मणिपुर : फासीवादी भाजपा की प्रयोगशाला

मणिपुर अभी भी अशांत है। अभी भी हिंसा-आगजनी की खबरें छन-छन कर आ रही हैं। विशेषकर कूकी समुदाय के लोग भयानक असुरक्षा में हैं। एक तरफ देश की राजधानी में निरंकुश मोदी सरकार 75 वें गणतंत्र दिवस का जश्न मनाने में मशगूल है तो वहीं मणिपुर में मैतेई समुदाय के बीच से बना हथियारबंद संगठन अरामबाई तेंगोल मणिपुर की भाजपाई सरकार के इशारे पर विधायकों और सांसदों को विभाजनकारी मुद्दों के इर्द-गिर्द काम करने के लिए फरमान जारी करता है। मणिपुर भाजपा सरकार के घाटी क्षेत्र के 36 विधायक और 2 सांसद अरामबाई तेंगोल नाम के फासिस्ट संगठन के द्वारा बुलाये गये 24 जनवरी के कार्यक्रम में पहुंचते हैं और अरामबाई तेंगोल की मांगों को लागू करवाने की शपथ लेते हैं।
    
अरामबाई तेंगोल, मैतेई समुदाय के हितों के नाम पर बना संगठन है। यह कुछ साल पहले तक खुद को सांस्कृतिक संगठन कहता था। आज यह संगठन हथियारबंद है। इसके कार्यकर्ता काली शर्ट पहने हुए और हथियारों से लैस हैं। मैतेई  समुदाय के हितों के नाम पर ही 2015 में गठित मैतेई लीपम संगठन भी है। अक्सर कहा जाता है कि इन संगठनों को खड़ा करने में मुख्यमंत्री एन वीरेन सिंह, राज्य सभा के सदस्य मणिपुर राजशाही परिवार के लीशेम्बा सनाजाओबा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा की भूमिका है। 
         
ये संगठन हिंदू राष्ट्रवाद के नशे से सराबोर हैं। ईसाई विशेषकर कूकी समुदाय को निशाने पर ले रहे हैं। केंद्र की सत्ता पर बैठी मोदी सरकार मणिपुर में इन संगठनों को आगे करके और इनके जरिए अपने हिंदू फासीवाद के एजेंडे को आगे बढ़ा चुकी है। जाहिर है इस तरह, मणिपुर की समग्र जनता का अपने आत्मनिर्णय के लिए अधिकार के संघर्ष को बेहद पीछे धकेल दिया गया है।
                      
अरामबाई तेंगोल और मैतेई लीपम को केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार का खुला समर्थन हासिल है कि, जिसके दम पर, संगठन, राज्य सरकार के बहुलांश विधायकों और सांसदों को फरमान जारी कर देता है, साथ ही तीन विधायकों पर 24 जनवरी के कार्यक्रम में हमला भी कर देता है। 2023 में कूकी-जो समुदाय के खिलाफ की गई हिंसा में इन संगठनों का नाम ही सबसे ऊपर है। 
    
पिछले साल तक, मैतेई समुदाय के हितों को साधने के नाम पर कहा जा रहा था कि मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाय। इसी मांग को हाईकोर्ट तक पहुंचाया गया था। जिसके खिलाफ कूकी-जो और नागा जनजाति से बने आदिवासी संगठनों ने प्रदर्शन किया था। कहा जाता है कि इस प्रदर्शन के दौरान ही अरामबाई तेंगोल के लोगों ने कूकी-जो जनजाति के गांवों पर हमला किया। यदि सब कुछ एकतरफा नहीं हुआ और दहशत कायम करके कूकी-जो समुदाय को उनके अपने गांवों से खदेड़ने में कामयाबी नहीं मिली तो इसकी मुख्य वजह यही थी कि कूकी-जो समुदाय के बीच से भी कई संगठन हैं जिनके साथ मोदी-शाह की सरकार ने समझौता वार्ताएं चलाई हैं जिसे एस ओ पी कहा जाता है। 
    
मौजूदा वक्त में मैतेई समुदाय के हितों को साधने के नाम पर बने इन फासीवादी संगठनों की मांग भी बदल चुकी है। अब मांग हैः कूकी-जो समुदाय के कथित अवैध अप्रवासियों से अनुसूचित जनजाति का दर्जा वापस लिया जाय, कूकी समुदाय के संगठनों के साथ चल रही एस ओ पी को रद्द किया जाय, मणिपुर में नागरिकता रजिस्टर (एन आर सी) करवाई जाय जिसके लिए आधार साल 1951 को बनाया जाय, बर्मा या मिजोरम से मणिपुर में शरण तलाश रहे शरणार्थियों को वापस मिजोरम में डिटेंशन केंद्र में भेजा जाय, भारत-बर्मा के बीच सीमा की बाड़ाबंदी की जाय, मणिपुर से असम राइफल्स को बाहर किया जाय।
    
यही 6 मांगें हैं जिसके लिए 24 जनवरी को कार्यक्रम किया गया। विधायकों और सांसदों ने इसमें हाजिरी लगाई। इन 6 मांगों को केंद्र सरकार तक पहुंचाने की शपथ ली। जिस प्रकार संघियों ने असम में शरणार्थियों और अप्रवासियों को बंगाली घुसपैठिये बताकर दशकों तक, न केवल असम में बल्कि उत्तर भारत में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण किया। उसी तरह अब ये एजेंडा मणिपुर की राजनीति के केंद्र में आ चुका है। बात अब एन आर सी कराने  की ओर बढ़ा दी गई है।
    
पिछले वर्ष 3 मई से अब तक इस राज्य प्रायोजित हिंसा में 200 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। कई हजार घायल हुए हैं। 60-70 हजार से ज्यादा विशेषकर कूकी समुदाय के लोगों को जगलों या शरणार्थी कैंपों में रहने को विवश होना पड़ा है। यह हिंसा अभी तक खत्म नहीं हुई है। अभी भी हिंसा की खबरें आ रही हैं। इसकी सबसे ज्यादा शिकार महिलाएं हो रही हैं।
    
2002 के गुजरात के बाद जम्मू-कश्मीर तथा फिर उत्तर पूर्व का यह राज्य मौजूदा दौर में काफी फर्क के बावजूद हिंदू फासीवादियों के एजेंडे का शिकार हो चुका है। इनकी प्रयोगशाला बना है। यह देशव्यापी होने की ओर बढ़ रहा है।
    
संघ और भाजपा ने हिंदुत्व के नाम पर मैतेई समुदाय का हिंदुत्वकरण किया है। 2017 में राज्य में इनकी गठबंधन सरकार बनने के बाद इस मुहिम ने जोर पकड़ा। इस हिंदू फासीवादी राजनीति के चलते राज्य में आम नागरिकों की तबाही-बर्बादी अभूतपूर्व है। 
    
एक तरफ राज्य सरकार अरामबाई तेंगोल और मैतेई लीपम के पीछे रही। पुलिस थानों से हजारों हथियार लुटवाकर इन्हें विशेषकर अरामबाई तेंगोल को हथियार बंद करने में लगी रही। तो वहीं दूसरी तरफ केंद्र की मोदी सरकार पर आरोप है कि उसने कूकी समुदाय को भी हथियार बांटे। इस तरह मैतेई बनाम कूकी-जो को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने, दोनों के बीच खाई बनाकर इसे और गहरा करने का खेल खेला गया है। कूकी जो समुदाय ही नहीं इसके निशाने पर आने वाले वक्त में यहां के नागा जनजाति के लोग भी होंगे, इससे इंकार नहीं किया जा सकता।     
    
कूकी-जो और नागा जनजाति इंफाल घाटी के चारों ओर के पहाड़ों में रहते हैं। यहां पांच जिले हैं जबकि इंफाल घाटी में 4 जिले हैं। पहाड़ी इलाका, मणिपुर के कुल इलाके का 90 प्रतिशत है। सेनापति चंदेल और उखरुल, चुराचंदपुर, तमेंगलोंग  मणिपुर के पहाड़ी इलाके के जिले हैं। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) का अनुमान है कि उखरुल जिले के हुंडुंग, फुंग्यार और मेलियांग गांवों में तथा तमेंगलोंग और चंदेल जिलों के तौपोकपी, चकपिकारोंग, पल्लेल, नुंगफुरा, नुंगपाल, साजिक ताम्पाक, हैकोट में लगभग 20 मिलियन मीट्रिक टन चूना पत्थर जमा है।
    
भारतीय खान ब्यूरो की 2013 की रिपोर्ट के अनुसार मणिपुर में क्रोमाइट (क्रोमियम और लोहा) के ओपियोलाइट बेल्ट के 6.66 मीट्रिक टन संसाधन हैं, जो उखरूल और कामजोंग जिलों में 5.5 मीट्रिक टन और तेंगनौपाल और चंदेल जिलों में 1.1 मीट्रिक टन तक हैं। मणिपुर सरकार (जीओएम) और कंपनियों के बीच हस्ताक्षरित एमओयू के प्रावधानों में कंपनियों के पक्ष में बड़ी मात्रा में भूमि और खनन अधिकारों का हस्तांतरण होना था। 21 से 22 नवंबर 2017 तक इम्फाल में आयोजित नार्थ ईस्ट बिजनेस समिट के दौरान हस्ताक्षरित उनतालिस (39) एमओयू में खनन के लिए कई समझौता ज्ञापन (एमओयू) शामिल थे। 
    
ये तथ्य साफ इशारा करते हैं कि मणिपुर के पहाड़ी जिलों की जमीनों और इसके संसाधनों पर देश के बड़े पूंजीपतियों की गिद्ध नजर लगी हुई थी। जिस तरह से मध्य भारत के छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा आदि इलाकों की जमीनों से खनिज संसाधनों के दोहन के लिए आदिवासियों को उजाड़ने का अभियान 2008 से शुरू हुआ था और जो कि आज भी जारी है, उसी तरह, मणिपुर में भी हो रहा है। बस उजाड़ने या बेदखल करने के नारे और तौर-तरीके में फर्क है। एक तीर से कई निशाने साधे जा रहे हैं। एक तरफ मणिपुरी जनता को ऐतिहासिक तौर पर बांट दिया गया है। आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए चले एकजुट संघर्ष का गला घोंट दिया गया है तो दूसरी तरफ संसाधनों की नंगी लूट-खसोट का रास्ता बेहद आसान बनाया जा रहा है। यह, मणिपुर को हिंदू फासीवाद की प्रयोगशाला बनाकर किया जा रहा है।

आलेख

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

/kumbh-dhaarmikataa-aur-saampradayikataa

असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

/trump-putin-samajhauta-vartaa-jelensiki-aur-europe-adhar-mein

इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

/kendriy-budget-kaa-raajnitik-arthashaashtra-1

आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।