आयुष्मान भारत योजना के पांच वर्ष

आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को लागू हुए पांच वर्ष बीत चुके हैं। इस योजना को लागू करते समय दावे किए गये कि इस योजना से देश की सबसे गरीब 40 प्रतिशत आबादी लाभान्वित होगी और इलाज पर उनकी जेब से होने वाला खर्च काफी कम हो जाएगा। यह दावा किया गया कि लक्षित आबादी के सदस्यों के अस्पताल में भर्ती होने पर पांच लाख तक के इलाज के लिए उन्हें कोई पैसा नहीं देना होगा। उन्हें ‘‘नकद रहित, कागज रहित’’ इलाज उपलब्ध होगा। बीमार व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती होने के लिए और इलाज कराने के लिए कोई कागजी कार्यवाही नहीं करनी पड़ेगी और सारी कार्यालयीय प्रक्रियाएं ऑन लाइन सम्पन्न की जाएंगी। 
    
आज इस योजना के लागू होने के पांच वर्ष बीत जाने के बावजूद देश की बड़ी आबादी के लिए अभी भी इलाज कराना महंगा सौदा ही साबित हो रहा है। अव्वल तो आयुष्मान भारत में लाभार्थियों का पंजीकरण ही अभी आधा हुआ है। पांच वर्ष बीत जाने के बावजूद लक्षित 50 करोड़ की आबादी में अभी 25 करोड़ का ही पंजीकरण हुआ है। जबकि बीते पांच वर्ष में देश की आबादी में कुछ इजाफा ही हुआ है। प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना की वर्ष 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 19 करोड़ पंजीकृत कार्ड पर इस वर्ष 3.9 करोड़ अस्पताल में भर्तियां हुईं, जिस पर 45,294 करोड़ रुपये खर्च हुए। इस तरह प्रति कार्ड औसत खर्च 2384 रुपये का है। यह भारत में प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च 4863 रुपये (नेशनल हेल्थ एकाउंट्स, 2019-20) का आधा भी नहीं है। यहां यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि आयुष्मान भारत में जो अस्पताल में भर्तियां दिखाई जाती हैं उसमें एक संख्या फर्जी भर्तियों की भी होती है। 
    
भारत में इलाज संबंधी खर्चों में कीमतों में होने वाली महंगाई की दर काफी अधिक है। सामान्य बीमारियां जिसके इलाज के लिए भर्ती होना पड़ता है, इन पर खर्च पिछले पांच साल में दो गुने से अधिक हो गया है। कोविड के बाद से विशेष तौर पर डॉक्टरों की फीस, दवाईयां, जांचें, भर्तियां सभी महंगी हुई हैं। इलाज जैसी बुनियादी आवश्यकता के इतनी तेज रफ्तार से महंगा होना मजदूर-मेहनतकश जनता की दुश्वारियों को बढ़ाता है। इस महंगाई पर रोक लगाने का एकमात्र तरीका है सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करना। लेकिन, भारत की सरकारें इसके बरक्स स्वास्थ्य बीमा को बढ़ावा दे रही हैं। स्वास्थ्य बीमा कंपनियां भी इलाज पर बढ़ रहे खर्चों का हवाला देकर ग्राहकों को अपनी तरफ आकर्षित करने का प्रयास कर रही हैं। जैसे-जैसे स्वास्थ्य बीमाधारकों की संख्या में इजाफा हो रहा है, इनके प्रीमियम भी महंगे होते जो रहे हैं। प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना भी इन सबमें सहयोगी की भूमिका निभा रही है। इस तरह यह योजना गरीब आबादी के लिए इलाज सुलभ बनाने के बजाय दुर्लभ बना रही है। 
    
आयुष्मान भारत योजना की शुरूआत के समय से ही यह बात मुद्दा बनती रही है कि इसमें सिर्फ भर्ती होने पर नकद रहित इलाज की व्यवस्था है। भर्ती होने वाले मरीजों के लिए भी अस्पताल से छुट्टी के पन्द्रह दिन के भीतर की दवाईयां आदि नकद रहित होती हैं। इस अवधि के बाद के इलाज के लिए इस योजना में कोई प्रावधान नहीं हैं। कई बीमारियां ऐसी होती हैं, जिनमें ये खर्चे भर्ती के खर्चों से कई गुना ज्यादा होते हैं, मसलन कैंसर की बीमारी। पांच वर्ष बीत जाने के बावजूद इस मुद्दे को संबोधित करने का योजना निर्माताओं ने कोई दिखावा भी नहीं किया है। 
    
कोविड के दौरान इस योजना की विफलता सबसे ज्यादा उजागर हुई। कोविड-19 से संक्रमित 78 लाख लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इनमें से मात्र 9.31 लाख (11.9 प्रतिशत) ही प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का लाभ हासिल कर सके। कई मामलों में निजी अस्पतालों ने उन मरीजों को भर्ती करने से मना कर दिया जिन्होंने आयुष्मान कार्ड दिखाने की गलती की। 
    
आयुष्मान भारत योजना में भ्रष्टाचार और अनियमितता के कई मामले सामने आ चुके हैं और चर्चित हो चुके हैं। सी ए जी की रिपोर्ट भी इस संबंध में कई भौचक्का कर देने वाले तथ्य दे चुकी है। सफदरगंज अस्पताल के न्यूरो सर्जरी विभाग के डा. मनीष रावत ने एक आयुष्मान कार्ड धारक मरीज से 80,000 रुपये की ठगी की। इस घटना के उजागर होने के बाद चली सीबीआई जांच में करोड़ों रुपयों की ऐसी ठगी के सुराग मिल रहे हैं। यह सब इस योजना की अतिरिक्त विफलताएं हैं। 
    
मजदूर मेहनतकश जनता की स्वास्थ्य जरूरतें मुनाफे पर आधारित स्वास्थ्य ढांचे में पूरी नहीं हो सकतीं। 

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता