चुनावी उलटबांसी : जीतने वाले हार गए और हारने वाले जीत गए

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हरियाणा विधानसभा के चुनाव परिणाम ने जितने दुखद आश्चर्य में कांग्रेस पार्टी को डाला उतने ही दुखद आश्चर्य में योगेंद्र यादव व वाम उदारवादियों को डाला। योगेंद्र यादव तो कांग्रेसियों के गुब्बारे में हवा भरने के लिए कह रहे थे कि या तो कांग्रेस बहुमत से जीतेगी या उसकी आंधी या फिर उसकी सुनामी आएगी। चुनाव नतीजों ने कांग्रेसियों को बताया कि सत्ता के अंगूर खट्टे ही नहीं बल्कि बहुत खट्टे हैं। बेचारे योगेंद्र यादव अब अपनी दाढ़ी से ज्यादा अपना सिर खुजा रहे होंगे। 
    
हरियाणा विधानसभा के नतीजों ने सारे चुनावी पंडितों और एक्जिट सर्वे वालों को भी आंखें चुराने को मजबूर कर दिया। सबके जेहन में एक ही सवाल नाच रहा था कि भाजपा जीती तो जीती कैसे। और वैसे कई भाजपा वालों के लिए भी यह सवाल बना कि वे जीते कैसे। असली सच्चाई तो सिर्फ मोदी और शाह ही जानते होंगे कि वह कैसे चुनाव जीते। वैसे भाजपा व कांग्रेस को लगभग बराबर ही मत मिले। भाजपा को 39.9 प्रतिशत तो कांग्रेस को 39.1 प्रतिशत मत मिले। यद्यपि भाजपा को 90 सदस्यों वाली विधानसभा में 48 सीटें मिलीं जो बहुमत के आंकड़े से महज तीन ज्यादा हैं। कांग्रेस को 37 सीटें मिलीं और अगर उसने और ज्यादा चतुराई व सजगता दिखाई होती तो वह अपनी उस हवा को बनाए रखती जो चुनाव परिणाम के दिन निकल गई। 
    
हरियाणा चुनाव के परिणाम ने पस्त भाजपा में जान फूंक दी। आम चुनाव में मिले जख्मों को सहलाते हुए ही उसका समय बीत रहा था। उसने पूरे देश में हरियाणा की जीत का जश्न मनाते हुए जहां एक और इसका प्रदर्शन किया वहां दूसरी ओर उसने जम्मू-कश्मीर में मिली करारी हार को इस जीत से छुपाने का भी काम किया।
    
हरियाणा विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए भाजपा व संघ ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। साढे नौ साल तक राज करने वाले मुख्यमंत्री खट्टर को चुनाव के ठीक पहले हटाकर और मंत्रिमंडल बदलकर लोगों को छला तक गया। कई विधायकों के टिकट काटे और कांग्रेस की हार को सुनिश्चित करने के लिए जाति का गणित साधने से लेकर फर्जी प्रत्याशी तक खड़े किए। 
    
भले ही भाजपा हरियाणा की जीत का डंका पीट रही हो हकीकत में उसे लोकसभा (46.11 प्रतिशत) से कम मत (39.9 प्रतिशत) मिले। गुड़गांव में तो करीब आधे मतदाता मत डालने ही नहीं आए। यही स्थिति कई अन्य जगहों पर थी। हरियाणा में मोटे तौर पर सत्ता विरोधी रुझान था परंतु इसकी ठोस अभिव्यक्ति इसलिए नहीं हुई कि भाजपा ने संघ के भरपूर समर्थन से इस चुनाव को ‘‘मैनेज’’ कर लिया। चुनाव में निम्न मतदान अपनी कहानी आप कहता है। 
    
हरियाणा में भाजपा की जीत वहां मोनू मानेसर, बिट्टू बजरंगी जैसे अपराधियों और अन्य हिंदू फासीवादियों के हौंसले बुलंद करेगी। मजदूरों-मेहनतकशों के सामने हिंदू फासीवादियों और एकाधिकारी देशी-विदेशी पूंजीपतियों के गठजोड़ के कारण नई-नई चुनौतियां सामने आएंगी। इन चुनौतियों का सामना वे अपनी एकता, संगठन और संघर्ष के दम से ही कर सकते हैं।

आलेख

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता