दी। राजधानी कीव, खारकीव, खेरसान, मेलिकापोल, ओडेसा और सुदूर पश्चिम में हमले लगातार जारी है। रूसियों के अनुसार उनके हमले सैनिक ठिकानों, रक्षा उत्पादन के ठिकानों, हथियारों व गोलाबारूद के गोदामों और अवरचना पर किये गये हैं। जबकि यूक्रेनी शासकों का कहना है कि इन हमलों का निशाना नागरिक, स्कूल और अस्पताल रहे हैं। 
    
रूस के हमले अब सिर्फ अपने कब्जे किए गये क्षेत्रों के विस्तार तक ही सीमित नहीं है। रूस का यह भी कहना है कि रूस के रणनीतिक बमवर्षकों को निशाना बनाकर मार करना अकेले यूक्रेन के बस की बात नहीं है। इसमें निश्चित तौर पर ब्रिटेन की खुफिया एजेन्सी एम.आई.टप् शामिल रही है। अमरीकी खुफिया एजेन्सी सी.आई.ए. यूक्रेन के अंदर लम्बे समय से सक्रिय रही है। सी.आई.ए. का भी इसमें हाथ हो सकता है। अपनी फोन वार्ता में ट्रम्प ने पुतिन से कहा कि उनको इस हमले के बारे में कोई भी पूर्व जानकारी नहीं थी। यह भी हो सकता है कि ट्रम्प की गैर जानकारी में अमरीका का ‘डीप स्टेट’ इस ड्रोन कार्रवाइयों की योजना में शामिल रहा हो। अमरीकी साम्राज्यवादियों के पेण्टागन में, विदेश विभाग में तथा संसद में ऐसे लोगों की भरमार है जो रूस के विरोधी और यूक्रेन के समर्थक हैं। 
    
इस हमले के रूसी जवाब के बाद यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के शासकों में खलबली मच गयी। ये नाटो की बैठक में हर हालत में रूस को युद्ध के मैदान में पराजित करने के लिए यूक्रेन की मदद के लिए जोर शोर से कोशिश करने लगे। ब्रिटेन ने यूक्रेन को एक लाख ड्रोन देने का वायदा किया। जर्मनी ने लम्बी दूरी तक मार करने वाली टारस मिसाइल आपूर्ति करने का वायदा किया। इसी प्रकार फ्रांस पहले ही आणविक छाते के नीचे यूरोप को लाने की इच्छा जाहिर कर चुका है। यूरोपीय संघ ने नाटो सदस्य देशों से अपना-अपना रक्षा बजट सकल घरेलू उत्पाद का 5 प्रतिशत तक बढ़ाने का आग्रह किया। नाटो के सचिव ने यह कहा कि समूचे नाटो के पास जितने हथियार और हथियार उत्पादन क्षमता है, उससे अधिक रूस के पास हथियार और हथियार उत्पादन क्षमता है। अतः सभी अमरीका को इस रूस विरोधी युद्ध में शामिल कराने के प्रयास में लग गए। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस समय अपना ज्यादा ध्यान पश्चिम एशिया और मुख्यतया एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन के विरुद्ध लगाये हुए है। अब वह यूक्रेन में और ज्यादा हथियार खर्च नहीं करना चाहते। लेकिन अमरीकी प्रशासन में लिंडसे ग्राहम जैसे सांसद हैं जो रूस के विरुद्ध यूक्रेन की मदद करने और रूस पर और ज्यादा कड़े प्रतिबंध लगाने के लिए ट्रम्प पर दबाव डाल रहे हैं। 
    
यूरोपीय संघ के देश और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेन्स्की ट्रम्प प्रशासन से बार-बार अपील कर रहे हैं कि वे रूस के विरुद्ध और कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगायें। वे यूक्रेन को आधुनिक हथियारों और वायु रक्षा प्रणालियों की आपूर्ति करने की मांग कर रहे हैं। इसी अभियान के तहत अभी हाल ही में जर्मनी के नये चांसलर मर्ज ट्रम्प से मिलने अमरीका गये। ट्रम्प से यूक्रेन को हथियार देने और रूस पर और अधिक आर्थिक प्रतिबंध लगाने की मांग करने लगे। ट्रम्प ने जवाब दिया कि जब दो स्कूली बच्चे आपस में गुत्थम गुत्था होते हैं और आप छुड़ाने का प्रयास करते हैं और वे नहीं मानते तब यह ठीक कदम होता है कि उन्हें आपस में गुत्थम-गुत्था होने दिया जाए। फिर जब थक जायेंगे तो अपने आप मान जायेंगे। ऐसा कहके ट्रम्प ने यूक्रेन और रूस दोनों के शासकों की स्कूली बच्चों से तुलना थी। 
    
ट्रम्प ने सार्वजनिक तौर पर यह कहा है कि जेलेन्स्की ने रणनीतिक बमबर्षकों को निशाना बनाकर अपने ऊपर व्यापक रूसी हमले को खुद निमंत्रित किया है। अभी तक अमरीकी साम्राज्यवादी ट्रम्प के शासन के अंतर्गत रूस के विरुद्ध युद्ध में उतरने के लिए तैयार नहीं है। लेकिन अमरीकी डीप स्टेट लगातार रूस के विरुद्ध यूक्रेन की मदद करने के लिए माहौल बना रहा है। 
    
डोनाल्ड ट्रम्प अमरीकी साम्राज्यवाद के गिरते हुए प्रभाव को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। वे यूरोप से अपनी सेनाओं की तैनाती को कम करने की कोशिश में लगे हैं। उन्होंने यह कई बार कहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध उनका युद्ध नहीं है। यह बाइडेन प्रशासन द्वारा किया गया युद्ध है। वे अगर उस समय राष्ट्रपति होते तो यह युद्ध होता ही नहीं, वे ऐसा कई बार दावा कर चुके हैं। वे जब दूसरी बार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव प्रचार में लगे हुए थे, तब यह दावा कर रहे थे कि वे राष्ट्रपति बनने के 24 घण्टे के भीतर यह युद्ध रोक देंगे। लेकिन वे इसे रोकने में असफल रहे। खुद उनके द्वारा घोषित नीतियां असफल हो रही हैं। वे घरेलू और विदेश नीतियों के मुद्दों पर असफल राष्ट्रपति साबित हो रहे हैं। गैर कानूनी तौर पर अमरीका में आने वाले विदेशी नागरिकों को जबरन अमरीका से बाहर निकालने की उनकी नीतियों को लेकर लास एंजेल्स में व्यापक विरोध हो रहा है। वे इसे कुचलने में लगे हुए हैं। इसे लेकर वहां के गवर्नर के साथ उनका विरोध सामने आ रहा है। एलन मस्क के साथ उनका विवाद सबके सामने उजागर हो गया है। वे पश्चिम एशिया में ईरान के विरुद्ध लगातार बयानबाजी कर रहे हैं। वे ईरान के परमाणु हथियार बनाने पर उसे नेस्तनाबूद करने की धमकी दे रहे हैं। वे यूक्रेन को हथियार और गोला-बारूद देने का जो समझौता बाइडेन कर चुके थे, उन हथियारों को वे यूक्रेन को न देकर पश्चिम एशिया में भेजने की घोषणा कर चुके हैं। वे चाहते हैं कि अब यूक्रेन युद्ध के बोझ की जिम्मेदारी यूरोपीय देश उठायें। 
    
दरअसल, यूक्रेन-रूस संघर्ष शुरू से ही अमरीकी और यूरोपीय देशों और रूसी साम्राज्यवादियों के बीच का संघर्ष रहा है। यूक्रेन में तख्तापलट से लेकर उसे नाटो में शामिल कराकर अमरीकी साम्राज्यवादी और उसके नाटो सहयोगी रूसी साम्राज्यवादियों को घेरना चाहते थे। वे रूस के विशाल सम्पदा भण्डारों पर नियंत्रण चाहते थे। वे तरह-तरह के रूस पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद इसमें सफल नहीं हुए। बल्कि तमाम मदद के बावजूद, यूक्रेन को मोहरा बनाकर रूस को कमजोर करने में और उसे झुकाने में वे असफल सिद्ध हुए। तब अमरीकी साम्राज्यवादी ट्रम्प के नेतृत्व में यूक्रेन से पीछे हटने के लिए मजबूर हुए। लेकिन यूक्रेन के साधन स्रोतों पर अमरीकी साम्राज्यवादी नियंत्रण करने के समझौते करने लगे। यूरोपीय साम्राज्यवादियों की निगाह में भी यूक्रेन के साधन स्रोत हैं। वे इन पर नियंत्रण चाहते हैं। वे इसीलिए रूस को युद्ध के मैदान में पराजित करने के लिए यूक्रेन की हर तरह से मदद करने के लिए तैयार हैं। 
    
यूरोपीय साम्राज्यवादी रूस पर और ज्यादा प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर चुके हैं। वे रूस के ऊर्जा क्षेत्र में और बैंक क्षेत्र में और कड़े प्रतिबंधों को लगा रहे हैं। वे रूसी साम्राज्यवादियों को आर्थिक तौर पर पंगु बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके साथ ही वे यूक्रेन को युद्ध में भारी मदद कर रहे हैं। 
    
रूसी साम्राज्यवादियों ने यह घोषणा कर दी है कि यूरोपीय संघ और नाटो द्वारा यूक्रेन को हथियारों से दी जाने वाली मदद उन्हें खुद को रूस के विरुद्ध युद्ध में शामिल कर रही है। वे अब रूस के हमलों का सामना करने के लिए तैयार रहे। रूसी साम्राज्यवादी चाहते हैं कि यूक्रेन के साथ उसका युद्ध सिर्फ यूक्रेन तक सीमित रहे। लेकिन यूरोपीय साम्राज्यवादी यदि इसका विस्तार चाहते हैं तो रूस भी इसके लिए तैयार है। रूसी साम्राज्यवादियों ने अपने आणविक हथियारों की तैनाती करके उन्हें सक्रिय कर दिया है। रूसी साम्राज्यवादियों ने बाल्टिक सागर और काले सागर में इनसे निपटने के लिए नौसैनिक बेड़ों को उतार दिया है। 
    
उधर यूरोपीय देशों के भीतर मजदूर-मेहनतकश आबादी में उनके युद्धोन्मादी प्रयासों का विरोध हो रहा है। जर्मनी में टारस मिसाइलों और अन्य हथियारों की यूक्रेन को आपूर्ति करने का विरोध हो रहा है। ये देश अपने यहां की आबादी की सुविधाओं की कटौती करके अपना रक्षा बजट बढ़ा रहे हैं। जर्मनी, फ्रांस और स्पेन जैसे देशों में बड़े-बड़े युद्ध विरोधी प्रदर्शन हुए हैं। ब्रिटेन में भी इसका विरोध हो रहा है। यूरोपीय देशों के शासक इस युद्ध में शामिल होकर अपने देशों की मजदूर-मेहनतकश आबादी को और ज्यादा मुसीबतों और परेशानियों में डाल रहे हैं। इस मामले को लेकर खुद नाटो के सहयोगी देशों के भीतर मतभेद उभरकर सामने आ गये हैं। 
    
उधर रूस युद्ध के व्यापक होते जाने की स्थिति के लिए तैयार दिख रहा है। वह अपने गठबंधनों को मजबूत कर रहा है। रूस, चीन, उत्तरी कोरिया और ईरान ये एक नये गठबंधन की ओर जा रहे हैं। 
    
इस युद्ध के व्यापक होने की संभावना बढ़ती जा रही है। यदि अमरीकी साम्राज्यवादी इस युद्ध में यूक्रेन के साथ और रूस के विरुद्ध उतर जाते हैं तो यह विश्व युद्ध में तब्दील होने की भी एक संभावना लिए हुए है। वैसे भी रूस के यूक्रेन पर व्यापक हमलों के बाद यह समूचे यूरोप को युद्ध में घसीटने की ओर चला गया है। 
    
निश्चित ही, इस युद्ध में यूक्रेन तो तबाह-बर्बाद होगा ही लेकिन यह समूचे यूरोप को अपनी जद में ले आयेगा। 
    
फिलहाल, रूस-यूक्रेन शांति प्रक्रिया अवरुद्ध हो गयी है और युद्ध के विस्तारित होने का खतरा मंडरा रहा है।  

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