हम बच्चों को ‘‘संस्कारी’’ बनाकर रहेंगे

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने हिंदू राष्ट्र बनाने के एजेंडे के तहत देश की महिलाओं को नियंत्रित और संचालित करने की कोशिश करता रहा है। कभी यह निर्देशित करता है कि हिंदू महिलाओं को वीर पुत्र पैदा करने चाहिए तो कभी वह निर्देशित करता है कि कितने पुत्र पैदा करने चाहिए। अपनी विचारधारा के तहत वह शुरू से ही लोगों को कूपमंडूक, अंधविश्वासी और पिछड़ी मूल्य-मान्यताओं में जकड़े रखना चाहता है। इसके लिए वह छोटे-छोटे बच्चों की शाखा लगाने का काम करता है। इसी एजेंडे के तहत वे अब गर्भ से ही बच्चों को संस्कारी बनाने के नाम पर अपनी राजनीति कर रहे हैं।

देश की राजधानी दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में राष्ट्र सेविका समिति की तरफ से एक वर्कशाप का आयोजन किया गया। राष्ट्र सेविका समिति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी संस्था है। यह आयोजन गर्भावस्था के दौरान भ्रूण को संस्कार सिखाने के नाम पर किया गया था।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अनुसार वह स्त्री रोग विशेषज्ञों, आयुर्वेद के डाक्टरों और योग प्रशिक्षकों के जरिए एक कार्यक्रम तैयार करने की योजना बना रहा है जिसमें गर्भावस्था के दौरान गीता और रामायण का पाठ पढ़ना और योग करना शामिल है। ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे में अच्छे संस्कार-मूल्य दिए जा सकें। ये कार्यक्रम गर्भवती महिला और बच्चे के दो साल होने तक की उम्र तक चलेगा। इसमें गीता के श्लोक, रामायण की चौपाई का पाठ होगा। इनके अनुसार इससे गर्भ में पल रहा बच्चा 500 शब्द तक सीख सकता है।

इससे पहले भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्वास्थ्य शाखा की तरफ़ से गर्भ विज्ञान संस्कार की शुरुआत करने की खबरें आईं थीं।

सबसे पहले यह गुजरात से शुरू किया गया था। अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपनी स्वास्थ्य शाखा के साथ मिलकर इसे अन्य राज्यों में भी पहुंचाने की कोशिश कर रहा है। इसमें गर्भवती महिलाओं के लिए गर्भ संस्कार नाम का अभियान शुरू किया जायेगा ताकि गर्भ में ही बच्चे को संस्कार और मूल्य सिखाए जा सके। लेकिन क्या वाक़ई गर्भ में पल रहा बच्चा शब्दों या किसी भाषा को समझ सकता है? विज्ञान की दुनिया और वैज्ञानिक विशेषज्ञों की इस मामले में भिन्न राय हैं।

इस मामले में स्त्री रोग विशेषज्ञों का मानना है कि गर्भ में पल रहा बच्चा आवाज तो सुन पाता है। लेकिन वो कोई भाषा नहीं समझ सकता है। जैसे-जैसे गर्भ में पल रहे बच्चे के शरीर विकसित होता है। उसके कान भी विकसित होने शुरू हो जाते हैं। ऐसे में ध्वनि तरंग भी उस तक पहुंचती हैं। लेकिन उन ध्वनियों से क्या मतलब निकल रहा है वह बच्चा नहीं समझ पाता है। ऐसे में संस्कृत या कोई श्लोक अगर मां पढ़ भी रही है तो वह बच्चे को कैसे समझ आएंगे?’

इनके अनुसार ये केवल मिथक है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

एक गर्भवती महिला के लिए पोषक आहार, अच्छे विचार, मन शांत रखने की बाते ठीक है। लेकिन जब गर्भ में पल रहा भ्रूण भाषा ही नहीं समझ सकता वो क्या जानेगा कि मां मंत्र का उच्चारण कर रही है या कुछ और। इस तरह के गर्भ संस्कार की बात कहना छद्म विज्ञान है।

विज्ञान के अनुसार गर्भावस्था के दौरान बदलने वाले हार्मोन का असर मां के जरिए बच्चे तक पहुंचता है। यानि तनाव के हार्मोन या खुशी के हार्मोन का असर बच्चे पर भी पड़ता है और इसका वैज्ञानिक आधार है। एक मां का खुश रहना और पौष्टिक आहार लेना अहम होता है।

आज देश के मजदूर-मेहनतकश महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है। स्वस्थ माहौल नहीं मिल पाता है। उनके बच्चों के पास खाने के लिए रोटी का संकट है। उनसे शिक्षा दूर होती जा रही है। रोजगार खत्म हो रहे हैं। सही से इलाज नहीं मिल पा रहा है। इन सब बातों की चिंता छोड़ कर गर्भ के दौरान बच्चों को संस्कारी बनाने की बातें की जा रही हैं। बच्चा गर्भ में अपराध करना नहीं सीखता है और न ही कोई मां अपने बच्चे को अपराधी बनाना चाहती है। यह सब बच्चा अपने समाज के माहौल और संस्कृति से सीखता है। आज समाज में धर्म और जाति के नाम पर नफरती माहौल बनाया जा रहा है। महिला विरोधी संस्कृति परोसी जा रही है। तब बच्चों को ऐसे माहौल से कैसे बचाया जा सकता है।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तो बच्चों को कूपमंडूक, अंधविश्वासी, गैरवैज्ञानिक, पिछड़ी मूल्य-मान्यताओं से लैस अपना एक औजार बनाना चाहता है। अभिमन्यु का उदाहरण सामने रख वह बच्चों को गर्भ से ही ऐसे संस्कार देने की कवायद कर रहा है और कह रहा है कि हम बच्चों को संस्कारी बनाकर रहेंगे।

हमें बच्चों को ऐसा संस्कारी बनाने के बजाय उनको अच्छा इंसान बनाने की कोशिश करनी चाहिए। उनको जाति, धर्म, क्षेत्र, महिला-पुरुष के भेद भाव से बाहर निकल कर इंसान की कद्र सीखना चाहिए। सिखाने से पहले समाज का माहौल वैसा बनाना होगा तभी हमारे बच्चे अच्छे इंसान बन सकते हैं।

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