सीरिया पर हमले की तैयारी में जुटा अमेरिका

    अमेरिकी साम्राज्यवादी सीरिया में अब अप्रत्यक्ष हमले व हस्तक्षेप से प्रत्यक्ष व सीधे हमले की तैयारियों में जुटे हुऐ हैं। इसके लिए वे एक के बाद एक घृणित कदम उठाते जा रहे हैं। इस सबके पीछे सीधी वजह अभी तक सीरिया में उन्हें मनवांछित सफलता का ना मिलना है। और उससे भी बढ़कर यह कि पिछले कुछ महीनों में सीरिया के राष्ट्रपति असद के नेतृत्व में सेना को लगातार सफलता हासिल हुयी है। कई शहर और इलाके जो अमेरिका व पश्चिम साम्राज्यवादियों समर्थित सेना ‘फ्री सीरियन आर्मी’ (एफएसए) के कब्जे में थे अब उन पर पुनः असद की सेना का कब्जा हो चुका है।<br />
    अमेरिकी साम्राज्यवादियों का धैर्य जैसे-जैसे जवाब देने लगा है वैसे-वैसे वे एक के बाद एक झूठे आरोप असद की सरकार व सेना पर लगा रहे हैं। रसायनिक हथियारों का इस्तेमाल का आरोप न केवल झूठा साबित हुआ बल्कि उल्टा इसके प्रयोग के लिए असद की विरोधी साम्राज्यवाद समर्थित गुटों पर ही संदेह किया गया। इराक में जार्ज बुश के हमले का कारण बने जनसंहारक हथियारों की झूठी कहानी सीरिया में दोहराने में अमेरिकी साम्राज्यवादी नाकामयाब हो चुके हैं।<br />
    पिछले दिनों में शांति नोबेल पुरूस्कार से सम्मानित बराक ओबामा की सरकार ने सीरिया में तथाकथित लोकतंत्र, स्वतंत्रता समर्थकों को हथियार देने की घोषणा की है। इस घोषणा के साथ अमेरिका ने सीरिया में अब प्रत्यक्ष तौर पर भागीदारी शुरू कर दी है। और आगे और बड़े हस्तक्षेप के लिए अमेरिकी साम्राज्यवादी कई सारे विकल्पों पर चर्चा कर रहे हैं। इनमें सीधे आक्रमण, सीरिया की वायुसेना की धार को खत्म करने के लिए ‘नो फ्लाई जोन’ की घोषणा, इजरायल और तुर्की के साथ गठबंधन बनाकर हमला, सीरिया का विभाजन जैसे कदमों को उठाने की बात की जा रही है। बराक ओबामा का प्रशासन युद्ध की तैयारियों में जुटा है। और अनुमान लगाया जा रहा है कि इस युद्ध में प्रतिमाह 1 अरब डालर का खर्च आयेगा।<br />
    बराक ओबामा की सरकार के सीरिया में हस्तक्षेप की वजह सीरिया में लड़ रहे विद्रोहियों के बीच बढ़ता संघर्ष भी है। ‘फ्री सीरियन आर्मी’ के एक सीनियर कमांडर कमाल हमामी की हत्या पिछले दिनों अल कायदा से जुडे़ ‘इस्लामिक स्टेट आफ इराक एण्ड अल-शाम’ (आई.एस.आई.एस.) ग्रुप के लड़ाकों द्वारा कर दी गयी। अल कायदा और ‘फ्री सीरियन आर्मी’ के बीच टकराव की कई घटनाएं घट चुकी हैं। वर्चस्व की इस लड़ाई का लाभ असद की सेनाओं को मिल रहा है। कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन जो मूलतः अल कायदा से जुडे़ हैं, सुन्नी सम्प्रदाय को मानने वाले हैं। अल कायदा से जुड़े संगठन से उलट ‘फ्री सीरियन आर्मी’ में गैर सुन्नी लोगों का बाहुल्य है। अमेरिकी व पश्चिमी साम्राज्यवादियों द्वारा समर्थित इस युद्ध ने सीरिया में संकीर्ण साम्प्रदायिक हिंसा व तनाव को जन्म दे दिया है। और सीरिया में हालात इराक की तरह निरन्तर बनाये जा रहे हैं। सीरिया, लेबनान का हिजबुल्ला संगठन और ईरान को अमेरिका व इजरायल के शासक किसी भी हद तक जाकर कमजोर कर देना चाहते हैं। इसके लिए उन्हें अल कायदा का साथ लेने में भी कोई गुरेज नहीं है।<br />
    सीरिया को कमजोर करने के लिए इजरायल अमेरिका का वरदहस्त पाकर अब तक चार बार हवाई हमले कर चुका है। इन हमलों के निशाने पर सीरिया को रूस से प्राप्त हथियार व मिसाइलों के डिपो रहे हैं। इजरायल लगातार सीरिया को पूर्ण युद्ध के लिए उकसा रहा है। वह उसकी सम्प्रभुता को रौंद रहा है परंतु संयुक्त राष्ट्र संघ को यह सब नहीं दिखायी दे रहा है। वह इस पर लगातार मौन साधे हुए है। यही हाल अन्य पश्चिमी साम्राज्यवादी देशों व उनके तथाकथित स्वतंत्र व निष्पक्ष मीडिया का है।

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता