
हिंदू फासीवादियों ने तो जैसे कसम ही खा रखी है कि अब हर हिंदू त्यौहार को सांप्रदायिकता की आंच में सेंके बिना नहीं मनाएंगे। कि अब त्यौहार शांति, सद्भावना के प्रतीक न रहकर नफरत की भावना पैदा करने वाले हो जाएंगे। ऐसा ही होली पर भी हिंदू फासीवादी करना चाहते हैं।
पहला मामला उत्तर प्रदेश के सम्भल जिले का है। यह वही संभल है जहां कुछ दिनों पहले मस्जिद में सर्वे के नाम पर हिंदू फासीवादी संगठनों ने पुलिस की मदद से सांप्रदायिक हिंसा फैलाई थी और कई मुस्लिम नौजवान इस हिंसा में मारे गये थे। इसी समय संभल के सी ओ अनुज चौधरी चर्चा में आये थे। इनके चर्चा में आने की वजह पूरी कार्यवाही के दौरान इनके बिगड़ैल बोल और सांप्रदायिक रुख रहा। बाद में एक धार्मिक जुलूस के दौरान गदा लेकर ये जुलूस का नेतृत्व करते भी चर्चा में आये। इनके अपने संवैधानिक पद के विपरीत आचरण करने की वजह से कोई कार्यवाही आज तक नहीं हुई। और इसी वजह से इनके हौंसले काफी बढ़ चुके हैं।
अभी हाल में ही संभल में एक पीस कमेटी की बैठक के दौरान इनके व्यवहार ने दिखाया कि दरअसल ये संविधान नहीं बल्कि अपने आकाओं के हिसाब से चल रहे हैं। दरअसल हुआ यह कि इस बार होली और जुम्मे की नमाज एक ही दिन यानी शुक्रवार को है। चूंकि मुस्लिम होली नहीं मनाते हैं और होली रंगों का त्यौहार है इसलिए मुस्लिम पक्ष की मांग थी कि होली के दौरान शासन-प्रशासन इस तरह की व्यवस्था करे कि दोनों पक्षों यानी हिंदू-मुस्लिम में कोई तनाव की परिस्थिति न आये।
इसी पीस कमेटी की बैठक में सी ओ अनुज चौधरी ने कहा कि होली साल में एक बार आती है और जुम्मे की नमाज 52 बार। जिसको रंग खेलना हो और जिसकी हिम्मत रंग लगाने की हो वही बाहर निकले अन्यथा घर के अंदर ही रहे। घर पर ही नमाज पढ़े।
सी ओ अनुज चौधरी जिस भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे वह बजाय एक पुलिस अधिकारी के एक भाजपा कार्यकर्ता की ज्यादा लग रही थी। वे होली के दिन लोगों को घरों में कैद करने का फरमान सुना रहे थे।
उनके इस बयान पर हल्ला मचना था सो मचा लेकिन अनुज चौधरी पर कोई असर न पड़ा। पड़ता भी कैसे। आखि़रकार वे यह सब करके आपने आकाओं को खुश कर रहे थे। और उनके इस बयान के बाद उनके आका ने भी इस पर सही होने की मुहर लगा दी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अनुज चौधरी एक पहलवान हैं और एक पहलवान की भाषा में ही उन्होंने समझाया है। उनकी बात कड़वी हो सकती है पर सच है।
इसी तरह अलीगढ़ में भी ऐसे ही प्रयास हिंदूवादी संगठनों द्वारा किये गये। यहां सांसद सतीश गौतम ने इसमें बढ़-चढ़ कर भूमिका निभाई। दरअसल अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में इस बार हिंदू छात्रों ने कालेज के एक हाल में होली मनाने की अनुमति मांगी। ऐसा नहीं है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पहले होली नहीं मनती थी। जो छात्र अपने घर नहीं जाते थे वे हास्टल आदि जगह होली मनाते थे। लेकिन इस बार सांप्रदायिक प्रचार करने के लिए कालेज के हाल में होली समारोह होली से पहले 9 तारीख को मनाने के लिए अनुमति मांगी गयी थी। चूंकि यह नई परंपरा थी इसलिए प्रशासन इस पर सोच विचार कर रहा था। लेकिन इसी बीच भाजपा सांसद और करणी सेना इस मामले को सांप्रदायिक तूल देने लगे। सांसद सतीश गौतम ने तो होली खेलने से रोकने वालों को ऊपर पहुंचाने की बात कर दी।
हालांकि विश्वविद्यालय ने होली खेलने के लिए एक हाल दे दिया लेकिन तब तक पूंजीवादी प्रचारतंत्र जो आजकल फासीवादियों की सेवा में दिन-रात लगा हुआ है, उसने इस तरह का प्रचार कर दिया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय होली खेलने देने के खिलाफ है।
इसी तरह मथुरा में भी होली के बहाने सांप्रदायिक आग सुलगाने की कोशिश की जा रही है। यहां खुद मुख्यमंत्री योगी पहुंचे और अयोध्या और काशी के बाद मथुरा की बात की। इस बात का मतलब साफ समझा जा सकता है।
ये घटनायें साफ दिखाती हैं कि हिंदू फासीवादियों के लिए हिंदू त्यौहार अपने लक्ष्य यानी हिंदू फासीवादी राज्य की तरफ बढ़ने के साधन के रूप में इस्तेमाल किये जा रहे हैं। कहा जाता कि होली का त्यौहार ऐसा त्यौहार है जिसमें लोग अपनी पुरानी दुश्मनी को भूलकर गले मिलते हैं लेकिन हिंदू फासीवादी तो कुछ और ही सोचकर बैठे हुए हैं। वे तो त्यौहारों के जरिये भी अल्पसंख्यकों में आतंक का माहौल कायम कर रहे हैं। हिन्दू मान्यताओं-परंपराओं को सर्वोच्च बताकर सारे समाज को इन्हीं के हिसाब से ढाल रहे हैं।